Capt Amarinder Singh: जलियांवाला बाग स्मारक पर मोदी का साथ देने वाले कैप्टन अब कहां जाएंगे

पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भले ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है, लेकिन वह यहां के 'कैप्टन' बने रहेंगे।

Report :  Akhilesh Tiwari
Published By :  Raghvendra Prasad Mishra
Update: 2021-09-18 14:15 GMT

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कॅप्टन अमरिंदर सिंह की फाइल तस्वीर (फोटो साभार-सोशल मीडिया)

नई दिल्ली: पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) ने तीन बार दिल्ली बुलाए जाने को अपमान बताया है। लेकिन कांग्रेस का नेता रहते हुए उन्होंने महज 18 दिन पहले ही राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। पिछले महीने जब राहुल ने जलियांवाला बाग स्मारक (jallianwala baag smarak) नवीनीकरण पर मोदी सरकार को घेरा और कहा कि वह शहीद के बेटे हैं और शहीदों का अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे तो कैप्टन ने यह कहकर उनका मजाक बना दिया था कि जलियांवाला बाग प्रोजेक्ट में कोई कमी नहीं है। बदलाव से स्मारक परिसर का स्वरूप अच्छा हुआ है। अपने इस बयान से कैप्टन ने हाईकमान को साफ संकेत दे दिया था कि वह मोदी के साथ जा सकते हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि पंजाब की राजनीति में कांग्रेस और नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को पटखनी देने के मकसद से वह भाजपा का दामन थाम सकते हैं।

कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) ने अपने इस्तीफे की पटकथा 31 अगस्त, 2021 को ही लिख दी थी। जब 31 अगस्त की सुबह राहुल गांधी ने जलियांवाला बाग स्मारक (jallianwala baag smarak) नवीनीकरण प्रोजेक्ट की आलोचना करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने जलियांवाला बाग स्मारक (jallianwala baag smarak) परिसर में कई बदलाव कर ऐतिहासिकता के साथ छेड़छाड़ की है। उन्होंने यह भी कहा​ कि​ यह शहीदों का अपमान है। वह इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। राहुल का बयान आने के कुछ घंटों बाद ही पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) ने मीडिया से कहा कि जलियांवाला बाग स्मारक (jallianwala baag smarak) परिसर के उद्घाटन कार्यक्रम में वह भी शामिल हुए थे। स्मारक परिसर में ऐसी कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है, जो शहीदों के अपमान से जुड़ी मानी जा सके।

कैप्टन ने अपने इस बयान से राहुल गांधी को न केवल नीचा दिखाया बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए वह ढाल बनकर खड़े हो गए। कैप्टन के इस बयान का नतीजा रहा कि कांग्रेस ने बाद में इस मुद्दे को जनता के पाले में छोड़ दिया। कैप्टन के इस बयान से कांग्रेस को न केवल राजनीतिक मोर्चे पर नुकसान उठाना पड़ा, बल्कि यह भी स्पष्ट हो गया कि कैप्टन व मोदी के करीबी संबंधों के बारे में जो कुछ कहा जा रहा है वह सच के करीब है। कांग्रेस सूत्रों का दावा है कि कैप्टन के इस बयान को उनकी भावी रणनीति का संकेत मानते हुए पार्टी हाईकमान ने सिद्धू को आपरेशन पंजाब की खुली छूट दे दी, जिसका नतीजा 18 सितंबर को सबके सामने आ गया है। कैप्टन की सरकार में नौकरशाही के हावी होने की वजह से त्रस्त विधायकों को जैसे ही मौका मिला सभी खुलकर कैप्टन के सामने खड़े हो गए।

कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब के मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के साथ ही अपनी भावी राजनीति के भी संकेत दे दिए हैं। उनका यह कहना कि उनके सामने राजनीति के विकल्प खुले हुए हैं। यह बता रहा है कि वह कांग्रेस हाईकमान की मर्जी के अनुसार पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री का तमगा लेकर चुप नहीं बैठेंगे। उनके सामने पंजाब की राजनीति में राजिंदर कौर भट्टल का उदाहरण भी सामने है। यही वजह है कि कैप्टन के करीबी लोग दावा कर रहे हैं कि कैप्टन अब पंजाब की राजनीति में बड़ा धमाका करेंगे।

वह चोट खाए उस शेर की तरह हैं जिसने तय कर लिया है कि अगर उसकी कुर्सी छीनी गई है तो वह कांग्रेस में किसी को भी मुख्यमंत्री नहीं बनने देगा। चर्चा है कि कैप्टन जल्द ही भाजपा के साथ मिलकर पंजाब की राजनीति को नया समीकरण प्रदान कर सकते हैं। भाजपा हाईकमान अगर किसान कानून संबंधी कैप्टन की मांग स्वीकार कर लेता है। तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लेता है। जो कि अब तक देश में लागू नहीं हो सके हैं तो पंजाब में भाजपा को कैप्टन के तौर पर ऐसा कांटा मिल जाएगा जिससे कांग्रेस को आसानी से पंजाब की राजनीति से बाहर निकाला जा सकता है।

बड़ा सवाल क्या भाजपा मानेगी कैप्टन की शर्त

कैप्टन खेमे की ओर से किसान कानून वापसी की जो चर्चा शुरू की गई है, उस पर भाजपा नेतृत्व का क्या रुख होगा। सबसे ज्यादा अहम पहलू यही है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी नेतृत्व अब इस मसले में इतना आगे बढ़ चुका है कि कैप्टन को मुख्यमंत्री बनाने के लिए शायद ही वह यह फैसला लेने को राजी होगा। भाजपा नेतृत्व के सामने सरकार की साख का भी सवाल है। ऐसे में भाजपा यह जरूर चाहती है कि कांग्रेस से बगावत कर कैप्टन साथ आ जाए। लेकिन किसान कानून की वापसी का सवाल बाधा बन सकता है। ऐसे में मुमकिन है कि किसी दूसरी राजनीतिक कार्ययोजना पर अमल किया जाए। हालांकि पार्टी यह मानकर चल रही है कि पंजाब को कांग्रेस मुक्त करने का यह सही मौका है।

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