दिल्ली से जदयू को नहीं मिल रहा भाजपा का साथ, कांग्रेस की बिहार में राजद से दूरी, बदलाव की तो बयार नहीं!

अगर यही रुख रहा और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने व्यवहार पर कायम रहे तो 2024 की राजनीतिक बिसात नए रूप में 2022-23 में जरूर सामने बिछ जाएगी।

Written By :  Shishir Kumar Sinha
Published By :  Monika
Update:2021-10-18 18:52 IST

सीएम नीतीश कुमार - तेजस्वी यादव (photo : सोशल मीडिया )

पटना, मानिए, न मानिए… अब पूत के पांव पालने में दिख रहे हैं। बिहार की राजनीति (Bihar ki Rajniti) नया रंग लाने वाली है तो उसका लक्षण दिखने लगा है। न केवल सत्ता, बल्कि विपक्ष के अंदर भी। अगर यही रुख रहा और बिहार के मुख्यमंत्री (Bihar CM Nitish Kumar) अपने व्यवहार पर कायम रहे तो 2024 की राजनीतिक बिसात नए रूप में 2022-23 में जरूर सामने बिछ जाएगी। नीतीश 'जीरो टॉलरेंस' (zero tolerance) शब्द बार-बार दुहराते हैं । इस बार उनकी पार्टी जनता दल यूनाईटेड (JDU) को भाजपा मुख्यालय का साथ नहीं मिलना वह कब तक बर्दाश्त करेंगे- देखना अब यही है। वैसे, विपक्ष भी सहज स्थिति में नहीं है। इसलिए, इस बात के आसार बन रहे हैं कि राजनीति की पाठशाला कहे जाने वाले बिहार से देश के लिए नया पाठ्यक्रम सामने आए।

सीएम नीतीश कुमार (फोटो : सोशल मीडिया )

क्या-कैसे और कब होगा…जान लीजिए यहां-

जो हो चुका:

नीतीश को एक साल में 10 बड़ी चोट दे चुकी भाजपा। 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद भले ही भाजपा ने पहले की घोषणा के आधार पर जदयू के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार को ही फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी। लेकिन यह उन्हें नहीं रुचा-पचा।

क्योंकि बड़ी चोटें थीं-

एक-भाजपा ने जदयू को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से उतरे लोक जनशक्ति पार्टी के प्रत्याशियों को लेकर रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान (Ram Vilas Paswan son Chirag Paswan) से सख्ती नहीं की।

दूसरी चोट -जदयू को आशंका से ज्यादा लोजपा ने नुकसान पहुंचाया। नीतीश की पार्टी विधानसभा में संख्या बल के हिसाब से तीसरे नंबर पर पहुंच गई।

तीसरी बड़ी चोट: नीतीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी (mukhyamantry ki kursi) रहम पर पाकर यह चोट लगी। परिणाम देखकर सीएम की कुर्सी नकार चुके थे। लेकिन एनडीए में जदयू के 43 (-28) मुकाबले 74 (+21) सीटें जीतने के बावजूद भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी दी। भाजपा ने उन्हें दिखाया कि वह अपनी बात पर कायम है। उसका दिल बड़ा है।

चौथी चोट: कुर्सी पर आने के बाद लगी। नीतीश खुद लोजपा के सफाए में लगे, साथ ही भाजपा से भी ऐसी ही उम्मीद की। भाजपा ने चिराग पर सीधा वार नहीं किया, तो खुद मरहम लगाने के लिए नीतीश ने रामविलास पासवान की बनाई पार्टी को खंड-खंड कर बदला चुकाया। जहां तक चोट का सवाल है, यह सिलसिला रुका नहीं। अब भी नहीं रुक रहा।

पांचवीं चोट: नीतीश की राजनीति बिहार को विशेष राज्य के दर्जे पर लंबे समय से केंद्रित रही है। लेकिन एनडीए की सरकार रहते भी वह इस मुहिम को अंजाम तक नहीं पहुंचा सके हैं। इस बार भी उनकी तरफ से मांग उठी। लेकिन भाजपा मुख्यालय ने दबा दी।

छठवीं चोट: 2019 के लोकसभा चुनाव (loksabha election 2019 )में 40-39 से एनडीए की जीत के बाद नीतीश केंद्र में 3 मंत्री पद चाहते थे, उस समय नहीं मिलने पर एक मंत्री पद स्वीकार नहीं किया था। जुलाई 2021 में नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल के समय भी दो की चाहत साफ दर्ज कराया। लेकिन एक से संतोष करना पड़ा। उसमें भी जदयू कोटे से बिहार में प्रभावी भूमिहार जाति से मंत्री नहीं बना पाना भी नीतीश के लिए बेचैनी का कारण था।

खैर, 2019 में जो नमो दे रहे थे, उस समय इनकार के बाद उतना ही 2021 में नीतीश को स्वीकार करना पड़ा- यह सीधी चोट थी।

सातवीं बड़ी चोट: केंद्र में जदयू कोटे से नीतीश के एक करीबी आरसीपी सिंह (RCP Singh) मंत्री बने तो भाजपा का गुणगान ज्यादा करने लगे। नीतीश के प्रति अंध-आस्था बता तो रहे। लेकिन अंदर कुछ ऐसा है जो मुख्यमंत्री को असहज कर रही है।

आठवीं बड़ी चोट ही बनेगी असल घाव: नीतीश बिहार में जाति जनगणना (caste census) पर सर्वदलीय बैठक ही नहीं बुला सके। बल्कि एक तरह से इस मांग के लिए विपक्ष का भी इन्हें साथ मिल चुका। भाजपा इसके खिलाफ थी और है। फिर भी बिहार भाजपा के नेता इस मांग पर नीतीश के साथ दिल्ली गए। कुछ दिन के बाद यह संदेश आ गया कि केंद्र जाति जनगणना के पक्ष में नहीं। नीतीश अपने ही प्रधानमंत्री के सामने पुनर्विचार की अपील कर चुके हैं, लेकिन कोई असर नहीं पड़ रहा।

तेजस्वी यादव (फोटो : सोशल मीडिया )

अब आगे क्या?

विशेष राज्य के घाव पर जाति जनगणना से मनाही की चोट…मरहम तेजस्वी

जाति जनगणना पर केंद्र ने मना कर दिया है। पुनर्विचार की मांग पर भी विचार के लक्षण नहीं।

भाजपा साफ कह रही कि इससे समाज बंटेगा।

इसके अलावा, यह भी आप जबरन करा भी लेंगे तो उसे माना नहीं जाएगा। मतलब, नीतीश जिद करते रहें अपनी बला से! बाकी चोट अपनी जगह। लेकिन विशेष राज्य की अपनी पुरानी मांग में भाजपा मुख्यालय से मिल रहे घाव और उसपर जाति जनगणना की मनाही से मिली चोट को नीतीश बर्दाश्त करेंगे- इसपर संशय है। बहुत गहरा। इसकी एक बड़ी वजह है कि दोनों ही मांग पर उन्हें विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल का साथ मिल रहा है। विशेष दर्जे की मांग से राजद ने कभी इनकार नहीं किया, जबकि जाति जनगणना पर वह नीतीश के साथ भी है और उन्हें बार-बार कुरेद भी रहा है। तेजस्वी यादव खुद इस मामले में नीतीश के साथ खड़े होते दिख चुके हैं। इसलिए, अब यह दो मुद्दे आगे बढ़ सकते हैं। बिहार में राजनीतिक ज्वालामुखी फूटने से यहां की जमीन बदल सकती है।

रिजल्ट ऐसा संभव

बिहार में तेजस्वी, दिल्ली में नीतीश बनें भाजपा के लिए मुसीबत तो अजूबा नहीं

नीतीश कुमार अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) और भाजपा मुख्यालय से मिल रही चोट को लेकर अपनी जीरो टॉलरेंस नीति पर उतरे तो फिर एक बार जदयू-राजद गठबंधन (JDU RJD gathbandhan ke aasar) ) के आसार हैं। पिछली बार महागठबंधन में नीतीश आए तो थे। लेकिन बिहार के लिए। टकराव भी इसी नाम पर हुआ और फिर टूटकर वापस एनडीए भी गए तो बिहार के मुद्दों के कारण ही। लेकिन, 2020 के विधानसभा चुनाव ने तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) को जिस तरह बेडा कर दिया है, नीतीश साथ आकर भी बिहार के मुख्यमंत्री बनने की गलती दुबारा नहीं करना चाहेंगे। तेजस्वी के पास विधानसभा में सर्वाधिक विधायक हैं, इसलिए उन्हें कुर्सी सौंपने में बहुत परेशानी नहीं होगी। इस तरह नीतीश की केंद्र की राजनीति में उतरने का रास्ता भी साफ हो जाएगा। केंद्र में नीतीश को बिहार से राजद का साथ मिलेगा। कांग्रेस जब अन्य चेहरों पर दांव खेल सकती है तो बिहार में उपचुनाव के प्रचार को आ रहे राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu prasad yadav) भविष्य में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi)  को भी नीतीश के लिए राजी करा सकते हैं। लालू को स्वस्थ होता देख राजद ने कांग्रेस को पटरी पर लाना शुरू भी कर दिया है। विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस से बिना पूछे उसकी सीट पर राजद ने अपना प्रत्याशी उतार दिया है। इसके अलावा, केंद्र की राजनीति में ममता बनर्जी के अलावा नीतीश के समकक्ष महागठबंधन का चेहरा बनने वाला कोई नहीं और राजद पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के रवैए को देखने के बाद दीदी के साथ खड़ा होगा- ऐसा लगता नहीं। जाति जनगणना देश के लिए बड़ा मुद्दा कैसे बन सकता है, नीतीश इस पर सभी का साथ ले भी रहे हैं और चाह भी रहे। अभी यह सब कुछ सकारात्मक बयानों के बादल में छिपा है। लेकिन इस बात से इनकार करना संभव नहीं कि कुछ तो बड़ा होने वाला है। शायद इंतजार उत्तर प्रदेश में उलटफेर का भी कर रहे हों नीतीश कुमार। मतलब, इंतजार की समय-सीमा भी समझ जाइए।

ऐसा कुछ होने का आसार नहीं मान रहा एनडीए

बिहार भाजपा के अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल (Dr. Sanjay Jaiswal) जदयू के साथ किसी मतभेद से इनकार भी कर रहे हैं और यह भी कह रहे कि नीतीश कुमार ही बिहार में उनके नेता है। जदयू के प्रवक्ताओं में संजय सिंह (sanjay singh ) हों या पूर्व मंत्री नीरज कुमार (Neeraj Kumar) , यही दुहरा रहे हैं। लेकिन, जाति जनगणना को लेकर नीतीश और नरेंद्र मोदी की बात करें तो दोनों ही दलों के नेता मौन साध लेते हैं। जदयू नीतीश कुमार की मांग को उचित ठहराता है और भाजपा इसे केंद्र सरकार का फैसला बताकर चुप हो लेती है। फिर, जैसे ही यह पूछिए कि इससे दोनों दलों में दूरियां आ रहीं तो कहते हैं- ऐसा नहीं है।

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