जीवाश्म! कुदरत की एक अनोखी और हैरान कर देने वाली निशानी

सोनभद्र जीवाश्म पार्क के नाम से भी जाना जाता है।पहले यह मिर्ज़ापुर जिले के अंतर्गत आता था। सलखन जीवाश्म पार्क एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण स्थान है जहां जाकर के पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक एवं जैविक इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

Update: 2020-01-04 06:14 GMT

बृजेन्द्र दुबे

सोनभद्र: मिर्ज़ापुर से लगभग 96 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सलखन जीवाश्म पार्क पूर्वी उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के राबर्ट्सगंज कस्बे से लगभग 17 किलोमीटर दूर सलखन नामक गाँव में स्थित है। इसे सोनभद्र जीवाश्म पार्क के नाम से भी जाना जाता है।पहले यह मिर्ज़ापुर जिले के अंतर्गत आता था। सलखन जीवाश्म पार्क एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण स्थान है जहां जाकर के पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक एवं जैविक इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

पृथ्वी पर जीवन के विकास के आरम्भिक अवस्था का प्रमाण

यह जीवाश्म पार्क पृथ्वी पर जीवन के विकास के आरम्भिक अवस्था का प्रमाण प्रस्तुत करता है। यहाँ पाये जाने वाले जीवाश्म विश्व के प्राचीनतम जीवाश्मों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसलिए सलखन जीवाश्म पार्क भारत के लिए ही नहीं बल्की पूरी दुनिया के लिए भी एक अमूल्य भूवैज्ञानिक धरोहर है।

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सलखन के जीवाश्म लगभग 150 करोड़ वर्ष पुराने व बूढ़े है

सलखन जीवाश्म पार्क ने उत्तर प्रदेश के आदिवासी बहुल सोनभद्र जिला के साथ-साथ उत्तर प्रदेश राज्य को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलायी है। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार सलखन के जीवाश्म लगभग 150 करोड़ वर्ष पुराने व बूढ़े हैं। भ-ूवैज्ञानिक समय माप के अनुसार ये जीवाश्म प्रोटीरोजोइक काल से हैं। अमेरीकी वैज्ञानिकों के अनुसार सलखन जीवाश्म पार्क अमेरिका के यलोस्टोन जीवाश्म पार्क से काफी प्राचीन एवं क्षेत्रफल में तीन गुना ज्यादा बड़ा है।

अतः भारत के इस जीवाश्म पार्क ने संयुक्त राज्य अमेरीका के यलोस्टोन जीवाश्म पार्क को प्रत्येक क्षेत्र में बौना साबित कर दिया है। यलोस्टोन जीवाश्म पार्क लगभग 110 करोड़ वर्ष पुराना है। सलखन जीवाश्म पार्क लगभग 62 एकड़ क्षेत्रफल में फैला है ।जीवाश्म पार्क 3.5 किलोमीटर में फैला यह प्राकृतिक मनोरम मोहने वाली जगह है। पार्क में जीवाश्म आमतौर से चट्टानों पर छल्ले के आकार में प्रकट होते दिखायी देते हैं।

आखिर क्या है जीवाश्म

पृथ्वी पर किसी समय जीवित रहने वाले अति प्राचीन सजीवों के परिरक्षित अवशेषों या उनके द्वारा चट्टानों में छोड़ी गई छापों को जो पृथ्वी की सतहों या चट्टानों की परतों में सुरक्षित पाये जाते हैं उन्हें जीवाश्म (जीव + अश्म = पत्थर) कहते हैं। जीवाश्म से कार्बनिक विकास का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलता है। इनके अध्ययन को जीवाश्म विज्ञान या पैलेन्टोलॉजी कहते हैं। विभिन्न प्रकार के जीवाश्मों के निरीक्षण से पता चलता है कि पृथ्वी पर अलग-अलग कालों में भिन्न-भिन्न प्रकार के जन्तु हुए हैं। प्राचीनतम जीवाश्म निक्षेपों में केवल सरलतम जीवों के अवशेष उपस्थित हैं किन्तु अभिनव निक्षेपों में क्रमशः अधिक जटिल जीवों के अवशेष प्राप्त होते हैं।

ज्यों-ज्यों हम प्राचीन से नूतन कालों का अध्ययन करते हैं, जीवाश्म जीवित सजीवों से बहुत अधिक मिलते-जुलते प्रतीत होते हैं। अनेक मध्यवर्ती लक्षणों वाले जीव बताते हैं कि सरल रचना वाले जीवों से जटिल रचना वाले जीवों का विकास हुआ है। अधिकांश जीवाश्म अभिलेखपूर्ण नहीं है परन्तु घोड़ा, ऊँट, हाथी, मनुष्य आदि के जीवाश्मों की लगभग पूरी श्रृंखलाओं का पता लगाया जा चुका है जिससे कार्बनिक विकास के ठोस प्रमाण प्राप्त होते हैं।

जीवाश्म को अंग्रेजी में फ़ॉसिल कहते हैं। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द "फ़ॉसिलस" से है, जिसका अर्थ "खोदकर प्राप्त की गई वस्तु" होता है। सामान्य: जीवाश्म शब्द से अतीत काल के भौमिकीय युगों के उन जैव अवशेषों से तात्पर्य है जो भूपर्पटी के अवसादी शैलों में पाए जाते हैं। ये जीवाश्म यह बतलाते हैं कि वे जैव उद्गम के हैं तथा अपने में जैविक प्रमाण रखते हैं।

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डीएम भगवान शंकर ने जीवाश्म पार्क का किया उद्घाटन

यहाँ के जीवाश्मों के बारे में भ-ूवैज्ञानिकों को पहले से ही पता था लेकिन स्थानीय निवासियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी कोई जानकारी नही थी। पहली बार 23 अगस्त 2001 को एक समाचार पत्र में प्रकाशन के बाद इस जीवाश्म पार्क के विषय में स्थानीय लोगों एवं अधिकारियों को पता चला था। अखबार में छपे इस लेख को संज्ञान में लेते हुए सोनभद्र जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी भगवान शंकर ने इस जीवाश्म पार्क का 8 अगस्त 2002 को विधिवत उद्घाटन किया। प्रारम्भिक कवायदों के क्रम में पार्क के रास्ते बने, विश्राम के लिए पक्के हट, सुरक्षा की दृष्टि से कटीले तारों की घेरेबंदी आदि की गयी।

अंतरास्ट्रीय भू-वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया असली जीवाश्म है

देश एवं विदेश से आये कुल 42 भूवैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया। इनमें कनाडा के प्रख्यात भूवैज्ञानिक प्रोफेसर एच. जे. हाफमैन, अमेरिका से प्रोफेसर ब्रूस रूनीगर, डॉक्टर जे. आर. लायन, डॉ लिण्डा , एस. एम. पोर्टर मुख्य थे। इस कार्यशाला में वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया कि यहाँ चट्टानों पर छल्लेदार आकृतियाँ जीवाश्म ही हैं। कनाडा के प्रख्यात भू-वैज्ञानिक एच. जे. हाफमैन सलखन जीवाश्म पार्क को देखकर अत्यन्त ही प्रभावित हुए और खुशी से नाचने लगे थे। उनके अनुसार सलखन के जीवाश्म इस दुनिया की सबसे सुन्दर व अनमोल वस्तु है और पूरे विश्व में इससे खूबसूरत एवं स्पष्ट जीवाश्म कहीं और नही हैं।

हाफमैन समेत अन्य भूवैज्ञानिकों ने सलखन के जीवाश्मों को देखकर इसके 150 करोड़ वर्ष पुराने होने की बात कही। एच. जे. हाफमैन ने कहा था कि अमेरिका के यलोस्टोन पार्क के जीवाश्म अभी निर्माण की प्रक्रिया में हैं फिर भी यलोस्टोन पार्क को अमेरिकी सरकार ने पर्यटन के नजरिये से इस कदर विकसित कर लिया है कि इससे सलाना करोड़ों डालर की कमाई की जा रही है, जबकि सलखन का जीवाश्म पार्क तो पूरी तरह परिपक्व है और यकीनन 150 करोड़ वर्ष से ज्यादा प्राचीन है।

नील हरित शैवाल पृथ्वी पर जीवन के विकास के प्रारम्भिक रूप को बताते है

सलखन जीवाश्म पार्क में एलगल स्ट्रोमैटोलाइट्स प्रकार के जीवाश्म पाये जाते हैं जो कि पृथ्वी पर पाये जाने वाले प्राचीनतम जीवाश्मों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस प्रकार के जीवाश्मों का निर्माण आमतौर से नील हरित शैवाल समूह के सूक्ष्मजीवों द्वारा अवसाद कणों को आपस में जोड़ने के कारण होता है। नील हरित शैवालों की कोशिकाओं के बाहर म्यूसिलेज की चिपचिपी परत होती है जो अवसाद कणों को आपस में बांधती है जिससे स्ट्रोमैटोलाइट जीवाश्म का निर्माण होता है। नील हरित शैवाल पृथ्वी पर जीवन के विकास के प्रारम्भिक रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं।

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राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक धरोहर घोषित करना समय की सबसे बड़ी मांग है

अमूल्य सलखन जीवाश्म पार्क की दुर्दशा एक गम्भीर चिंता का विषय है जिस पर तत्काल ध्यान देने और सुरक्षा एवं संरक्षण हेतु ठोस कारवाई की आवश्यकता है। पार्क के उचित संरक्षण हेतु इसे ‘‘राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक धरोहर’’ घोषित करना समय की सबसे बड़ी मांग है। इसके अतिरिक्त इस पार्क को अमेरिका के यलोस्टोन पार्क की तर्ज पर एक आदर्श पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने की आवश्यकता है। सलखन जीवाश्म पार्क को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर न सिर्फ इससे भारी राजस्व की प्राप्ति की जा सकती है, स्थानीय बेरोजगार लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराये जा सकते हैं।

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