12वीं में उठ गया पिता का साया, परिवार को संभालते हुए बिना कोचिंग के ऐसे बने IAS

उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी तो पहले ही प्रयास में उन्हें सफलता मिली। उनका सिलेक्शन एलाइड सर्विस में हो गया। इसके बाद दूसरे प्रयास में उन्होंने 5वीं रैंक हासिल कर आईएएस बनने का सपना पूरा कर लिया।

Update:2020-04-30 16:31 IST

नई दिल्ली: अगर इंसान अपना एक लक्ष्य तय कर ले और उसे हासिल करने के लिए ईमानदारी से पूरी मेहनत करे तो कोई मुश्किल उसकी सफलता में बाधक नहीं बन सकती।

कुछ ऐसी ही कहानी है कि शशांक मिश्रा की, जिन्होंने बचपन से ही आईएएस अधिकारी बनने का सपना देखा था। शशांक मिश्रा के पिता उत्तर प्रदेश में एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में डिप्टी कमिश्नर थे।

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था। लेकिन शशांक जब 12वीं में ही पढ़ रहे थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया। इसके बाद पूरे परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन इसके बावजूद शशांक मिश्रा ने हार नहीं मानी और अपना संघर्ष जारी रखा।

जब उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी तो पहले ही प्रयास में उन्हें सफलता मिली। उनका सिलेक्शन एलाइड सर्विस में हो गया। इसके बाद दूसरे प्रयास में उन्होंने 5वीं रैंक हासिल कर आईएएस बनने का सपना पूरा कर लिया।

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शशांक की शुरुआती जिंदगी –

शशांक के पिता कृषि विभाग में डिप्टी कमिशनर के पद पर थे। पिता की मृत्यु के बाद पढ़ाई किनारे रह गयी और परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गयी।

शशांक के परिवार में उनके अलावा तीन भाई और एक बहन तथा माता – पिता थे। सबकुछ सामान्य तरीके से चल ही रहा था कि शशांक जब कक्षा 12वीं में थे तो उनके पिता की असमय मृत्यु हो गयी।

शशांक इस छोटी सी उमर में जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गए पर उनके पास इन जिम्मेदारियों को ओढ़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। वे हमेशा से ही आईआईटी की परीक्षा देना चाहते थे।

पिता की मौत के बाद भी उन्होंने अपने इस सपने को ठंडे बस्ते में नहीं डाला और आईआईटी प्रवेश परीक्षा में 137वीं रैंक पाकर पास हुये। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग से बीटेक करने के बाद शशांक को एक मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गयी। जिंदगी थोड़ा ढ़र्रे पर आती हुयी दिखी।

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ऐसे तय किया सफलता का सफर

दिल्ली जैसे बड़े शहर में यूं ही रहना और खाना खासा मुश्किल था। इन स्थितियों पर विचार करते हुये शशांक ने मेरठ में रूम लेकर रहना शुरू किया और दिल्ली अप-डाउन करने लगे। शशांक ने आईआईटी पास करके नौकरी कर तो ली थी पर उनके मन में कहीं न कहीं प्रशासनिक सेवा में जाने का ख्वाब छिपा था।

नौकरी में उनका दिल नहीं लग रहा था। एक बार फिर अपने जीवन में मुश्किलों को हाथ थामते हुये उन्होंने साल 2004 में नौकरी छोड़ दी और सिविल सर्विसेज की तैयारी करने लगे।

लेकिन यह राह इतनी भी आसान नहीं थी। उन्हें फिर पैसे की कमी होने लगी। इस समस्या का हल निकालते हुये उन्होंने दिल्ली की एक कोचिंग में पढ़ाना शुरू कर दिया। पर वहां से होने वाली आमदनी पूरी नहीं पड़ती थी।

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शशांक की सफलता की राह में न जाने कितने रोड़े थे लेकिन यह जिद्दी इंसान भी हर मुश्किल के सामने डट कर खड़ा हो जाता था, मानो कह रहा हो आओं देखें किसमें कितना है दम।

पैसे बचाने के लिये मेरठ में कमरा ले तो लिया पर रोज सफर करने में न जाने कितना समय चला जाता था। शशांक ने उसका भी हल निकाला और मेरठ से दिल्ली आने तक के सफर को स्टडी टाइम में कनवर्ट कर लिया। वो इस पूरे समय का सदुपयोग ट्रेन में बैठकर पढ़ाई करने में करते थे। इस प्रकार ट्रैवलिंग में समय बर्बाद न होकर यूटिलाइज़ होने लगा।

पर मुसीबतें यहां भी कम न हुईं। सोच-समझकर खर्च करने के बावजूद कई बार खाने के लिये भी पैसे नहीं बचते थे। पर ऐसे में इन परेशानियों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय शशांक अर्जुन की तरह अपनी निगाह लक्ष्य पर रखते थे। बिस्किट खाकर काम चलाने वाले शशांक ने भूख को भी बीच में नहीं आने दिया।

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ऐसे मिली मंजिल

शशांक की सालों की मेहनत का फल आखिरकार उन्हें मिल ही गया। शशांक इस बात का जीता – जागता प्रमाण हैं कि जीवन में सफल वे नहीं होते जिनके रास्ते में बाधाएं नहीं आतीं बल्कि वे होते हैं जो कितनी भी बाधाओं के बावजूद अपना रास्ता नहीं बदलते।

यूपीएससी की परीक्षा के कठिनाई स्तर को शशांक भली प्रकार समझते थे।

उन्होंने पहले दो साल जमकर परीक्षा की तैयारी की और उसके बाद पेपर दिया। पहले ही प्रयास में उनका चयन एलाइड सर्विसेज़ में हो गया लेकिन इससे भी उनका दिल नहीं भरा।

उन्होंने दोबारा कोशिश की और अपने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुये 2007 की परीक्षा में पांचवी रैंक हासिल की। वर्तमान में शशांक मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के कलेक्टर पद पर कार्यरत हैं।

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