Dr. Manmohan Singh: वित्त मंत्री रहे डॉ मनमोहन सिंह की क्या है कहानी? जानें कैसे एक फोन कॉल से वे करने गए शपथ ग्रहण
Dr. Manmohan Singh: डॉ मनमोहन सिंह की पहचान मात्र प्रधानमंत्री के रूप में नहीं है। वे एक सफल अर्थशास्त्री, देश के पूर्व वित्त मंत्री, वित्त सचिव, मुख्य आर्थिक सलाहकार, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, यूजीसी के चेयरमैन और आरबीआई के पूर्व गवर्नर भी रहे हैं।
Dr Manmohan Singh: डॉ मनमोहन सिंह का एक परिचय पूर्व प्रधानमंत्री का है। सन 2004 से लेकर 2014 तक वह भारत के प्रधानमंत्री रहें। लेकिन डॉ मनमोहन सिंह की पहचान मात्र प्रधानमंत्री के रूप में नहीं है। वे एक सफल अर्थशास्त्री, देश के पूर्व वित्त मंत्री, वित्त सचिव, मुख्य आर्थिक सलाहकार, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, यूजीसी के चेयरमैन और आरबीआई के पूर्व गवर्नर भी रहे हैं।
वित्त मंत्री के रूप में डॉ मनमोहन सिंह (Dr Manmohan Singh) के कार्यकाल को सबसे सफल कार्यकाल माना जाता है। देश को नई आर्थिक नीति देने वाले डॉ मनमोहन सिंह के जीवन से जुड़ी कई दिलचस्प कहानियां मौजूद है। बजट की चर्चा में आज कहानी पूर्व प्रधानमंत्री एवं वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह (Former Prime Minister and Finance Minister Dr. Manmohan Singh) की है।
मनमोहन सिंह का जन्म कहां हुआ?
डॉ मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को पंजाब प्रांत के गेह नामक स्थान पर हुआ था। तब पंजाब प्रांत भारत का हिस्सा हुआ करता था। लेकिन सन 1947 के बंटवारे के बाद यह पाकिस्तान का हिस्सा हो गया और डॉ मनमोहन सिंह का परिवार भारत आ गया। विस्थापन का दर्द झेल रहे डॉ मनमोहन सिंह ने कभी भी संसाधनों के अभाव का रोना नहीं रोया। उन्होंने मेहनत के दम पर स्कॉलरशिप हासिल कर देश और विदेश के सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की।
सन 1948 में डॉ सिंह ने पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक परीक्षा पास की। उसके बाद सन् 1957 में अर्थशास्त्र में ऑनर्स की डिग्री ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से हासिल की। सन 1962 में वे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में डी०फील की उपाधि हासिल किए। उसके बाद प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री राल प्रेविश के साथ काम करने लगे। सन 1969 में मनमोहन सिंह ने भारत आने का निर्णय लिया। इस पर राल प्रेविश ने उनसे कहा था कि मनमोहन तुम मुर्खता कर रहे हो, लेकिन साथ में यह भी जोड़ा था कि कभी-कभी मूर्खता करना भी बुद्धिमानी का काम होता है।
डॉ मनमोहन सिंह वापस मुल्क लौटे और पंजाब विश्वविद्यालय एवं दिल्ली स्कूल आफ इकोनॉमिक्स में बतौर शिक्षक अपनी सेवा देने लगे। सन 1971 में डॉ सिंह देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाए गए। इसके बाद से मनमोहन सिंह ने मुड़कर कभी पीछे नहीं देखा। वित्त मंत्रालय के सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार समेत कई बड़े पदों पर मनोनीत होते रहे।
डॉ मनमोहन सिंह वित्त मंत्री कैसे बने?
सन 1991 में राजीव गांधी की हत्या हो गई थी और काँग्रेस पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में सरकार बनाने जा रही थी। इस दौरान डॉ मनमोहन सिंह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष हुआ करते थे। उस समय वह किसी विदेश यात्रा से लौटे थे और उनके साथियों ने उनसे कहा कि आप को वित्त मंत्री बनाया जा रहा है लेकिन मनमोहन सिंह ने बात नहीं मानी और तय समय से अपने ऑफिस चले गए। बहादुरशाह जफर मार्ग स्थित अपने कार्यालय में बैठे डॉ सिंह को पीवी नरसिम्हा राव का फोन आया। पीवी नरसिम्हा राव ने कहा कि तुम वहां क्या कर रहे हो? घर जाओ और तैयार होकर सीधे राष्ट्रपति भवन आ जाओ। इसी घटना के साथ वित्त मंत्री के रूप में डॉ मनमोहन सिंह ने शपथ ली।
किन चुनौतियों के बीच डॉ मनमोहन सिंह ने शपथ ली?
सन 1991 वह दौर है जब भारतीय अर्थव्यवस्था बदहाली के मुहाने पर खड़ा थी। भारत के पास विदेशी भुगतान के लिए महज 3 दिन का ही रिजर्व बचा हुआ था। आईएमएफ ने भी क़र्ज़ देने के लिए कई शर्ते रख दी थी। उस दौर में सबसे चुनौती का काम देश की अर्थव्यवस्था को संभालना था और मनमोहन सिंह ने यह चुनौती स्वीकार कर ली थी। पीवी नरसिम्हा राव ने उन्हें बुलाकर कहा था कि देखो अगर हम देश की अर्थव्यवस्था को बचाने में सफल हो गए तो श्रेय हम दोनों को जाएगा लेकिन अगर असफल हुए तो पूरा ठीकरा तुम्हारे सिर फोड़ जाएगा।
24 जून 1991 को वित्त मंत्री बनने के बाद डॉ सिंह ने पत्रकार वार्ता बुलाई और कहा 'दुनिया बदल चुकी है अब देश को भी बदलना होगा।' सन 1991 के ऐतिहासिक बजट में डॉ मनमोहन सिंह ने जो किया वह अर्थव्यवस्था के लिए नजीर बन गया। सिंह ने अपने बजट भाषण में कहा था कि दुनिया की कोई भी ताकत उस चीज को नहीं रोक सकती है जिसका वक्त आ चुका है। बजट में नई आर्थिक नीति की घोषणा की गई और भारतीय अर्थव्यवस्था के दरवाजे दुनिया के लिए खोल दिए गए। यह ऐतिहासिक बजट भाषण सबसे लंबा माना जाता है।
डॉ मनमोहन सिंह की चुप रहने वाली छवि गलत क्यों है?
अक्सर डॉ सिंह को उनके विरोधी मौन मनमोहन के रूप में आलोचना करते रहे हैं। लेकिन उनकी यह छवि गलत है। डॉ मनमोहन सिंह एक वक्त में राज्यसभा में विपक्ष के नेता रह चुके हैं। सन 1998 में जब अटल बिहारी वाजपेई की सरकार बनी थी तो कांग्रेस पार्टी की तरफ से राज्यसभा में डॉ मनमोहन सिंह ने विपक्ष के नेता की भूमिका निभाई थी। विपक्ष के नेता के रूप में डॉ मनमोहन सिंह बड़ी बारीकी से बाजपेई जी, आडवाणी जी एवं सुषमा स्वराज जी जैसे सरीखे नेताओं को जवाब दिया करते थे। संजय बारू ने अपनी किताब 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' में एक घटना का जिक्र किया है।
वह लिखते हैं कि कोई एक चिट्ठी उनके सहयोगी मंत्री जयराम रमेश ने लीक कर दी थी। प्रधानमंत्री रहे डॉ मनमोहन सिंह इस बात पर भड़क गए और जयराम रमेश को फोन कर खूब डांटा। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि मनमोहन सिंह ने फोन ही पटक दिया। सन 1985 की भी एक घटना है जो बताती है कि मनमोहन सिंह गलत सुनने और सहने वाले व्यक्ति नहीं रहे हैं।
पूर्व गृह सचिव सीजी सोमैया अपनी आत्मकथा 'द ऑनेस्ट ऑलवेज स्टैंड अलोन' में लिखते हैं कि सन 1985 में युवा राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने थे और तब डॉक्टर सिंह योजना आयोग के उपाध्यक्ष हुआ करते थे। एक बार किसी बैठक में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने योजना आयोग की टीम को 'जोकरो का गिरोह' कह दिया था। डॉ मनमोहन सिंह भड़क गए और इस्तीफा देने के लिए राजी हो गए। मेरे काफी मान-मनौव्वल के बाद वह मान गए लेकिन उन्हें योजना आयोग से यूजीसी का अध्यक्ष बना दिया गया।
किन पुरस्कारों से नवाजे जा चुके हैं डॉक्टर मनमोहन सिंह?
मनमोहन सिंह को सन 1987 में भारत का दूसरा सर्वोच्च पुरस्कार पदम विभूषण दिया जा चुका है। डॉ सिंह को सन 1995 में पंडित नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार, 1993 और 1994 में सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री के लिए एशिया मनी अवार्ड, 1956 में उत्कृष्ट पढ़ाई के लिए एडम स्मिथ पुरस्कार 1955 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय के राइट पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।
डॉ मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए तमाम नीतियों से लोगों की असहमति हो सकती है लेकिन जब भी इतिहास में वित्त मंत्रियों के योगदान पर चर्चा की जाएगी तो सबसे पहले डॉक्टर मनमोहन सिंह की बात की जाएगी। वित्त मंत्री रहते हुए डॉ मनमोहन सिंह ने एक बूढ़े भारत को नए भारत के रूप में बदला था। गांव की अर्थव्यवस्था वाले भारत को महानगरों की अर्थव्यवस्था में बदला था। भारत को दुनिया के पटल पर व्यापार करना सिखाया था। अपने अंतिम प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉक्टर मनमोहन सिंह ने कहा था कि उनका इतिहास मीडिया की तुलना में कहीं ज्यादा न्याय करेगा।