घर बनाने के लिए पैसे की मांग भी दहेज मांगना ही, यह अपराध है, जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्यों ऐसा कहा

'दहेज शब्द का व्यापक अर्थ में वर्णन किया जाना चाहिए। ताकि, एक महिला से किसी भी मांग को शामिल किया जा सके। चाहे संपत्ति के संबंध में हो या किसी भी तरह की मूल्यवान चीज के।'

Newstrack :  Network
Published By :  aman
Update: 2022-01-12 03:04 GMT

सुप्रीम कोर्ट (फोटो साभार- सोशल मीडिया) 

देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) ने घर निर्माण के लिए पैसे की मांग को भी 'दहेज' (Dowry) बताते हुए इसे अपराध माना है। चीफ जस्टिस एनवी रमण (Chief Justice NV Raman), जस्टिस एएस बोपन्ना (Justice AS Bopanna) और जस्टिस हिमा कोहली (Justice Hima Kohli) की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, 'दहेज शब्द का व्यापक अर्थ में वर्णन किया जाना चाहिए। ताकि, एक महिला से किसी भी मांग को शामिल किया जा सके। चाहे संपत्ति के संबंध में हो या किसी भी तरह की मूल्यवान चीज के।'

दरअसल, निचली अदालत ने एक मामले में मृतक के पति और ससुर को IPC की धारा- 304-बी यानी दहेज हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाने तथा दहेज उत्पीड़न के तहत दोषी ठहराया था।

क्या था मामला?

इस मामले में, यह पाया गया था, कि आरोपी मरने वाली महिला से घर बनाने के लिए पैसे की मांग कर रहा था। जिस राशि को उसका परिवार देने में समर्थ नहीं था। इसी मुद्दे को लेकर महिला को लगातार परेशान किया गया था। बाद में महिला ने आत्महत्या (Suicide) कर ली। इस फैसले के खिलाफ दायर अपील पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने कहा, 'घर के निर्माण के लिए पैसे की मांग को दहेज की मांग के रूप में नहीं माना जा सकता है।'

हाईकोर्ट के फैसले से सुप्रीम कोर्ट असहमत 

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले पर असहमति प्रकट की। चीफ जस्टिस की पीठ ने कहा, कि 'विधायिका के इरादे को विफल करने वाली कानून के किसी प्रावधान की व्याख्या को इस पक्ष में छोड़ दिया जाना चाहिए, कि वह सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए कानून के माध्यम से हासिल की जाने वाली वस्तु को बढ़ावा न दे। धारा-304 बी के प्रावधान समाज में एक निवारक के रूप में कार्य करने व जघन्य अपराध पर अंकुश लगाने के लिए है।'

'एक महिला ही दूसरी को न बचाए, तो ... 

वहीं, एक अन्य दहेज प्रताड़ना और आत्महत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सास की अपील खारिज कर दी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में कहा, कि 'जब एक महिला ही दूसरी महिला को न बचाए तो यह गंभीर अपराध है।' कोर्ट ने इस मामले में सास को दोषी ठहराते हुए तीन महीने की सजा सुनाई। पीठ ने ये भी कहा, कि 'यह बेहद भयावह स्थिति है, जब एक महिला अपनी ही बहू पर इस कदर क्रूरता करे कि वह आत्महत्या का कदम उठा ले।'

'रजिस्ट्री अधिकारी नियमों को अच्छी तरह जानें'

वहीं, एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कि रजिस्ट्री अधिकारियों को सर्वोच्च अदालत के नियमों को अच्छी तरह जानना चाहिए। कोर्ट ने कहा, कि जमानत आदेश को रद्द किए जाने के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका के साथ आत्मसमर्पण से छूट की मांग करने वाली अर्जी दायर करने की आवश्यकता नहीं है।'

जस्टिस पीएस नरसिम्हा (Justice PS Narasimha) ने इसी तरह के एक मामले पर विचार करते हुए कहा, कि 'छूट के लिए बड़ी संख्या में ऐसे आवेदन नियमित रूप से दायर किए जाते हैं। जबकि इस तरह की प्रक्रिया को अपनाने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है। यह केवल उन मामलों पर लागू होता है जहां याचिकाकर्ता को किसी अवधि के कारावास की सजा दी जाती है और इसे जमानत रद्द करने के साधारण आदेशों के साथ भ्रमित नहीं किया जा सकता है।

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