लालू यादव: कभी बिहार से दिल्ली तक बोलती थी तूती, आज जी रहे ऐसी लाइफ
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव। एक दौर ऐसा भी था जब ये नाम दिल्ली से लेकर बिहार तक हर किसी की जुबान पर हुआ करता था। जब कहीं पर भी आरजेडी का जिक्र होता था तो बरबस ही लोगों की जुबान पर एक नाम आकर टिक जाता था और वो था लालू प्रसाद यादव।
पटना: राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव। एक दौर ऐसा भी था जब ये नाम दिल्ली से लेकर बिहार तक हर किसी की जुबान पर हुआ करता था। जब कहीं पर भी आरजेडी का जिक्र होता था तो बरबस ही लोगों की जुबान पर एक नाम आकर टिक जाता था और वो था लालू प्रसाद यादव।
वहीं लालू प्रसाद यादव जिन्होंने आरजेडी की स्थापना की और बाद में अपनी पार्टी के दम पर चुनाव जीतने के बाद बिहार के सीएम बने।
बाद में समय बदला तो केन्द्रीय रेल मंत्री भी बने। लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था। उन पर सीएम रहने के वक्त चारा घोटाले का आरोप लगा और आज वे जेल में सजा काट रहे हैं।
लालू प्रसाद ने जब राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी का गठन किया था, तब उनका दमखम इतना था कि उस वक्त के बड़े-बड़े नेता भी लालू यादव की काट नहीं तलाश पाए थे।
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ऐसे हुई थी आरजेडी की स्थापना
बिहार की सियासत को करीब से देखने वाले जानकार बताते हैं कि आरजेडी का गठन 5 जुलाई 1997 को दिल्ली में हुआ था। तब लालू प्रसाद यादव, रघुवंश प्रसाद सिंह, कांति सिंह समेत 17 लोकसभा सांसद और 8 राज्यसभा सांसदों की मौजूदगी में भारी संख्या में कार्यकर्ता व समर्थकों का दिल्ली में जमावड़ा लगा था।
लालू प्रसाद यादव को आरजेडी की स्थापना के साथ ही पार्टी का अध्यक्ष भी सभी की सहमति से चुना गया था। लालू आज भले ही चारा घोटाले में जेल में सजा काट रहे हो लेकिन वो आज भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर बने हुए हैं।
लालू का अब तक राजनीतिक सफर
लालू प्रसाद यादव 11 जून, 1948 को बिहार के गोपालगंज में पैदा हुए था, यही से उन्होंने आगे चलकर रायसीना तक की मंजिल तय की थी। उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई पूरी की। देश में जब जेपी आन्दोलन शुरू हुआ तो लालू पटना यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ के अध्यक्ष के पद पर तैनात थे।
इस पद पर रहते हुए वो जेपी आंदोलन से भी जुड़ गए। ये वहीं वक्त था जब लालू जनता पार्टी के नेताओं के करीब आ गए। इसका परिणाम आगे चलकर ये रहा कि लालू 29 साल की उम्र में ही सांसद बनकर लोकसभा पहुंच गये।
लालू यादव ने 1977 के आम चुनाव में भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव जीता था। इमरजेंसी के दौरान कांग्रेस विरोधी बयार बही और केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी के गठबंधन वाली सरकार बन गई।
लेकिन इसके दो साल बाद ही ये सरकार ही बच नहीं पाई और उसे कुर्सी छोडनी पड़ी। इस तरह जनता दल भी बिखर गया और केंद्र में कांग्रेस फिर से सत्ता पर काबिज हो गई।
1989 में सेकुलर छवि के नेता के तौर पर उभरे थे लालू
लालू यादव ने क्षेत्रीय राजनीति करने का निर्णय किया और 1980 में बिहार विधानसभा चुनाव में उतर गये। 1985 में लालू विधानसभा में नेता विपक्ष बने। जबकि दूसरी तरफ केंद्र की राजनीति ने फिर टर्न लिया और वीपी सिंह के नेतृत्व में जेपी के वक्त के दलों को एक जुट कर जनता दल बनाया गया।
1989 आते-आते बिहार के भागलपुर जिले में दंगे हुए। यही से लालू को अपने आप को सेकुलर छवि के नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करने में कामयाबी हासिल हुई।
परिणाम स्वरूप 1990 में जब बिहार में बीजेपी की मदद से जनता दल की सरकार बनी तो सीएम पद को लेकर अनबन शुरू हो गया। सियासी जानकार बताते हैं यही से लालू की किस्मत पलटने ली।
दरअसल हुआ यूं कि केंद्र में बीजेपी के मदद से चल रही जनता दल की सरकार संभाल रहे तत्कालीन पीएम वीपी सिंह चाहते थे कि राम सुंदर दास को कुर्सी मिले जबकि चंद्रशेखर रघुनाथ झा का समर्थन कर रहे थे।
इस विवाद को खत्म करने के लिए डिप्टी पीएम देवी लाल ने लालू प्रसाद यादव का नाम आगे बढ़ा। 10 मार्च 1990 को लालू यादव पहली बार बिहार के सीएम बन गए।
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ऐसे बने सीएम
सियासी जानकारों के मुताबिक लालू ने 23 सितंबर 1990 समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी की यात्रा को रोकने का काम किया था और उन्हें गिरफ्तार भी कराया था।
इस बात से नाराज होकर बीजेपी ने जनता दल सरकार से समर्थन वापस ले लिया। वीपी सिंह की सरकार तो गिर गई लेकिन लालू यादव डैमेज कंट्रोल करने में सफल रहे।
जनता दल को 1995 के विधानसभा चुनाव में जीत मिली और लालू यादव बिहार के सीएम बने। हालांकि 1997 में जब लालू यादव का नाम चारा घोटाले में आया और उनके नाम अरेस्ट वॉरेंट जारी हो गया तो जनता दल में ही उनके खिलाफ विरोध के स्वर सुनाई देने लगे।
साल 2000 में आरजेडी ने बजाया था बंपर जीत का डंका
जानकार बताते हैं कि लालू यादव ने अपने बलबूते पर 1997 में जिस आरजेडी को खड़ा किया था, उसने अगले ही विधानसभा चुनाव में करिश्मा कर दिया।
2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी ने 324 में 124 सीटों पर विजय प्राप्त की। वहीं बीजेपी 67, कांग्रेस 23, जेडीयू 21 और समता पार्टी 34 सीटों पर सिकुड़ गई। आरजेडी के पास बहुमत नहीं था। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार थी।
बिहार में नीतीश को बीजेपी ने सपोर्ट किया, कई अन्य दल भी उनके साथ आ गए। नीतीश कुमार किसी तरह से सीएम तो बन गये लेकिन विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाए और 7 दिन बाद ही कुर्सी गंवानी पड़ी।
ये लालू यादव के कुशल प्रबन्धन का ही नतीजा था कि 2005 तक पांच साल उनकी पत्नी राबड़ी देवी बिहार की सीएम रहीं।
पत्नी को बनाया सीएम और खुद बने रेल मंत्री
दूसरी तरफ लालू यादव ने 2004 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की और केंद्र की यूपीए सरकार में वो रेल मंत्री बन गए। लेकिन जब 2005 में विधानसभा चुनाव हुआ।
तो आरजेडी के सामने समता पार्टी-लोक शक्ति पार्टी व अन्य के विलय से अक्टूबर 2003 में बनी जनता दल यूनाइटेड थी।
आरजेडी मात्र 54 सीटों पर सिकुड़ गई जबकि जेडीयू 88 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। बीजेपी को 55 सीट मिलीं। नीतीश कुमार फिर से सीएम बने। तब से अब तक यानी 15 साल से नीतीश ही बिहार के सीएम की कुर्सी पर काबिज हैं।
जब नीतीश ने छोड़ दिया साथ
इस बीच 2015 में आरजेडी ने नीतीश कुमार के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और गठबंधन की सरकार बनाई। लेकिन नीतीश ने बहुत ही कम समय में आरजेडी से रिश्ता खत्म कर लिया और फिर बीजेपी को साथ लेकर बिहार की कुर्सी पर काबिज हो गये ली।
उधर अब लालू चारा घोटाला केस में ही जेल की सजा काट रहे हैं, जबकि उनके बेटे तेजस्वी यादव व तेज प्रताप यादव नीतीश कुमार और एनडीए को चुनौती दे रहे हैं।
हाल ये हैं कि जिस रघुवंश प्रसाद सिंह ने दिल्ली में बैठकर लालू के साथ आरजेडी की स्थापना की थी, आज वह आरजेडी से इस्तीफा देकर अलग हो चुके हैं। जबकि जेल में बंद लालू 1997 की तरह ही एक बार फिर से अपनी पार्टी को खड़ा करने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
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