Corona Vaccine: सभी वैक्सीनों के अपने अपने दावे, जो उपलब्ध हो उसे मानिए बेस्ट
Corona Vaccine: देश और दुनिया में तेजी से जारी वैक्सीनेशन अभियान के बीच एक्सपर्ट्स का कहना है कि चूंकि कोरोना की सीमित वैक्सीनें हैं इसलिए जो उपलब्ध हो उसी को बेस्ट मानने में ही भलाई है।;
Corona Vaccine: कोरोना वायरस (Coronavirus) के खिलाफ वैक्सीनेशन अभियान (Vaccination Campaign) पूरी दुनिया में जारी है और इसके साथ लोगों के मन में ये सवाल भी बहुत तेजी से उठ रहे हैं कि आखिर कौन सी वैक्सीन सबसे ज्यादा कारगर है। वायरस के नए नए वेरिएंट (Corona Variants) आते जाने से ये जिज्ञासा और सवाल और महत्वपूर्ण हो जाता है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि चूंकि कोरोना की सीमित वैक्सीनें हैं इसलिए जो उपलब्ध हो उसी को बेस्ट मानने में ही भलाई है। जिस तरह महामारी की तीसरी लहर (Corona Virus Third Wave) की आहट है उसमें जल्द से जल्द वैक्सीनेशन (Corona Virus Vaccination) करा लेना चाहिए।
कोई वैक्सीन सम्पूर्ण सुरक्षा नहीं देती
सबसे जरूरी बात ये है कि अभी उपलब्ध कोई वैक्सीन सौ फीसदी सुरक्षा नहीं देती है। ऐसा आगे भी दावा नहीं किया जा सकता। वैक्सीन की असरदारिता का दावा फेज तीन के क्लीनिकल ट्रायल के आधार पर किया जाता है और ये ट्रायल सीमित होते हैं। इसके अलावा वायरस लगातार म्यूटेंट होकर नए वेरिएंट और स्ट्रेन के रूप में सामने आता जा रहा है। सो जब तक वैक्सीन के कोड में भी बदलाव नहीं किया जाएगा वो किसी खास वेरिएंट के खिलाफ सुरक्षा नहीं दे पाएगी।
भारत में वैक्सीनों का हाल
भारत की बात करें तो यहां अभी दो वैक्सीनें प्रमुख रूप से लगाई जा रही हैं - आस्ट्रा जेनका की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सिन। तीसरी वैक्सीन है रूस की स्पुतनिक। कोविशील्ड के बारे में दावा किया जा रहा है कि ये 62 से 90 फीसदी असरदार है जबकि कोवैक्सिन के ताजातरीन ट्रायल डेटा के अनुसार ये 77 फीसदी असरदार है। कोविशील्ड और कोवैक्सिन के बारे में दावा है कि ये डेल्टा वेरियंट पर भी असरदार हैं।
अमेरिका की वैक्सीन
अमेरिका में लग रही फाइजर और मॉडर्ना की बात करें तो ट्रायल में मॉडर्ना 94.1 फीसदी और फाइजर वैक्सीन 95 फीसदी प्रभावी पाई गई है। इन दोनों की सिंगल डोज़ 80 फीसदी सुरक्षा देती है। एक स्टडी के अनुसार, फाइजर की वैक्सीन डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ भी असरदार है। इसकी वजह इस वैक्सीन में वेरिएंट के हिसाब से किया गया बदलाव है।
रूसी वैक्सीन
रूस की स्पूतनिक वैक्सीन के डेवलपर का दावा है कि ये वैक्सीन कोरोना के सभी वेरिएंट के खिलाफ 100 फीसदी असरदार है। इस वैक्सीन को भारत में मंजूरी मिली है लेकिन डब्लूएचओ ने इसे अभी तक मान्यता नहीं दी है। भारत में अभी स्पूतनिक का प्रोडक्शन शुरू नहीं हुआ है सो इसकी उपलब्धता सीमित है।
ब्रिटेन में स्टडी
ब्रिटेन में फाइजर की वैक्सीन के साथ तुलनात्मक स्टडी भी हुईं हैं। उन स्टडी में आस्ट्रा जेनका, फाइजर से कमजोर पाई गई। भारत में पाए गए डेल्टा वेरियंट पर आस्ट्रा जेनका की वैक्सीन 60 फीसदी असरदार पाई गई। जबकि फाइजर की वैक्सीन 88 फीसदी असरदार पाई गई।
कोविशील्ड और कोवैक्सिन में फर्क
दोनों ही वैक्सीनें वेक्टर आधारित हैं। यानी दोनों में ही निष्क्रिय वायरस पड़ा हुआ है। फर्क ये है कि कोविशील्ड में सामान्य सर्दी-जुखाम वाला एडीनो वायरस है जो चिम्पांजी में डेवलप करके निकाला गया है। वहीं, कोवैक्सिन में कोरोना वायरस को ही निष्क्रिय करके डाला गया है। दोनों ही वैक्सीनों के निष्क्रिय वायरस शरीर में पहुंच कर इम्यून रेस्पॉन्स पैदा करते हैं।
कोवैक्सिन पाए लोगों की दिक्कतें
जिनको कोवैक्सिन लगी है उनके लिए सिर्फ एक ही समस्या है कि वे दुनिया के ज्यादातर देशों की यात्रा पर नहीं जा सकते हैं। वजह है कोवैक्सिन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता का न मिलना। सिर्फ 8 देशों ने अंतरराष्ट्रीय यात्रा के लिए कोवैक्सिन को मान्यता दी है। ये देश हैं - ईरान, फिलीपींस, मॉरिशस, मेक्सिको, नेपाल, गुयाना, पैराग्वे, और ज़िम्बाब्वे। यही समस्या रूस की स्पूतनिक 5 वैक्सीन के साथ है। जिस तरह कोवैक्सिन की कम्पनी ने डब्लूएचओ को पूरे डेटा नहीं दिए हैं, वही हाल स्पूतनिक बनाने वाली कम्पनी का है।
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