मोदी लहर लाने वाले इस छोटे कद के नेता का बड़ा हाथ, चकाचौंध से रहते हैं काफी दूर
Sunil Oza Kaun Hai: चुनावों में मोदी नाम के बवंडर को पैदा करने में गुजरात से आने वाले सुनील ओझा का नाम भी शुमार है।;
पीएम मोदी से मिले सुनील ओझा (फोटो साभार- ट्विटर)
Sunil Oza: 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से बीजेपी (BJP) को देश में सियासी जानकार इलेक्शन मशीन की संज्ञा देने लगे हैं। जो हर समय इलेक्शन मोड (Election Mode) में रहती है। पार्टी एक चुनाव जीतने के बाद अगले दिन दूसरे अभियान पर जुट जाती है। बीजेपी के इस चुनावी रणनीति और उसकी कामयाबी के पीछे ऐसे कई चेहरे हैं, जिसकी मुख्यधारा की मीडिया में चर्चा नगण्य होती है। चुनावों में मोदी नाम के बवंडर को पैदा करने के लिए ऐसे ही नेता परदे के पीछे रहकर सबसे कारगर भूमिका अदा करते हैं।
गुजरात से आने वाले सुनील ओझा (Sunil Oza) ऐसे ही नेताओं में शुमार हैं जिन्हें यूपी के काशी बेल्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के निर्णायक कैंपेन का शिल्पकार माना जाता है। सुनील ओझा ने मंगलवार को पीएम मोदी (Sunil Oza Meet PM Modi) से मुलाकात की है। तो आईए एक नजर उनके पीएम मोदी के साथ संबंधों और यूपी में मोदी ब्रैंड को चमकाने में उनकी भूमिका पर डालते हैं ।
सुनील ओझा (फोटो साभार- ट्विटर)
सुनील ओझा को बनाया गया यूपी का सह प्रभारी
भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की सबसे अहम भूमिका है। यूपी के बदौलत दो सांसदों से 84 सांसदों तक का सफर करने वाली भाजपा का इतिहास गवाह जब - जब उत्तर प्रदेश में पार्टी के पैर उखड़े हैं, दिल्ली उससे कोसों दूर होते रही है। यही वजह है कि पार्टी की ड्राइविंग सीट पर बैठने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के अपने तपे तपाए नेताओं को यूपी जैसे मुश्किल औऱ महत्वपूर्ण राज्य का टास्क सौंपा। अमित शाह को यूपी का प्रभारी और सुनील ओझा को सह प्रभारी (UP Co-Incharge) बनाना इसी कवायद का हिस्सा है। इन दोनों नेताओं ने भी निराश नहीं किया, आज परिणाम हम सबके सामने है।
ओझा को उनकी सांगठऩिक काबिलियत को देखते हुए आगामी विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव के लिए उन्हें काशी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र की जिम्मेदारी दी गई, जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खूद चुनावी मैदान में थे। पीएम मोदी के बाद पहली बार वाराणसी से सांसद चुने जाने के बाद से ही सुनील ओझा काशी क्षेत्र में सक्रिय हैं। माना जाता है कि काशी क्षेत्र के 16 जिलों में उनकी पैठ काफी मजबूत है। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी को वाराणसी से 6,69,602 वोटों से मिली भारी भरकम जीत ने एकबार फिर उनके सांगठनिक कौशल और कैंपेन तंत्र की शानदार रणनीति पर मुहर लगा दी।
जब मोदी से नाराज हो गए थे ओझा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अब तक के सियासी सफर में कई ऐसे नेता हुए जो उनके साथ अपने संबंध बेहतर न होने के कारण अपनी पूरी राजनीति खत्म कर बैठे। गुजरात से आने वाले सुनील ओझा भी ऐसे ही नेताओं में शुमार हैं जिन्होंने नरेंद्र मोदी से मनमुटाव के कारण बीजेपी तक छोड़ दी। गुजरात की भावनगर सीट से बीजेपी विधायक रह चुके सुनील ओझा ने 2007 में नरेंद्र मोदी को झटका देते हुए पार्टी छोड़ दी थी।
उस दौरान गुजरात दंगों का अधिक समय नहीं हुआ था, लिहाजा तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी पर जोरदार सियासी हमले हो रहे थे। ऐसे समय में संगठन के एक मझे हुए शख्स का पार्टी छोड़ना निश्चित तौर पर बड़ा झटका था। हालांकि इस चुनाव में सुनील ओझा को भी कामयाबी हाथ नहीं लगी, बतौर निर्दलीय उम्मीदवार वे चुनाव हार गए। इस हार ने ही एकबार फिर बीजेपी में उनकी राह प्रश्स्त की।
2011 में जब पीएम मोदी अपनी दिल्ली कूच की रणनीति पर मजबूती से काम कर रहे थे, तभी सुनील ओझा का एकबार फिर पार्टी में पर्दापन हुआ। सियासी टेलैंट को पहचाने में माहिर खिलाड़ी माने जाने वाले मोदी – शाह ने पुरानी बातों को छोड़ उनके सांगठनिक कौशल को देखते हुए उन्हें पार्टी में ससम्मान शामिल करवाया। पार्टी में शामिल होते ही सुनील ओझा पीएम मोदी की दिल्ली कैंपेन में उनके सबसे विश्वस्त सेनापति अमित शाह के साथ जुट गए और आज परिणाम हमारे आपके सामने है।
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