Coronavirus: संक्रमण ठीक होने के साल भर बाद तक रहता है बीमारी का असर
Coronavirus: कोरोना संक्रमण ठीक होने के बाद भी लोगों में तरह तरह के लक्षण बने रहते हैं। थकान, जोड़ों में दर्द, खांसी, डिप्रेशन, सांस लेने में दिक्कत, कमजोर याददाश्त जैसी समस्याएं सबसे आम हैं।
Coronavirus: कोरोना वायरस तरह तरह से अपना प्रभाव दिखा रहा है। एक बड़ी समस्या कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके मरीजों की है, जिनमें लम्बे समय तक कोई न कोई समस्या बनी हुई है। कोरोना संक्रमित लोगों पर हुई कई रिसर्च (Research) और स्टडी (Study) में पता चला है कि बीमारी ठीक होने यानी वायरस जांच (Corona Test) नेगेटिव आने के बाद भी लोगों में तरह तरह के लक्षण (Corona Virus Symptoms) बने रहते हैं।
कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों में थकान (Fatigue), एकाग्रता में कमी (Loss Of Concentration), कमजोर याददाश्त (Poor Memory), जोड़ों में दर्द (Joint Pain), धड़कन, खांसी (Cough), सांस लेने में दिक्कत (Breathing Problem), डिप्रेशन (Depression) जैसी समस्याएं सबसे आम हैं।
हल्के लक्षण वालों में ज्यादा समस्याएं
लन्दन के किंग्स कॉलेज, इम्पीरियल कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की अलग अलग स्टडी में निकल कर आया है कि जिन लोगों में कोरोना संक्रमण से हल्की बीमारी हुई उनमें ठीक होने के बाद लम्बे समय तक समस्याएं ज्यादा देखी गई हैं। जबकि गंभीर रूप से बीमार पड़े अधिकांश लोग ठीक होने के एक से दो महीने बाद सामान्य हो गए।
एक और बड़ी बात ये है कि कोरोना संक्रमितों में ठीक होने के एक साल तक विभिन्न समस्याएं देखी गईं हैं। ये भी खास कर 50 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों में ज्यादा पाया गया है। जिन लोगों में ब्लड प्रेशर (Blood Pressure), ब्लड शुगर (Blood Sugar) या कोई भी क्रोनिक बीमारी (Chronic Disease) है वे लम्बे समय तक पोस्ट कोविड सिंड्रोम से परेशान रह सकते हैं। ऐसा होने की वजह क्या है, ये अभी पता नहीं चल पाया है।
नहीं हो पा रहे नॉर्मल
हार्वर्ड की स्टडी के अनुसार, कोरोना से संक्रमित लोगों में बीमारी के लक्षण जब खत्म हो जाते हैं तब भी वे पहले जैसे नॉर्मल नहीं हो पाते हैं। वायरस भले ही शरीर में न रहा हो लेकिन लोग पहले जैसी दिनचर्या में लौट नहीं पाते, नई दिक्कतें आने लगती हैं। एनर्जी वापस नहीं आती, जरा सी शारीरिक मेहनत से बहुत ज्यादा थकान आ जाती है। अचानक से भुलक्कड़पन हावी हो जाता है।
सिकुड़ जाता है ब्रेन
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और इम्पीरियल कॉलेज की एक स्टडी से ब्रेन पर कोरोना वायरस के प्रभाव के बारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं। पता चला है कि कोरोना वायरस शरीर के नर्वस सिस्टम पर भी हमला करता है। कोरोना पीड़ितों के ब्रेन स्कैन से ये भी पता चला है कि इस बीमारी में ब्रेन के कुछ हिस्सों में ऊतक यानी टिश्यू खत्म हो जाते हैं। इसका मतलब ये है कि कोरोना में ब्रेन सिकुड़ जाता है और ये बदलाव स्थाई होता है। ब्रेन के टिश्यू एक बार खत्म हो जाने पर दोबारा नहीं बनते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना पीड़ितों की मनोदशा में बदलाव का एक कारण नर्वस सिस्टम और मस्तिष्क पर वायरस का सीधा हमला होता है।
हो सकती है डायबिटीज
अब एक नई स्टडी में पता चला है कि कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति में डायबिटीज होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। पता चला है कि कोरोना वायरस स्वस्थ लोगों में डायबिटीज पैदा भी कर देता है। ये वायरस शरीर में घुसने के बाद पैंक्रियास में इन्सुलिन पैदा करने वाले सेल्स को मार देता है। और इंसुलिन का प्रोडक्शन बाधित कर देता है।
मई 2020 में की गई स्टडी थी में पता चला था कि डायबिटीज से पीड़ित कोरोना के मरीजों में दस फीसदी की मौत अस्पताल में भर्ती होने के सात दिन के भीतर हो जाती है। इन मरीजों की मौत की वजह मुख्यतः सेप्सिस होती है जिसमें मरीज की इम्यूनिटी अपने ही शरीर के खिलाफ काम करने लगती है।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पीटर जैक्सन और उनकी टीम कोरोना संक्रमण से जुड़ी चीजों पर शोध कर रही है। इसी क्रम में शोधकर्ताओं ने पैंक्रियास की कोशिकाओं की पड़ताल की। मरीजों के सैंपल की जांच से पता चला ली कोरोना वायरस पैंक्रियास के सिर्फ बीटा सेल्स में मौजूद था। बाकी सेल्स को उसने छोड़ रखा था।
मतलब ये की जब कोरोना वायरस पैंक्रियास में घुसा तब उसने सभी सेल्स पर बराबरी की तेजी से हमला नहीं किया। बल्कि वायरस ने बीटा सेल्स पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया। ये सेल्स इंसुलिन बनाते हैं। वायरस ने इन सेल्स को चुन चुन कर संक्रमित किया, उनको मार दिया और इंसुलिन पैदा होने के प्रोसेस को दबा दिया। रिसर्च में ये भी पता चला कि जो लोग डायबिटिक नहीं हैं उनके पैंक्रियास को भी कोरोना वायरस डैमेज कर सकता है।
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