×

नई हरित क्रांतिः क्या यही है रोडमैप, बदलाव से बढ़ी उम्मीदें

भारत के 60 करोड़ किसानों में 82 फीसदी लघु और सीमान्त किसान है जो देश के कुल अनाज प्रोडक्शन में 40 फीसदी का योगदान करते हैं।

Newstrack
Published on: 26 Sep 2020 8:41 AM GMT
नई हरित क्रांतिः क्या यही है रोडमैप, बदलाव से बढ़ी उम्मीदें
X

लखनऊ: एक कृषि आधारित राष्ट्र होने के नाते भारत में खेती-किसानी और किसानों का बहुत बड़ा महत्व है लेकिन दुर्भाग्य से तमाम प्रयासों के बावजूद किसानों की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हो पाया है। भारत में किसानों की समस्यायें भी ढेरों हैं। किसानों की स्थिति को नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों भी बयां करते हैं। जिसके अनुसार, 1995 से लेकर 2016 तक देश में कुल 3,29,907 किसानों ने आत्महत्या की।

किसान बिल का हो रही ज़बरदस्त विरोध

दरअसल, किसानों के सामने तीन महत्वपूर्ण समस्याएं हैं - कर्ज का भारी दबाव, फसल की बढ़ती, और फसल का वाजिब दाम नहीं मिल पाना। इन्हीं समस्याओं के समाधान के रूप में केंद्र सरकार ने तीन विधेयक पारित किये हैं जिनसे किसानों की स्थिति में व्यापक परिवर्तन आने की उम्मीद जताई जा रही है। इन विधेयकों को अब तक का सबसे बड़ा सुधार और एक नयी हरित क्रांति का बीज कहा जा रहा है।

Farmers भारत में किसानों की हालत (फाइल फोटो)

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग, कहीं और किसी को भी उपज बेचने की आज़ादी और स्टॉक लिमिट ख़त्म करने वाले ये विधेयक कितना सकारात्मक बदलाव ला पाएंगे ये समय की कसौटी पर ही तय किया जा सकेगा। हालाँकि इन विधेयकों का विरोध भी खूब हो रहा है कि अब खेती किसानी और किसान पर कॉरपोरेट्स का कंट्रोल हो जायेगा और स्थितियां और भी खराब हो जायेंगी। लेकिन साथ ही ये कहना भी सही है कि किसानों की हालत पहले से ही बहुत ख़राब है सो इस स्थिति में अगर कुछ भी अच्छा बदलाव आता है तो उसे अवश्य अपनाया जाना चाहिए।

कर्ज किसान की सबसे बड़ी समस्या

Farmer भारत में किसानों की हालत (फाइल फोटो)

भारत के 60 करोड़ किसानों में 82 फीसदी लघु और सीमान्त किसान है जो देश के कुल अनाज प्रोडक्शन में 40 फीसदी का योगदान करते हैं। यही नहीं, फल, सब्जी, तिलहन और अन्य फसलों में छोटे किसानों की हिस्सेदारी 50 फीसदी है। कृषि और सम्बंधित क्षेत्रों पर देश की 60 फीसदी आबादी आश्रित है। ग्रामीण क्षेत्रों में 70 फीसदी आबादी खेती-किसानी पर निर्भर है। भारत में किसानों की आर्थिक हालत को बेहतर करने के मकसद से 18 नवंबर 2004 को केंद्र सरकार ने कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया था।

ये भी पढ़ें- मनमोहन के जन्मदिन पर राहुल ने मोदी से उनकी तुलना क्यों कर डाली

इस आयोग ने पांच रिपोर्ट सौंपी थीं लेकिन इस रिपोर्ट पर आज तक संसद में चर्चा तक नहीं हुई है। आयोग की सिफारिश के अनुसार किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का डेढ़ गुना दिया जाना चाहिए और सरकार यह दावा भी करती है। लेकिन किसान अपनी फसलों की गणना के तरीके पर लगातार सवाल उठाते रहे हैं। कर्ज किसानों की बड़ी समस्या है। आयोग की रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में 52.5 फीसदी किसान भारी कर्जे में दबे हुए हैं। नाबार्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 तक कृषि कर्ज 61 फीसदी बढ़कर 11.79 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया था। सरकारें यदाकदा किसानों का कर्जा माफ़ करती रहीं हैं लेकिन समस्या ज्यों कि त्यों है।

क्या आ पायेगी नयी हरित क्रांति?

Farmer भारत में किसानों की हालत (फाइल फोटो)

केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार कृषि से सम्बंधित तीन विधेयक लाये गए हैं और इस कदम को कृषि सेक्टर का अब तक का सबसे बड़ा रिफार्म बताया गया है। किसानों से सम्बंधित तीन विधेयक का उद्देश्य स्पष्ट है - देश के कृषि बाजार को आजाद करना। दावा किया गया है कि इन विधेयकों के जरिये कृषि सेक्टर में जबरदस्त बदलाव और सुधार का रास्ता खुलेगा।

ये भी पढ़ें- दीपिका पादुकोण ने उगल दिए सारे राज, कई बड़े सितारों के लिए नाम, फोन भी जब्त

क्योंकि ये कृषि व्यापार को सभी तरह की बंदिशों से आज़ादी देते हैं। इन विधेयकों के पारित होने के बाद किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा और खेती करने तथा उपज बेचने के लिए मल्टीनेशनल्स और बड़े व्यापारी आदि से करार कर सकेगा। इन विधेयकों पर काफी विवाद खड़ा हो गया है और इनका राजनीतिक विरोध किया जा रहा है जबकि अर्थशास्त्री और कृषि विशेषज्ञ इन विधेयकों का स्वागत कर रहे हैं।

ये तीन विधेयक हैं -

1. कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020

2. मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020

कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक

दशकों से किसानों पर बंदिशें लगी रहीं हैं कि वे अपनी उपज मंडी परिषदों द्वारा संचालित मंडियों में ही बेच सकते हैं। किसानों को दूसरे दूसरे राज्यों में जा कर उपज बेचने की इजाजत नहीं है लेकिन अब ये सब बंदिशें हटा दी गयीं हैं।

- किसान अब मनचाही जगह पर अपनी फसल बेच सकेंगे। बिना किसी रुकावट दूसरे राज्यों में भी फसल बेच और खरीद सकेंगे। मिडिलमैन और आढ़तियों का शिकंजा ख़त्म होगा।

Farmer भारत में किसानों की हालत (फाइल फोटो)

- एपीएमसी मंडियों का वजूद खत्म नहीं होगा। सरकारी मंडियां अपनी जगह पर कायम रहेंगी लेकिन किसानों पर वहां जाने की बाध्यता नहीं होगी। किसान को अगर मंडी से बाहर न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा है तो वो मंडी में जा कर अपनी उपज बेच सकता है।

- मुक्त बाजार में फसल की बिक्री पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। जबकि एपीएमसी मंडियों में कृषि उत्पादों की खरीद पर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग मंडी शुल्क व अन्य उपकर लगे रहते हैं।

ये भी पढ़ें- वाहनों में भीषण भिड़ंत: सड़क पर चारों तरफ लाशें, कई मजदूरों की हुई मौत

- कृषि उपज की ऑनलाइन बिक्री की भी अनुमति होगी।

- चूँकि सरकारी मंडियों के बाहर भी कृषि बाजार बनेगा सो वेयरहाउस, कोल्डस्टोरेज, प्रोसेसिंग यूनिट्स जैसे व्यापार के नए नए चैनल बनेंगे।

किस बात पर है विरोध

ट्रेड एरिया - मुख्यतः कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिसूचना की धारा 2 (एम) का विरोध है। धारा 2 (एम) किसान की उपज के व्यापार की जगहों को ‘ट्रेड एरिया’ के जरिये स्पष्ट करती है। इस धारा में एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्किट कमिटी एक्ट यानी सरकारों द्वारा संचालित मंडियों को शामिल नहीं किया गया है।‘ट्रेड एरिया’ वो स्थान होंगे जहाँ उपज की खरीद - बिक्री की जायेगी। इसमें उत्पादन, संग्रह, एकत्रीकरण की जगहें होंगी।

ये भी पढ़ें- मनमोहन के जन्मदिन पर राहुल ने मोदी से उनकी तुलना क्यों कर डाली

ट्रेड एरिया में फार्म गेट यानी खेत, कारखाना परिसर, वेयर हाउस, बुखारी, कोल्ड स्टोरेज, के अलावा वो सब स्थल शामिल होंगे जहाँ किसानों की उपज का व्यापार किया जाएगा। इस परिभाषा में एपीएमसी एक्ट के तहत बनाई गयी बाजार समितियों के व्यापर स्थल का कोई उल्लेख नहीं है। साथ ही एपीएमसी एक्ट के तहत नोटिफाई किये गए बाजारों का भी कोई उल्लेख नहीं है। विरोधियों का कहना है कि एपीएमसी मंडियां का क्षेत्र बहुत सीमित हो जाएगा और बड़े कार्पोरेट्स को खुली छूट मिल जायेगी।

Farmer भारत में किसानों की हालत (फाइल फोटो)

ट्रेडर - एक विरोध धारा 2 (एन) को लेकर है जो ‘ट्रेडर’ यानी व्यापारी को परिभाषित करती है। इसके अनुसार ट्रेडर वह व्यक्ति है जो राज्य के भीतर या अंतर-राज्यीय व्यापार के जरिये किसानों की उपज खरीदता है। ये खरीद थोक व्यापार, खुदरा व्यापार, वैल्यू एडिशन, प्रोसेसिंग, निर्यात, निर्माण, उपभोग, आदि के लिए की जा सकती है। ट्रेडर ये खरीद अपने लिए, या अन्य व्यक्ति-व्यक्तियों के लिए कर सकता है। कुल मिला कर ट्रेडर में प्रोसेसर, एक्सपोर्टर, होलसेलर, मिलर और रिटेलर सब शामिल हैं।

कोई भी ट्रेडर जिसके पास पैन कार्ड है वो ट्रेड एरिया में किसानों की उपज खरीद सकता है। ट्रेडर एपीएमसी मंडी या ट्रेड एरिया दोनों जगह ऑपरेट कर सकता है। लेकिन एपीएमसी मंडी में ऑपरेट करने के लिए ट्रेडर के पास सम्बंधित राज्य के एपीएमसी एक्ट के तहत जारी लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन होना चाहिए। वर्तमान व्यवस्था में आढ़तियों या कमीशन एजेंटों के पास मंडी में काम करने का लाइसेंस होना चाहिए। नयी व्यवस्था का विरोध आढ़ती या उनके पैरोकार कर रहे हैं।

इनका कहना है कि आढ़तियों की एक साख होती है क्योंकि मंडी सिस्टम में काम करने के लाइसेंस के लिए उनकी वित्तीय स्थिति को वेरीफाई किया जाता है। नए सिस्टम में किसान किसी व्यापारी या ट्रेडर पर कैसे भरोसा करेंगे। पंजाब और हरियाणा में आढ़ती सिस्टम काफी मजबूत है सो वहां इसका ज्यादा विरोध हो रहा है।

ये भी पढ़ें- सबसे बड़ी चेतावनीः सर्दियों के मौसम में कोरोना का बड़ा ख़तरा

बाजार शुल्क: सेक्शन 6 में कहा गया है कि किसी ट्रेड एरिया में किसानों की उपज पर किसी किसान, ट्रेडर, इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग और अन्य लेनदेन पर किसी भी राज्य के एपीएमसी एक्ट या राज्य के किसी भी अन्य कानून के तहत कोई भी बाजार शुल्क या उपकार या लेवी या किसी भी अन्य नाम से कोई शुल्क नहीं लगाया जाएगा। इससे लेनदेन की लगत घटेगी और किसानों और व्यापारियों - दोनों को फायदा होगा।

र्तमान व्यवस्था में राज्य की मंडियों में कई तरह के शुल्क लगते हैं। मिसाल के तौर पर पंजाब में 8.5 फीसदी चार्ज पड़ता है जिसमें 3 फीसदी बाजार शुल्क, 3 फीसदी विकास शुल्क और 2.5 फीसदी आढ़तिया कमीशन शामिल है। विरोधियों का कहना है कि व्यापर पर शुल्क हटा कर सरकार अप्रत्यक्ष रूप से बड़े कार्पोरेट्स को मदद पहुंचा रही है और सरकारी मंडियों के साथ असमानता का व्यवहार किया जा रहा है। हालाँकि ये विरोध सिर्फ अटकल पर आधारित है कि आगे चल कर क्या होगा।

ये भी पढ़ें- 1000 मौतों से हाहाकार: भारत में तबाही का मंजर देख हिले लोग, सदमे में डॉक्टर

विवाद समाधान: एक विरोध सेक्शन 8 को लेकर है जिसमें विवादों को सुलझाने की व्यवस्था की गयी है। इस सेक्शन में कहा गया है कि किसान और व्यापारी के बीच लेनदें को लेकर अगर कोई विवाद होता है तो दोनों पक्ष एसडीएम के यहाँ प्रार्थना पत्र देंगे। एसडीएम इस प्रार्थना पत्र को एक समझौता बोर्ड के समक्ष रिफर करेगा।

ये समझौता बोर्ड एसडीएम द्वारा नियुक्त किया जाएगा जिसका फैसला दोनों पक्षों पर बाध्यकारी होगा। विरोधियों का कहना है कि समझौते का प्रस्तावित सिस्टम का किसानों के खिलाफ दुरुपयोग किया जा सकता है। ये भी विरोध है कि किसानों को सिविल कोर्ट जाने की इजाजत अध्यादेश में नहीं दी गयी है।

मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020

इस विधेयक के जरिये देशभर में कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग की व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है। अनुबंधित किसानों को गुणवत्ता वाले बीज की आपूर्ति सुनिश्चित करना, तकनीकी सहायता और फ़सल स्वास्थ्य की निगरानी, ऋण की सुविधा और फ़सल बीमा की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। अनुबंधित किसानों को सभी प्रकार के कृषि उपकरणों की सुविधाजनक आपूर्ति करने और नियमित और समय पर भुगतान सुनिश्चित करने की व्यवस्था बनाई जायेगी।

ये भी पढ़ें- देखें वीडियो: क्या है China, America, Australia और Turkey के ghost town कहानी

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में जमीन पर किसान का ही अधिकार रहेगा, फसल खराब होने पर उसके नुकसान की भरपाई किसानों को नहीं बल्कि एग्रीमेंट करने वाले पक्ष या कंपनियों को करनी होगी। किसान कंपनियों को अपनी कीमत पर फसल बेचेंगे। किसानों को देय भुगतान राशि के उल्लेख सहित डिलीवरी रसीद उसी दिन किसानों को दी जाएगी। मूल्य के संबंध में व्यापारियों के साथ बातचीत करने के लिए किसानों को सशक्त बनाने के लिए प्रावधान है कि केंद्र सरकार, किसी भी केंद्रीय संगठन के माध्यम से, किसानों की उपज के लिए मूल्य जानकारी और बाजार सूचना प्रणाली विकसित करेगी।

कोई विवाद होने पर निपटाने के लिए बोर्ड गठित किया जाएगा, जो 30 दिनके भीतर समाधान करेगा। इस विधेयक का उद्देश्यय ढुलाई लागत, मंडियों में उत्पाबदों की बिक्री करते समय प्रत्यतक्ष अथवा अप्रत्येक्ष रूप से लिए गए विपणन शुल्कोंर का भार कम करना तथा फसल के बाद नुकसान को कम करने में मदद करना है। किसानों को उपज की बिक्री करने के लिए पूरी आज़ादी रहेगी।

आवश्यक वस्तु अधिनियम संशोधन बिल

आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन किया गया है और अब खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्पादों पर से स्टॉक लिमिट हटा दी गई है। बहुत जरूरी होने पर ही इन पर स्टॉक लिमिट लगाई जाएगी। ऐसी स्थितियों में राष्ट्रीय आपदा, सूखा जैसी अपरिहार्य स्थितियां शामिल हैं। इसके अलावा अगर सब्जियों की कीमतें दोगुनी हो जाएँगी या खराब न होने वाली फसल की रिटेल कीमत 50 फीसदी बढ़ जाएगी तो स्टॉक लिमिट लागू होगी।

ये भी पढ़ें- किसान बिलः राजनैतिक हित साधने की होड़, जारी हैं दांव पेंच

प्रोसेसर या वैल्यू चेन पार्टिसिपेंट्स के लिए ऐसी कोई स्टॉक लिमिट लागू नहीं होगी। उत्पादन, स्टोरेज और डिस्ट्रीब्यूशन पर सरकारी नियंत्रण खत्म होगा। इसके पीछे तर्क है कि सरकार सामान्य अवस्था में इनके संग्रह करने और वितरण करने पर अपना नियंत्रण नहीं रखेगी। इसके जरिए फूड सप्लाई चेन को आधुनिक बनाया जाएगा साथ ही कीमतों में स्थिरता बनाए रखेगा।

वर्तमान व्यवस्था में आवश्यक वस्तु अधिनियम के कारण कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, प्रोसेसिंग और एक्सपोर्ट में निवेश कम होने की वजह से किसानों को लाभ नहीं मिल पाता है। अगर फसल जल्दी सड़ने वाली है और बंपर पैदावार हुई है तो किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। विधेयक के प्रावधानों से किसानों को सही मूल्य मिल सकेगा क्योंकि बाज़ार में स्पर्धा बढ़ेगी।

क्या मंडियां खत्म हो जाएंगी?

Farmers भारत में किसानों की हालत (फाइल फोटो)

सरकार ने साफ किया है कि मंडी के साथ सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी। नए कानून से मंडियां भी प्रतिस्पर्धी होंगी और किसानों को उपज का बेहतर मूल्य मिलेगा। राज्यों के अधिनियम के अंतर्गत संचालित मंडियां भी राज्य सरकारों के अनुसार चलती रहेंगी। राज्य के एग्रीकल्चारल प्रोड्यूस मार्केट कमिटी (एपीएमसी) एक्ट को नया कानून बिल्कुल भी छेड़ता नहीं है। बिल का विरोध कर रहे किसानों को डर है कि नए कानून के बाद एमएसपी पर खरीद नहीं होगी।

ये भी पढ़ें- कोरोना वायरसः लगने लगी वैक्सीन, कामयाबी कोई इंफेक्शन नहीं, दुष्परिणाम नहीं

विधेयक में इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है कि मंडी के बाहर जो खरीद होगी वह एमएसपी से नीचे के भाव पर नहीं होगी। चूंकि बाहर बेचने पर कोई टैक्स नहीं देना होगा, ऐसे में किसानों को फायदा मिल सकता है। हालांकि अगर बाहर दाम कम मिलते हैं तो किसान मंडी आकर फसल बेच सकते हैं जहां उन्हें एमएसपी मिलेगा।

सरकार ने फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान किया

narendra Singh Tomar कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर (फाइल फोटो)

कृषि सुधार के विधेयकों को लेकर मचे घमासान के बीच सरकार ने फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान कर दिया है। कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति ने किसानों की चिंता को देखते हुए एक महीने पहले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य मंजूरी दे दी है। एमएसपी में 50 रुपये से 300 रुपये प्रति क्विंटल तक की वृद्धि की है। किसानों से उनके अनाज की खरीदी एफसीआई व अन्य सरकारी एजेंसियां एमएसपी पर करेंगी।

ये भी पढ़ें- RBI का बड़ा ऐलान: अब बदलेंगे बैंक के ये नियम, ऐसे होगा पेमेंट का नया तरीका

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के अनुसार, रबी मौसम के लिए चने की एमएसपी में 225 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है और यह बढ़कर 5100 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। मसूर का न्यूनतम समर्थन मूल्य 300 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया गया है और यह 5100 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। उन्होंने बताया कि सरसों के एमएसपी में 225 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है और यह बढ़कर 4650 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। जौ के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 75 रुपये की वृद्धि के बाद यह 1600 रुपये प्रति क्विंटल और कुसुम के एमएसपी में 112 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि के साथ यह 5327 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है।

Newstrack

Newstrack

Next Story