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एक रात गायब हो गई 115 यात्रियों से भरी ट्रेन, सुबह शहर में कोई नहीं था
दोस्तों आज हम आपको एक ऐसे भूतिया शहर के बारे में बताने जा रहे हैं जो 1964 की उस भयानक रात के पहले तक आबाद था वहां रेलवे स्टेशन भी था लेकिन उस रात के बाद उस शहर में कोई जिंदा नहीं बचा यहां तक कि वहां के स्टेशन में खड़ी ट्रेन में सवार 115 यात्री और कोई रेलकर्मी भी जिंदा नहीं बचा।
रामकृष्ण बाजपेयी
लखनऊ : दोस्तों आज हम आपको एक ऐसे भूतिया शहर के बारे में बताने जा रहे हैं जो 1964 की उस भयानक रात के पहले तक आबाद था वहां रेलवे स्टेशन भी था लेकिन उस रात के बाद उस शहर में कोई जिंदा नहीं बचा यहां तक कि वहां के स्टेशन में खड़ी ट्रेन में सवार 115 यात्री और कोई रेलकर्मी भी जिंदा नहीं बचा। अगली सुबह शहर वीरान था। कोई बताने वाला नहीं था क्या हुआ उस रात। अब शाम के बाद वहां कोई नहीं रुकता कहते हैं जो रुकता है वह जिंदा नहीं देखा गया।
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भगवान राम से जुड़े तमाम प्रसंग
आप जानते हैं कि यह शहर हिन्दुओं के बड़े तीर्थ रामेश्वरम से मात्र 25 किमी की दूरी पर था। और भगवान राम से जुड़े तमाम प्रसंग यहां मौजूद हैं। ऐसा कहा जाता है कि लंका विजय के लिए राम सेतु इसी क्षेत्र से बना था यहां से लंका की दूरी मात्र 35 किमी है।
बाद में जब राम अयोध्या के लिए प्रस्थान कर रहे थे तब लंका के राजा विभीषण के निवेदन करने पर भगवान राम ने अपने धनुष के एक सिरे से इस सेतु को तोड़ दिया था। ताकि लंका निरापद रहे। राम के द्वारा धनुष के सिरे यानी कोटि से इस सेतु को तोड़े जाने के इस कारण इस स्थान का नाम धनुषकोटि पड़ा। जो बाद में धनुषकोडी हो गया।
देश के इस भूतिया शहर के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है। आइए हम आपको बताते हैं 1964 तक हर तरह से आबाद एक जीवंत शहर था, यहां रेलवे स्टेशन भी था लेकिन आज यह पूरी तरह से वीरान और भूतिया शहर है। शाम को अंधेरा होने के बाद इस शहर में अपवाद के लिए भी कोई एक भी बंदा नहीं रहता। कहते हैं जो रुका वह जिंदा नहीं बचा। पूरा शहर टोटल खाली।
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धनुषकोडी वो जगह
रात में इस शहर के खंडहरों से होकर निकलने वाली तेज हवाएं सिर्फ सायं-सायं करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि धनुषकोडी वो जगह है, जहां से भगवान राम ने समुद्र के ऊपर रामसेतु का निर्माण शुरू किया था।
कहा जाता है कि इसी जगह पर भगवान श्रीराम ने हनुमान को एक पुल का निर्माण करने का आदेश दिया था, जिसपर से होकर वानर सेना लंका में प्रवेश कर सके। धनुषकोडी में भगवान राम से जुड़े कई मंदिर आज भी हैं।
1964 की उस रात में आए खतरनाक चक्रवाती तूफान से पहले धनुषकोडी भारत का एक बेहतरीन पर्यटन स्थल हुआ करता था। तब धनुषकोडी में रेलवे स्टेशन, अस्पताल, चर्च, होटल और पोस्ट ऑफिस सब कुछ था।
उस तूफानी रात में आए चक्रवात ने सबकुछ खत्म कर दिया। कहा जाता है कि इस दौरान सौ से अधिक यात्रियों वाली एक रेलगाड़ी भी समुद्र में डूब गई। कोई नहीं बचा। तब से यह जगह सुनसान हो गई।
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तमिलनाडु में हिंदुओं के सर्वाधिक पवित्र तीर्थों में से एक रामेश्वरम मंदिर से 25 किमी दूर स्थित इस शहर तक आप इस मंदिर के पास से हर 5 मिनट बाद चलने वाले ऑटो से जा सकते हैं या हर घण्टे पर चलने वाली तमिलनाडु राज्य परिवहन की बस से।
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भूतिया सफर
रामेश्वरम से निकलते ही आपका भूतिया सफर शुरू हो जाता है जैसे ही आप चार-पांच किलोमीटर आगे बढ़ते हैं आपको अजीब से अनुभव होने लगते हैं ऐसा लगने लगता है जैसे आप रेत के एक ऐसे समंदर में घुस गए हैं। जहां सिवाय रेत के कुछ नहीं है। चारों तरफ मीलों दूर तक तक जहां तक आपकी नजर जाए रेत ही रेत दिखती है या खंडहर।
रामेश्वरम मंदिर से चलने के बाद करीब 8-9 किलोमीटर दूर ही ‘हाई व्हे’ नाम की एक खंडहर हो गई मंदिर संरचना है। जहां भगवान राम, लक्ष्मण, हनुमान एवं विभीषण की मूर्तियां हैं। इसी जगह विभीषण राम की शरण में आए थे। यहीं भगवान राम ने सागर के जल से उनका अभिषेक किया था।
धनुषकोड़ी के एक तरफ हिंद महासागर तो दूसरी तरफ बंगाल की खाड़ी है। दोनों समुद्रों के बीच औसतन 30 से 35 मीटर चौड़ा करीब आधा किमी लंबा भू-भाग समुद्र के अंदर निकला हुआ है, यह वाकई सेतु सरीखी संरचना लगती है। इसके बाद ही लगभग एक किमी पर समुद्र के अन्दर एक टापू दिखाई देता है यही धनुषकोड़ी है।
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कहते हैं कि सात हज़ार साल पहले तक इस राम सेतु से लोग श्रीलंका तक आया जाया करते थे। गूगल मैप में भी रामसेतु की संरचना दिखती है। किन्तु बाद में हुए समुद्री परिवर्तनों यानी चक्रवात आदि के कारण समुद्र की गहराई बढ़ गई। आज भी इस स्थान पर यह गहराई तीन फीट से लेकर 30 फीट के बीच है।
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मध्यरात्रि धनुषकोड़ी के लिए बन गई कालरात्रि
चलिए तारीख की बात करे तो 22 दिसम्बर, 1964 से पहले तक धनुषकोड़ी एक सर्व सुविधा सम्पन्न जीवंत शहर था। यहां करीब दो हजार लोगों की जनसंख्या थी। ऐतिहासिक दस्तावेज बताते हैं कि यह एक व्यस्त बन्दरगाह भी था जहां से श्रीलंका सहित अन्य कई देशों से व्यापार होता था।
एक रेलवे स्टेशन भी था जो कि भारतीय सीमा का अंतिम रेलवे स्टेशन था। यहां से पम्बन के लिए धनुषकोड़ी लोकल पैसेंजर गाड़ियों के अलावा मद्रास एग्मोर जंक्शन तक के लिए रेल सेवा उपलब्ध थी। इसके अलावा अस्पताल, हायर सैकेण्डरी स्कूल, पुलिस स्टेशन, पोस्ट ऑफिस जैसी बुनियादी सेवाएं भी उपलब्ध थीं।
लेकिन फिर आई तूफानी रात जिसमें यह हंसता खेलता शहर कुदरत की निर्ममता का शिकार हो गया। इस घटना के दो दिन बाद ही गुड फ्राईडे था। यानी वह मंगलवार का दिन था। चूंकि क्षेत्र का सबसे बड़ा चर्च भी यहीं था इसलिए तैयारियां जोरों पर चल रही थीं।
22 और 23 सितंबर की मध्य रात्रि धनुषकोड़ी के लिए कालरात्रि बन गई। एक रात में हंसता-खेलता शहर हमेशा-हमेशा के लिए एक भूतिया शहर में तबदील हो गया। उस रात हाई साइक्लोन से रामेश्वरम धनुषकोड़ी की रेल लाइन पूरी तरह से नष्ट हो गई थी। यही नहीं उस समय स्टेशन में खड़ी एक पैसेंजर ट्रेन में सवार 115 यात्री और रेलवे स्टाफ के सभी लोग मारे गए। पूरे शहर में कोई जिंदा नहीं बचा।
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अगली सुबह एक हंसता खेलता शहर मुर्दाघर में तब्दील हो चुका था। आज भी उस ध्वंस के चिन्ह मौजूद हैं। धनुषकोड़ी से आगे श्रीलंका का शहर तलाई मन्नार स्थित है। पहले जो लोग श्रीलंका जाते थे वे धनुषकोड़ी रेलवे स्टेशन पर उतरकर स्टीमर की सहायता से तलाई मन्नार स्टेशन तक जाते थे। यहां से तलाई मन्नार महज 35 किलोमीटर दूर है।
50 साल तक भूतिया शहर में तब्दील रहे धनुषकोडी के दिन अब शायद बहुर जाएं क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर जब इस भूतिया शहर पर पड़ी तो उन्होंने इस शहर में प्राण गंवाने वाली आत्माओं की शांति के लिए इस शहर दोबारा बसाने का निर्णय लिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस वर्ष 1 मार्च 2019 को रामेश्वरम और धनुषकोडी के बीच रेल लाइन की आधारशिला रख दी है। उन्होंने कहा कि 1964 में आपदा के बाद यह रेल लाइन बर्बाद हो गई थी। इस पर 50 साल से कोई ध्यान नहीं दिया गया था। अब इस पर काम होगा।
एक बार फिर से व्यवस्था बहाल हो जाने पर धनुषकोड़ी रेलवे स्टेशन से एक बार फि र समुद्री मार्ग के जरिये श्रीलंका का सफर होगा लोगों के आने जाने से वीराने और भूतिया शहर का तमगा इस शहर से उतर सकेगा।
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इस परियोजना के तहत तमिलनाडु के मंडपम से रामेश्वरम के बीच 2 किलोमीटर लंबा समुद्र पर नया सेतु भी बनाया जाएगा जो पहले के सेतु से 3 मीटर ऊंचा होगा इससे ज्वार भाटा के दौरान रेल परिचालन पर असर नहीं पड़ेगा।
समुद्र के बड़े जहाज स्टीमर के जाने के लिए यहां पहली बार वर्टिकल लिफ्ट की तर्ज पर सेतु का 63 मीटर लंबा हिस्सा रेल लाइन से ऊपर उठ जाएगा। जबकि रेल लाइन के दोनों छोर और उठने वाले हिस्से पर कंट्रोल के लिए टावर बनेंगे।