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राजनीति छोड़ना चाहते थे नरसिम्हा राव, हुआ कुछ ऐसा, बन गए प्रधानमंत्री
देश के पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव की आज जयंती है। पी. वी. नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून साल 1921 को तेलंगाना के वारंगल जिले में हुआ था। नरसिम्हा राव को 'भारत के आर्थिक सुधारों का जनक' भी कहा जाता है।
लखनऊ: देश के पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव की आज जयंती है। पी. वी. नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून साल 1921 को तेलंगाना के वारंगल जिले में हुआ था। नरसिम्हा राव को 'भारत के आर्थिक सुधारों का जनक' भी कहा जाता है। राव देश के नौवें प्रधानमंत्री थे। ऐसा माना जाता है कि उनके प्रधानमंत्री बनने में उनके भाग्य का बहुत बड़ा हाथ रहा। नरसिंह राव तो सारा सामान पैक अपने गांव लौट रहे थे, लेकिन भाग्य का कुछ ऐसा खेल रहा कि वो देश के प्रधानमंत्री बने।
राजनीति से संन्यास लेकर गांव लौटना चाहते थे राव
दरअसल, अप्रैल 1991 में देश के अखबारों में खबर आई कि पूर्व केंद्रीय मंत्री राव राजनीति से संन्यास लेकर आंध्र प्रदेश अपने गांव लौटना चाहते हैं। जहां पर वो अपनी बाकी की जिंदगी लिखने-पढ़ने में गुजारेंगे। राव दिल्ली के अपने बंगले को खाली करा सामाना पैक करा रहे थे। तभी 21 मई 1991 को एक ऐसी खबर आई, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया और राव की योजनाओं को बदलकर रख दिया।
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राजीव गांधी की हत्या के बाद बने प्रधानमंत्री
दरअसल, मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या हो गई थी। चेन्नई के पास श्रीपेराम्बदूर में भाषण देने गए राजीव गांधी एक बम ब्लास्ट में मारे गए थे। ऐसे में सहानुभूति की लहर के कारण कांग्रेस को निश्चय ही लाभ प्राप्त हुआ। लोकसभा चुनावों में परिणामों की जो स्थिति बनी, नरसिम्हा राव को कांग्रेस संसदीय दल का नेतृत्व प्रदान किया गया। कांग्रेस ने उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे उपयुक्त पाया।
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राव ने संभाली देश की बागडोर
इसके बाद राव की गांव जाने की योजना पीछे छुट गई और देश की बागडोर उनके हाथों में आ गई। जब राव देश के प्रधानमंत्री बने थे, उस वक्त देश की बहुत बुरी स्थिति थी। राव के सामने प्रधानमंत्री बनने के बाद दो बड़ी चुनौतियां थीं, लेकिन राव ने दोनों ही कामों को बखूबी संभाला। पहला था अल्पमत सरकार को चलाना और दूसरा देश क आर्थिक तंगी से उभारना। दोनों ही कामों को उन्होंने बखूबी संभाला।
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अर्थव्यवस्था को दिवालिया होने की कगार से उभारा
बता दें कि नरसिम्हा राव से पहले चंद्रशेखर भारत के प्रधानमंत्री थे और उनके कार्यकाल में भारत दिवालिया होने की कगार पर था। यहां तक कि कर्ज चुकाने के लिए भारत को अपना सोना तक गिरवी रखना पड़ गया था। जो कि भारत के लिए बहुत शर्मनाक स्थिति थी। लेकिन राव ने भारत को इस संकट से उभारा और भारत की अर्थव्यवस्था को इस खराब दौर से उबारने का उन्हीं को जाता है।
आलोचनाओं का होना पड़ा था शिकार
लेकिन इस दौरान उन्हें कई आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा। कांग्रेस पार्टी की तरफ से भी उन पर कई आरोप लगे। साथ ही उनके और सोनिया गांधी के बीच में इस तरह दरार आई कि वो कभी नहीं भर पाई। इस शुरुआत कब और कैसे हुई, इसके बारे में सटीक तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन कहा जाता है कि नरसिंव राव खिन्न थे कि सोनिया गांधी उनके कॉल को जरूरत से ज्यादा समय तक के लिए होल्ड कराती थीं। वहीं अगर वो मिलने जाते तो लंबे समय तक इंतजार कराती थीं। ऐसा कई बार होने के बाद उन्होंने अपने रास्ते अलग करने का फैसला किया।
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सोनिया गांधी का इंतजार करना प्रधानमंत्री पद की तौहीन होती
एक बार उन्होंने कई सालों बात इस बात का जिक्र एक नजदीकी पत्रकार से किया। उन्होंने कहा कि फोन पर सोनिया गांधी के देर से आने का इंतजार नरसिंह राव तो कर सकते थे लेकिन प्रधानमंत्री नहीं। अगर ऐसा होता तो ये प्रधानमंत्री पद की तौहीन होती। दोनों के बीच दूरियां काफी बढ़ती गईं। वहीं सोनिया गांधी के समर्थकों को लगता था कि राव जानबूझकर नेहरू-गांधी परिवार के विश्वस्त लोगों को हाशिए पर पहुंचाने के काम में लगे हैं।
विरोधियों ने लगाए कई तरह के आरोप
राव पर कांग्रेस में उनके विरोधियों ने कई तरह के आरोप भी लगाए। जब उन्होंने प्रधानमंत्री बनते ही रिजर्व बैंक के गर्वनर रह चुके मनमोहन सिंह को अपना वित्त मंत्री बनाया। तो देश में पहली बार बड़े पैमाने पर कई आर्थिक सुधार हुए, इस पर भी उनकी खूब आलोचनाएं हुईं। कांग्रेस में उनके विरोधियों ने आरोप लगाया कि राव देश को गांधी-नेहरू की नीतियों के खिलाफ ले जा रहे हैं।
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राव की नीतियों के कारण हुए ये सुधार
लेकिन यह उनकी नीतियों और उदारीकरण का ही परिणाम था कि देश में विकास की तस्वीर साफ-साफ बदलती दिखाई दी। जो आज के भारत की नींव बनीं। इनकी वजह से ही भारत को दुनिया में बड़ी आर्थिक ताकतों में गिना जाने लगा। देश में आर्थिक सुधार हुए और समृद्धि आने लगी।
यहीं नहीं कांग्रेस उन्हें 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले को उचित तरीके से नहीं संभाल पाने का भी दोषी ठहराती रही।
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कांग्रेस पार्टी में नहीं मिला सम्मान
कांग्रेस पार्टी में प्रधानमंत्री होने के नाते उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए था वो कभी नहीं मिला। प्रधानमंत्री रहते हुए जब पी. वी. नरसिम्हा राव ने 1996 के आम चुनावों में कांग्रेस की कमान संभाली तो पार्टी को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। इसके कुछ समय बाद उन्हें पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा। उनकी ही पार्टी ने राव को हाशिए पर सरका दिया। यहीं नहीं उनके निधन के बाद भी उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस के मुख्यालय पर नहीं रखा गया। कांग्रेस पार्टी के शासन में रहने के बाद भी निधन के बाद दिल्ली में उनके स्मारक के लिए जगह नहीं दी गई।राव का निधन 83 साल की उम्र में 2004 में हुआ था।
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भारत में आए ये सुधार
भारत में आर्थिक सुधारों की नीति की शुरुआत
'लाइसेंस राज' की समाप्ति
भारत की अर्थव्यवस्था को कंगालिया होने से उभरा।
अर्थव्यवस्था वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की तरफ बढ़ी।
देश की इकॉनमी को दुनिया के लिए खोल दिया।
भारत की विदेश नीति को दिया विस्तार।
भारतीय विदेश नीति के विस्तार की प्रक्रिया हुई शुरू।
भारत और अमेरिका ने मिलकर Malabar Naval Exercise शुरू की।
लुक ईस्ट पॉलिसी भी नरसिम्हा राव ने ही शुरू की।
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