Weather Effect: मौसम की मार, सुनने की क्षमता कम कर रहा कानों में फंगस

Weather Effect: पहली बारिश के साथ ही ईएनटी की ओपीडी में तेजी से मरीज बढ़े। कम उम्र में ही बहरेपन की दहलीज तक मौसम की नमी पहुंचा रही।

Report :  Snigdha Singh
Update: 2024-07-16 15:52 GMT

Weather Effect

Weather Effect: गोविंद नगर निवासी 32 वर्षीय नौकरीपेशा युवक के कान में सालभर पहले चोट लगी थी। इलाज के बाद चोट तो ठीक हो गई, लेकिन एक सप्ताह से कान में भारीपन, दर्द होने से सुनने की क्षमता भी लगा। जांच में फंगस पड़ने की बात सामने आई। 21 वर्षीय एमबीए छात्र के कान में फंगस ने डेरा जमा रखा है। इस वजह से सुनने की क्षमता भी कम होने लगी तो वह डॉक्टर के पास पहुंचे।घरेलू उपचार करने व लापरवाही के कारण पर्दे पर भी असर पड़ा।

पहली ही बारिश के बाद गर्मी संग बढ़ी उमस के कारण कानों की सेहत तेजी से बिगड़ रही है। हैलट, उर्सला, केपीएम, कांशीराम के अलावा प्राइवेट हॉस्पिटल में भी कान संबंधी तकलीफ के मरीज बढ़ गए हैं। सरकारी अस्पतालों में पहुंच रहा हर चौथा मरीज फंगस की चपेट में है। मौसम में नमी के कारण सबसे ज्यादा खतरा उन मरीजों के लिए है, जो पहले से कान की दिक्कत से जूझ रहे हैं। कम उम्र में ही बहरेपन की दहलीज तक पहुंच रहे हैं। डॉक्टरों ने ऐसे हालात में घरेलू उपचार न करने की सलाह दी है।

पर्दे के डैमेज होने तक का बढ़ा खतरा :

ईएनटी विशेषज्ञों के अनुसार, पहले से कान की दिक्कत से जूझ रहे मरीजो को तो मौसम की नमी बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। लापरवाही व समय पर इलाज न कराने से पर्दे के डैमेज होने तक का खतरा बढ़ा है। बहरेपन की नौबत तक आ रही है। ऐसे में जरा सी दिक्कत पर भी तुरंत डॉक्टरी सलाह लेकर इलाज करें।


इस मौसम में कान में क्यों हो रहा फंगस :

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के ईएनटी विशेषज्ञ डॉ हरेंद्र कुमार का कहना है कि जुलाई से सितंबर तक कान में फंगस होने का खतरा अन्य मौसम की तुलना में दो से तीन गुना तक ज्यादा रहता है। मौसम में नमी के कारण कान में जरा सा भी पानी जाने पर फंगस पड़ने लगते हैं। एक फंगस के बैक्टीरिया अपने जैसे कई और बैक्टीरिया को जमा कर देता है। आमतौर पर यह एक ही कान में होता है, लेकिन अगर किसी की इम्युनिटी कमजोर है तो यह दोनों कान में भी हो सकता है।


70 फीसदी 18 से 45 साल की आयु वाले:

हैलट, उर्सला समेत अन्य सरकारी अस्पतालों की ईएनटी ओपीडी में फंगस के मरीज तेजी से बढ़े हैं। इनमें से 70 फीसदी की आयु 18 से 45 साल के बीच है। हैलट, उर्सला, केपीएम में रोजाना 50 से अधिक मरीज आ रहे हैं। प्राइवेट हॉस्पिटल के मरीजों को देखें तो 200 से अधिक पीड़ित हैं।


ये लक्षण होने पर सचेत जाएं :

- कान में लगातार भारीपन रहना

- बीच-बीच में दर्द का अहसास

- कभी तेज तो कभी हल्की खुजली

- कान से पानी या तरल पदार्थ निकलना

- कान की ऊपरी त्चचा का रंग लाल हो


ये पांच बातें आपके काम की :

- नहाते समय कान में पानी न जाए

- पहले से कान में चोट तो सचेत रहें

- बिना जांच कोई दवा या ड्रॉप न लें

- खुजली या दर्द होने पर कान को न खुरचें

- गर्म तेल या कोई तरल पदार्थ न डालें



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