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कोचिंग छात्रों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति इनके लिए है खतरे की घंटी

छात्रों में आत्महत्या की बढ़ रही प्रवृत्ति उन माता पिता के लिए जो अपने नौनिहालों की रुचि और क्षमता जाने बिना उनके ऊपर एक ऐसे कम्पटीशन को निकालने की चुनौती का भार रख देते हैं जो उसकी क्षमता से बाहर होता है। इसमें दूसरे भाई बहनों से प्रतिस्पर्धा कराया जाना भी शामिल है।

SK Gautam
Published on: 4 Jan 2020 10:55 AM GMT
कोचिंग छात्रों में बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति इनके लिए है खतरे की घंटी
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रामकृष्ण वाजपेयी

लखनऊ: देश में कोचिंग की राजधानी कहा जाने वाले कोटा में छात्रों की बढ़ती आत्महत्याएं एक खतरे की घंटी हैं। 2019 में 15-18 के करीब छात्रों ने खुदकुशी की है। छात्रों में आत्महत्या की बढ़ रही प्रवृत्ति उन माता पिता के लिए जो अपने नौनिहालों की रुचि और क्षमता जाने बिना उनके ऊपर एक ऐसे कम्पटीशन को निकालने की चुनौती का भार रख देते हैं जो उसकी क्षमता से बाहर होता है। इसमें दूसरे भाई बहनों से प्रतिस्पर्धा कराया जाना भी शामिल है। जैसे तुम्हारी बहन देखो मेडिकल की तैयारी कर रही है तुम भी करो। या तुम्हारा भाई इंजीनियर या तुम्हारे पापा इंजीनियर तुम भी इंजीनियर बनोगे। इसके अलावा साथियों के बीच प्रतिस्पर्धा कराने में अध्यापक भी पीछे नहीं रहते वह बच्चों को लगातार मेडिकल या इंजीनियरिंग के लिए मेहनत करने पर जोर देते रहते हैं जैसे इसके अलावा कोई भविष्य है है नहीं।

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कई बार खुद बच्चे भी साथियों को दौड़ता देख कर कन्फ्यूजन के शिकार हो कर बिना कुछ सोचे समझे भागना शुरू कर देते हैं। ऐसे बच्चे जब अपने घर गांव बस्ती से निकल कर कोटा में कोचिंग्स के समुंदर में आते हैं और पढ़ाई के उस दबाव को नहीं झेल पाते हैं तो उन्हें लगता है कि घर जाकर क्या बताएंगे। कई बार ऐसे बच्चों पर यह भार भी होता है कि उन्हें पढ़ाने के लिए पिता ने घर बेच दिया या खेत बेच दिए या फिर दोनो गिरवी रख दिये। ये सब अवसाद का कारण बनता है जिसकी परिणति दुखद होती है।

कोटा की यह कड़वी हकीकत है।

कोटा में एक जानकारी के मुताबिक अब तक 55 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। यह संख्या अधिक भी हो सकती है। साल दर साल ये आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं। 2018 तक ये संख्या 37-40 के बीच बतायी गई थी। यानी 2019 तक इस आंकड़े में 15-18 की वृद्धि हुई है। समय बीतने के साथ इस भयावह आंकड़े को रोकने के लिए तमाम संगठन छात्रों के बीच काम करने के लिए आगे आए हैं जिनका मकसद छात्रों के दबाव को कम करना है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि राजस्थान का कोटा शहर छात्रों के बीच आत्महत्या के केंद्र के रूप में भी उभर रहा है। इसे आत्महत्या की राजधानी के रूप में भी देखा जाने लगा है।

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चौतरफा दबाव झेलता है तो उसका दम घुटने लगता है

बड़े अरमानों से देश की मेधा यानी मेधावी छात्र जब सपनों के इस शहर में आकर हकीकत से रूबरू होता है और चौतरफा दबाव झेलता है तो उसका दम घुटने लगता है। मां बाप का उम्मीदों भरा चेहरा उसका दिल बैठाने लगता है। हकीकत कड़वी होती है। उसे झेल नहीं पाता और सारी परेशानियों से निजात के लिए मौत का खौफनाक रास्ता अख्तियार कर लेता है।

कोटा मेडिकल और इंजीनियरिंग परीक्षाओं में बेहतर नतीजों के लिए मशहूर रहा है। इस शहर में तीन सौ से अधिक कोचिंग इंस्टीट्यूट्स हैं। इन संस्थानों में एआईआईएमएस/नीट/जेआईएमपीईआर/जेईई मेन्स/जेईई एडवांस्ड की परीक्षाओं के लिए मेधावी छात्रों को तैयार किया जाता है।

इसके लिए कुछ प्रसिद्ध कोचिंग संस्थान ऐलेन, रेसॉनेंस, विब्रांट, कैरियर पाइंट और कई अन्य हैं। हर साल करीब एक लाख छात्र अपने सपनों को हकीकत में बदलने के लिए कोटा आते हैं। लेकिन प्रत्येक छात्र इन परीक्षाओं को जीत पाने में सक्षम नहीं हो पाता। ऐसे में वह अपने घर वापस चला जाता है या फिर दुनिया छोड़ देता है।

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एक नजर में आत्महत्याएं

24 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर की 18 साल की दिशा सिंह ने फांसी पर लटक कर जान दे दी थी। छात्रा की खुदकुशी की सूचना पर पुलिस हॉस्टल पहुंच कर छात्रा के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। पोस्टमार्टम हाउस के बाहर छात्रा की बड़ी बहन ने बताया कि दिशा मेडिकल परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी।

इस घटना के अगले दिन बिहार के 17 साल के जितेश गुप्ता ने हॉस्टल के अपने कमरे में पंखे से लटककर जान दे दी। वह आईआईटी जेईई एंट्रेंस के लिए कोचिंग कर रहा था। वह पिछले तीन साल से एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में तैयारी कर रहा था।

इसके अलावा एक लंबी लिस्ट है आईआईटी की तैयारी कर रहे राजस्थान के बूंदी जिले के दीपक दादिच ने कोचिंग इंस्टीट्यूट के कमरे में फांसी लगा ली, हरियाणा के भिवानी जिले के निखिल ने कोटा में चंबल ब्रिज से कूदकर जान दे दी। वह ऐलेन कोचिंग से मेडिकल की तैयारी कर रहा था।

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क्या कहते हैं डाक्टर

इस संबंध में कुछ डॉक्टरों का कहना है कि कोटा कोचिंग पढ़ने के लिए आने वाले छात्रों में जो कामयाब होते हैं निसंदेह वह निसंदेह अपने माता पिता को गर्व की अनुभूति कराते हैं लेकिन जिनका सलेक्शन नहीं होता है वह असफल नहीं होते। संभव है वह दूसरे किसी काम के लिए बने हैं। वास्तव में दो प्रयासों के बाद कामयाब न होने पर आत्म निरीक्षण की जरूरत होती है कि मै क्या कर सकता हूं। बहुत से ऐसे काम हैं जो डाक्टर और इंजीनियर नहीं करते क्या वह सब असफल हैं।

आईएएस व पीसीएस का एग्जाम क्रैक करने वाले सब डाक्टर इंजीनियर नहीं होते। बैंक अधिकारी भी इस डिग्री की धारक नहीं होते। सैकड़ों दूसरी नौकरियां और दूसरे काम हैं। अमित शाह और मोदी डाक्टर इंजीनियर नहीं हैं। मनमोहन सिंह भी डाक्टर इंजीनियर नहीं थे। वह पीएचडी कर प्रोफेसर बने और सफल कैरियर बनाया।

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डाक्टर इंजीनियर की तैयारी करने वाले छात्रों को यह समझने की जरूरत है कि उनके माता पिता डाक्टर इंजीनियर के लिए उनके सलेक्शन से कहीं अधिक उन्हें चाहते हैं। माता पिता अपने बच्चों को सफल देखना चाहते हैं किसी एंट्रेंस परीक्षा की कामयाबी में उनकी दिलचस्पी उतनी नहीं होती।

मेडिकल या इंजीनियरिंग एंट्रेंस पास कर लेना सिर्फ एक बाधा पार करना है। इसके बाद स्पेशलिस्ट या सुपर स्पेशलिस्ट बनने की बाधाएं बाकी हैं। जितने भी पेशे हैं सबका अपना एक वर्ग है। हर व्यवसाय हरेक के लिए नहीं होता। आपको जो पसंद आए आप उसमें काम करते हैं। खुद को जबरन किसी काम के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

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मनोचिकित्सक की भूमिका

इस मामले में मनो चिकत्सक डा. अजय तिवारी का कहना है कि अपने देश में चाइल्ड साइकोलाजिस्ट की बहुत कमी है। जो हैं भी उनका बेहतर इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। उनका कहना है कि बच्चों को शुरू में ही रुझान जानने की जरूरत होती है। एक कलाकार को फुटबालर नहीं बना सकते या क्रिकेटर को आईएएस नहीं। एक इंजीनियर डाक्टर नहीं बन सकता।

वस्तुतः जब तक स्कूलिंग स्तर पर इसकी जांच की व्यवस्था नहीं होगी तब तक गड़बड़ ठीक करना चुनौती है। अभिभावकों को बच्चे की क्षमता को समझ कर उस दिशा में बच्चे को बढ़ाना होगा न कि अपने सपनों का जरिया बच्चों को बनाना। प्रतिस्पर्धा हर दिन बढ़ रही है। ऐसे में आवश्यक है कि सरकारी स्तर पर चाइल्ड साइकोलाजिस्ट की भूमिका को महत्व दिया जाए।

तेजी से फैलती कोटा की कोचिंग इंडस्ट्री पर

कोटा में कोचिंग इंडस्ट्री अपना फैलाव करते हुए पांच हजार करोड़ की हो चुकी है। ये संस्थान देश भर के मेधावी छात्रों को रोजगार के अवसर मुहैया कराने या उन्हें उन फील्ड्स के लिए तैयार करने पर काम कर रहे हैं। इस फील्ड में काम करने वाले व्यवसायियों का मानना है कि कोटा शिक्षा की काशी बनता जा रहा है यदि सरकार कुछ सहूलियतें दे दे और यहां के एयरपोर्ट का विकास कर दे तो 25 हजार करोड़ का निवेश पहुंचने में देर नहीं लगेगी।

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कोटा में एक समय कुछ नहीं था यह राजस्थान में चंबल नदी के किनारे बसा 12 लाख की आबादी वाला उभरता हुआ औद्योगिक शहर था। यहां का पत्थर और साड़ी उद्योग मशहूर था। जिसने खुद को बहुत तेजी से देश के कोचिंग हब के रूप में खुद को बदला। आज यहां पांच हजार करोड़ की कोचिंग इंडस्ट्री है। यहां की कोचिंग इंडस्ट्री की ग्रोथ सात से दस फीसदी सालाना है।

देश के करीब दो करोड़ छात्र इंजीनियरिंग, मेडिकल और ला कालेजों में दाखिले के लिए यहां का रुख करते हैं। चूंकि सरकार और प्राइवेट स्कूल छात्रों की जरूरतों को पूरा कर नहीं पाते इसलिए वह अपने सपने पूरे करने यहां आते हैं। वर्तमान में कोटा में करीब दो लाख छात्र विभिन्न कोचिंगों में अध्ययन कर रहे हैं।

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