आईपीओ का मतलब इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग है। जब कोई कम्पनी पूँजी जुटाने के लिए पहली बार अपने शेयर सार्वजानिक तौर पर बेचती है, तो शेयर बेचने की इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग या आईपीओ लाना कहा जाता है।
आईपीओ क्या है ?
जब तक कोई कम्पनी आईपीओ नहीं लाती है तब तक वह प्राइवेट ही रहती है, लेकिन आईपीओ आने के बाद वह कम्पनी पब्लिक लिस्टेड कम्पनी बन जाती है, क्योंकि शेयर बाजार में उसके शेयरों की खरीद फरोख्त होती है।
कौन होते हैं कम्पनी के शेयर धारक
अमूनन एक प्राइवेट कम्पनी में संस्थापक, उसके मित्र और रिश्तेदार, वेंचर कैपिटलिस्ट और एंजेल इन्वेस्टर्स या निवेशकों की हिस्सेदारी होती है। लेकिन जब वह कम्पनी आईपीओ लाकर पब्लिक लिस्टेड कम्पनी का रूप धारणरती है तो उसमें व्यक्तिगत एवं सार्वजानिक निवेशकों से लेकर संस्थागत निवेशकों तक की हिस्सेदारी होती है।
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फायदे - नुकसान
किसी कम्पनी के प्राइवेट या पब्लिक होने के अपने अपने फायदे - नुकसान हैं। मसलन, एक प्राइवेट कम्पनी के मालिकों को बहुत सी वित्तीय और लेखा सम्बन्धी जानकारियां जगजाहिर करने की जरूरत नहीं होती है, जबकि पब्लिक कम्पनी को वित्तीय और लेखा सम्बन्धी जानकारी नियामक संस्थाओं और अपने शेयर धारकों के समक्ष रखनी होती है। आईपीओ द्वारा उगाही गई राशि का इस्तेमाल अक्सर कम्पनियाँ अपनी विस्तार योजनाओं, इंफ्रास्ट्रक्चर एवं उत्पाद विकास इत्यादि मदों में करती हैं। आईपीओ लिस्टिंग के द्वारा कम्पनी की एक छवि का भी निर्माण होता है, जिससे बेहतर प्रबंधन के लिए प्रतिभाओं को आकर्षित करने और विलय व अधिग्रहण में भी मदद मिलती है।
नियामक संस्थाएं नियम एवं प्रक्रिया
भारत में आईपीओ लाने के लिए कम्पनी को पूँजी बाजार नियामक सेबी (भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड - सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया) की शरण में जाना पड़ता है। इसके बाद उन्हें नैशनल स्टॉक एक्सचेंज और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध (लिस्टिंग) होने के लिए आवश्यक शर्तों का पालन करना होता है।
इसके तहत मात्र वे ही कंपनियां आइपीओ ला सकती हैं, जिनका मिनिमम पेड अप कैपिटल (न्यूनतम भुगतान की गई पूंजी) 10 करोड़ रूपये हो। इसके आलावा भी अन्य कई शर्तों का उन्हें पालन करना होता है।
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जब कोई कम्पनी अपना आइपीओ लाती है तो वह सबसे पहले मर्चेंट बैंकर को नियुक्त करता है जो कंपनी का ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (डीआरएचपी) तैयार करता है। इसमें कंपनी के बारे में अहम जानकारी होती है।
सेबी द्वारा मान्यता प्राप्त होते ही उन्हें सार्वजानिक कर दिया जाता है। इसके बाद कंपनी का आइपीओ प्राइस तय किया जाता है। इसी आइपीओ प्राइस पर तीन दिन तक शेयर सब्सक्रिप्शन के लिए उपलब्ध होते हैं।
कंपनी जितने शेयर बेचना चाहती है अगर निवेशक उससे अधिक शेयर खरीदना चाहते हैं, तो इन शेयरों की बोली लगाई जाती है और आइपीओ ओवर सब्सक्राइब्ड माना जाता है। यदि कंपनी जितने शेयर बेचना चाहती है, निवेशक उससे कम शेयर खरीदते हैं तो आईपीओ अंडरसब्सक्राइब्ड माना जाता है।
इस प्रकार आइपीओ आ जाने के बाद, कंपनी का शेयर चुने गए स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड हो जाता है और बाजार की मांग के आधार पर निश्चित भाव पर कंपनी के शेयर क्रय विक्रय शुरू हो जाता है।
आइपीओ लाने वाली कंपनियों के प्रकार
सामान्यतः माना जाता रहा है कि स्टॉक एक्सचेंजों पर मात्र बड़ी कंपनियां ही लिस्टेड होती हैं। लेकिन समय के साथ नियम बदल रहे हैं और सरकार अब सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम तथा नव उद्यमों को भी पूँजी बाजार में आने एवं इस माध्यम से अपने उद्यमों के लिए पूँजी निर्माण के लिए प्रोत्साहित कर रही है।
सितम्बर, 2012 में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (Micro, Small & Medium Enterprises - MSME) के लिए एक नए एक्सचेंज, एसएमई एक्सचेंज की स्थापना की गई। इसके माध्यम से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम इकाईयां बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज एवं नेशनल स्टॉक एक्सचेंज पर अपने शेयर सूचीबद्ध कर सकती हैं अथवा अपने आईपीओ ला सकती हैं।
वर्ष 2018 में नवउद्यमों अर्थात स्टार्टअप्स को भी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज एवं बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध होने एवं पूँजी निर्माण की सुविधा प्राप्त हो चुकी है। स्टार्टआप कंपनियां भी अब अपने आईपीओ ला सकती हैं और अपने विस्तार के लिए पूंजी का निर्माण कर सकती हैं.