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मौते से बचने के लिए महाकाल की शरण में पहुंचा था विकास दुबे, जानें मंदिर का इतिहास

उत्तर प्रदेश के कानपुर में बीते दिनों हुई आठ पुलिसकर्मियों की हत्या का दोषी विकास दुबे आखिरकार पुलिस की पकड़ में आ गया है।

Shreya
Published on: 9 July 2020 6:39 AM GMT
मौते से बचने के लिए महाकाल की शरण में पहुंचा था विकास दुबे, जानें मंदिर का इतिहास
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भोपाल: उत्तर प्रदेश के कानपुर में बीते दिनों हुई आठ पुलिसकर्मियों की हत्या का दोषी विकास दुबे आखिरकार पुलिस की पकड़ में आ गया है। आज यानी गुरुवार को मध्यप्रदेश के उज्जैन के महाकाल मंदिर से विकास की गिरफ्तारी हुई है। बताया जा रहा है कि उसने महाकालेश्वर मंदिर की पर्ची कटाई और बाद में उसने खुद ही सरेंडर कर दिया। उज्जैन के महाकाल थाने के पास उसने स्थानीय पुलिस के सामने सरेंडर किया है। फिलहाल वो एमपी पुलिस के हिरासत में है। तो चलिए जानते हैं उस मंदिर के इतिहास के बारे में, जहां पर विकास दुबे पकड़ा गया-

भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल महाकालेश्वर

मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में स्थित महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में शामिल है। महाकालेश्वर पूरे देश भर में बहुत प्रसिद्ध है। श्री महाकालेश्वर का मन्दिर भारत के प्रमुख देवस्थानों में विशेष स्थान रखता है। भगवान महाकाल काल के भी अधिष्ठाता देव माने जाते हैं।

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अकाल मौत को जीतने की आस्था के साथ आते हैं भक्त

उज्जैन, जिसका प्राचीन नाम उज्जयिनी है, अपने पौराणिक और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। वहीं ज्योतिर्लिंग महाकाल इस नगर की शोभा को और बढ़ाते हैं। इसके आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है। जहां पर लोग अकाल मौत पर विजय पाने की आस्था के साथ पहुंचते हैं। शायद विकास दुबे भी इस मंदिर में इस आस्था के साथ गया हो।

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महाकाल के दर्शन मात्र से होती है मोक्ष की प्राप्ति

मान्यता है कि महाकाल के केवल दर्शन से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। भव्य, दक्षिणमुखी और स्वयंभू होने की वजह से महाकालेश्वर महादेव की बेहद पुण्यदायी महत्ता है। महाकालेश्वर मंदिर का पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में सुंदर वर्णन किया गया है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी (उज्जैन) की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है।

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इल्तुत्मिश ने मंदिर का किया था विध्वंस

इस मंदिर पर में रोजाना होने वाली भस्म आरती में हजारों की तादात में लोग शामिल होने के लिए पहुंचते हैं। महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में भारी भीड़ होती है। ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक, तत्कालीन शासक इल्तुत्मिश ने साल 1235 में इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस कर दिया था। उसके बाद यहां पर जिस भी शासक ने शासन किया उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण का काम किया।

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ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक, साल 1107 से 1728 ई. तक उज्जैन में यवनों का शासन हुआ करता था। इनके शासनकाल में तकरीबन 4500 वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परम्पराएं प्राय: नष्ट हो चुकी थीं। लेकिन 1690 ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया। फिर 29 नवंबर 1728 को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया।

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मंदिर को तुड़वाने के बाद कोटितीर्थ में फेंकवाया था

यह मंदिर एक परकोटे के अंदर स्थित है। इसके गर्भगृह तक पहुंचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ते से होकर जाना पड़ता है। इसके ऊपर एक दूसरा कक्ष है, जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग है। मंदिर से लगा एक छोटा-सा जलस्रोत है, इसे कोटितीर्थ कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इल्तुत्मिश ने मंदिर को तुड़वाने के बाद इसी कोटितीर्थ में फेंकवा दिया था। उसके बाद इस जलस्रोत की जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण का काम किया गया।

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