कोरोना पर नया खुलासा: लोग मल से छोड़ रहे कोरोना, जांच में सामने आई ये बात

इस महामारी को लेकर एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। बताया जा रहा है कि कोरोना वायरस संक्रमित लोग ना केवल नाक और मुंह, बल्कि अपने मल से भी किसी अन्य को संक्रमित कर सकते हैं।

Shreya
Published on: 20 Aug 2020 6:06 AM GMT
कोरोना पर नया खुलासा: लोग मल से छोड़ रहे कोरोना, जांच में सामने आई ये बात
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नई दिल्ली: कोरोना वायरस महामारी ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है। पूरी दुनिया में कोरोना के खिलाफ वैक्सीन तैयार करने के अलावा अन्य कई शोध और स्टडी की जा रही हैं। जिसमें कोरोना को लेकर कई खुलासे हुए हैं। अब इस बीच इस महामारी को लेकर एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। बताया जा रहा है कि कोरोना वायरस संक्रमित लोग ना केवल नाक और मुंह, बल्कि अपने मल से भी किसी अन्य को संक्रमित कर सकते हैं। जी हां, इसके लिए देश के एक बड़े शहर सीवेज की जांच भी की गई।

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इसलिए की गई सीवेज की जांच

सीवेज की जांच इसलिए किया गया ताकि यह पता लगाया सके कि कोरोना वायरस उस इलाके में कितना प्रभावी है और कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज कितने दिनों तक अपने मल में कोरोना वायरस का RNA छोड़ते हैं?

सीवेज से इकट्ठा किया गया कोरोना वायरस का सैंपल

यह पता लगाने के लिए हैदराबाद में सीवेज से कोरोना वायरस का सैंपल इकट्ठा किया गया। जिससे यह पता चला कि हैदराबाद के किस इलाके में महामारी के संक्रमण का कितना खतरा है। सीवेज से कोरोना का सैंपल लेना खतरनाक नहीं होता, क्योंकि सीवेज में मौजूद कोरोना दोबारा संक्रमण फैलाने में कमजोर होता है।

Corona Virus Sewage

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इन संस्थाओं ने मिलकर प्रोजेक्ट पर किया काम

देश के जाने माने वैज्ञानिक संस्थाओं CSIR-CCNB और CSIR-IICT ने संयुक्त इस प्रोजेक्ट को पूरा किया है। इन दोनों संस्थानों के वैज्ञानिकों का कहना है कि किस इलाके में कोरोना कितना प्रभावी है और कोरोना का संक्रमण कितना फैला है, यह पता लगाने के लिए सीवेज की जांच सही है।

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वैज्ञानिकों के मुताबिक, कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज कम से कम 35 दिनों तक अपने मल के जरिए कोविड-19 के जैविक हिस्से निकालता रहता है। ऐसे में इलाके की एक महीने की स्थिति जानने के लिए सीवेज से सैंपल लेने से बेहतर और कोई तरीका नहीं है।

हैदराबाद की बात करें तो यहां पर रोजाना 180 करोड़ लीटर पानी का इस्तेमाल होता है। जिसमें से 40 प्रतिशत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांस्ट्स (STP) में जाता है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांस्ट्स (STP) से सीवेज सैंपल कलेक्ट करने से यह जानने में आसानी हुई कि शहर के किस इलाके में कोरोना वायरस के RNA की क्या स्थिति है।

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Sewage Samples

हैदराबाद के 80 फीसदी STP की जांच की गई

STP में कोरोना के RNA का सैंपल उस जगह से लिया गया, जहां पर शहर की गंदगी आती है। क्योंकि अगर एक बार सीवेज का ट्रीटमेंट हो गया तो फिर उसमें वायरल RNA नहीं मिलेगा। CSIR-CCNB और CSIR-IICT ने दोनों संस्थानों ने मिलकर हैदराबाद के 80 फीसदी STP की जांच की।

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दो लाख लोग छोड़ रहे मल से कोरोना

इस जांच में पता चला कि रोजाना करीब दो लाख लोग लगातार अपने मल के जरिए कोरोना वायरस के जैविक हिस्सों को निकाल रहे हैं। जब इस आंकड़ों की जांच की गई तो पता चला कि हैदराबाद में करीब छह लाख 60 हजार लोग कोरोना से संक्रमित हैं।

यानी शहर की कुल आबादी का करीब 6.6 प्रतिशत हिस्सा किसी ना किसी तरह महामारी से संक्रमित है। इनमें पिछले 35 दिनों में सिम्प्टोमैटिक, एसिम्प्टोमैटिक रहे लोग और कोरोना से ठीक हो चुके लोग भी शामिल हैं। जबकि रिपोर्ट के मुताबिक, हैदराबाद में कोरोना के करीब दो लाख 60 हजार एक्टिव केस हैं।

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CCMB के निदेशक डॉ. राकेश मिश्रा ने बताया कि जांच में यह पता चला कि ज्यादातर लोग एसिम्प्टोमैटिक हैं। इन मरीजों को अस्पताल में एडमिट करने की आवश्यकता नहीं है। हॉस्पिटल्स में कोरोना के गंभीर मरीज पहुंचे और केवल उनका इलाज हुआ, इससे कोरोना की वजह से मृत्यु दर भी कम हुई।

हमारी चिकित्सा प्रणाली सही से कर रही महामारी को हैंडल

डॉ. राकेश मिश्रा ने बताया कि इससे पता चलता है कि हमारी चिकित्सा प्रणाली कोरोना महामारी को सही ढंग से हैंडल कर रही है। ऐसी स्टडी करने से यह पता चलता है कि किसी भी बीमारी का प्रभाव कितना है। ताकि उसे रोकने में मदद मिल सके।

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