Hardoi News: इस लाइब्रेरी में आज भी मौजूद हैं ब्रिटिश काल की पुस्तकें और अखबार, देखने आते हैं साहित्यप्रेमी

Hardoi News: जनपद में एक ऐसा पुस्तकालय है, जहां ब्रिटिश काल से आज तक की तमाम महत्वपूर्ण पुस्तकों और अखबारों को सहेजकर रखा गया है। इस लाइब्रेरी में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों और पुस्तकप्रेमियों की खासी भीड़ आती है। जो अपने मनपसंद साहित्य के बीच खुद को सहज महसूस करते हैं।

Update: 2023-05-02 12:35 GMT
ब्रिटिश कालीन पुस्तकालय (फोटो: सोशल मीडिया)

Hardoi News: हरदोई जनपद के बहंदर के कासिमपुर थाना क्षेत्र के तेरवा दहिया गांव में युवक, युवतियों में पढ़ाई हो या नौकरी की दौड़ हर पायदान पर यहां के युवा अपने आप को स्थापित करना चाहते हैं। यह गांव कई बड़े कस्बों व शहरों को शिक्षा के मामले में पीछे छोड़ चुका है। पढ़ाई का आलम यह है कि पूर्व में इस गांव के बच्चों को पढ़ने के लिए पुस्तिका नहीं मिलती थी, तैयारी करने वाले बच्चे काफी परेशान रहते थे। ऐसे में गांव के ही एक शख्स ने मंदिर में पुस्तकालय बनाकर बच्चों को अच्छी शिक्षा की तैयारियां करने का अवसर दिया।

1938 में हुई लाइब्रेरी की स्थापना

इस गांव में एक मंदिर है जो कि 80 वर्ष पुराना है। जहां लगभग 80 वर्ष से ही एक पुस्तकालय संचालित होता आ रहा है। इस पुस्तकालय में ब्रिटिश कालीन अखबार और पत्र पत्रिकाएं आज भी मौजूद हैं। मंदिर के पुजारी और पुस्तकालय की देखरेख करने वाले शिवनंदन लाल पटेल ने बताया कि यहां रोज 50 बच्चे प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने आते हैं। अब तक हजारों की संख्या में यहां से तैयारी करने वाले बच्चे इंजीनियर,डॉक्टर बनकर गांव का नाम रोशन कर चुके हैं। कुछ बच्चे तो विदेश में रहकर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं।

किताबें घर ले जाने की सुविधा

शिवनंदन लाल पटेल ने बताया कि इस पुस्तकालय की स्थापना सन 1938 में गांव के बींचो-बीच स्थित शिव मंदिर में उनके पिता स्व. दुलारे लाल ने की थी। तभी से इस मंदिर में बच्चे पढ़ाई के लिए आते हैं। बच्चे यहां से एक माह के लिए पुस्तकें घर भी ले जा सकते हैं। इसके लिए उनसे कोई शुल्क नहीं लिया जाता। पुस्तकालय संचालक के सहयोगी युवा शानू ने बताया कि पुस्तकालय में आजादी के पहले तक के समाचार पत्र और सैकड़ों पुस्तकें मौजूद हैं। 5000 से अधिक परीक्षा प्रतियोगी पुस्तकें हैं। पुस्तकालय के खर्च के लिए अधिकारियों ने एक ग्रुप बना रखा है, जिससे पुस्तकालय में होने वाला खर्च का पैसा आता है।

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