परमानेंट डैमेज कर सकता है कोरोना वायरस, हो जाएं सावधान
स्टडी में पाया गया है कि जो कोरोना से संक्रमित होकर ठीक हो गए, उनमें लम्बे समय तक अलग अलग तरह की समस्याएं बन रही हैं।
लखनऊ। कोरोना को गंभीरता से नहीं लेना बेहद खतरनाक है क्योंकि ये बीमारी ठीक होने के बाद शरीर को स्थायी रूप से डैमेज कर सकती है। तमाम रिसर्च और स्टडी में पाया गया है कि जो लोग कोरोना से संक्रमित हो कर ठीक भी हो गए उनमें लम्बे समय तक अलग अलग तरह की समस्याएं बनी रही हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि कोरोना वायरस शरीर के किसी भी अंग में जा कर उसे नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखता है। कोरोना के तमाम रहस्यों में उसका ये प्रभाव भी शामिल है जिसके बारे में अभी वैज्ञानिकों को बहुत कुछ पता नहीं है और अलग अलग रिसर्च जारी हैं कि आखिर कोरोना दीर्घकालीन प्रभाव क्यों छोड़ रहा है। ऐसे में कोरोना के असर को देखते हुए मरीजों को बीमारी से ठीक होने के बाद भी खास ध्यान और देखभाल की जरूरत है।
कोरोना वायरस के महीनों तक लक्षण
प्रतिष्ठित नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, शोधकर्ताओं के एक ग्रुप ने पाया कि कोरोना से संक्रमित अधिकांश मरीजों में सीने में दर्द, स्ट्रोक, सांस फूलना और फेफड़े में खून के थक्के जमने जैसी जटिलताएं देखी गई हैं। इस स्टडी के अनुसार ये लक्षण मरीजों के कोरोना नेगेटिव होने के हफ्तों - महीनों बाद तक बने रहे। यही नहीं, मरीजों में अचानक दिल की धड़कन तेज होने और लंबे समय तक थकान रहने की समस्या भी हो रही है। बहुत से लोगों में याददाश्त, ध्यान लगाने और निर्णय लेने की क्षमता भी प्रभावित हो जाती है। दरअसल, कोरोना सिर्फ श्वास तंत्र को ही गिरफ्त में नहीं लेता बल्कि ये शरीर के अन्य अवयवों को भी प्रभावित करता है।
सीडीसी ने भी बताये हैं लॉन्ग टर्म इफेक्ट्स
अमेरिका का सेंटर फॉर डिजीज कण्ट्रोल कोरोना वायरस के बारे में लगातार नई जानकारियाँ देता रहता है। सीडीसी का कहना है कि कोरोना संक्रमण कई तरह से किसी व्यक्ति की सेहत को प्रभावित कर सकता है। कोरोना से संक्रमित ऐसे मरीज जिनको कोई ख़ास लक्षण नहीं होते और अस्पताल में भारती होने की जरूरत भी नहीं पड़ती, उनमें में दीर्घकालीन लक्षण मौजूद रहते हैं। ऐसा भी देखा गया है कि कोरोना से ठीक हो चुके लोगों में हफ़्तों-महीनों बाद लक्षण सामने आने लगें।
सीडीसी के अनुसार सबसे ज्यादा दीर्घकालीन लक्षणों में थकान, सांस फूलना, खांसी, जोड़ों में दर्द, सीने में दर्द, सोचने और एकाग्रता में समस्या, डिप्रेशन, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, बुखार आना, दिल की तेज धड़कन शामिल है।
सीडीसी के अनुसार, इन लक्षणों का क्या असर होता है और इनका क्या महत्त्व है, इसके बारे में अभी पता नहीं है और शोध जारी हैं। लेकिन सार्स और मर्स बीमारियों के अनुभवों से पता चलता है कि संक्रमण के एक साल बाद भी मरीजों में श्वास सम्बन्धी दिक्कतों का बना रहना जारी रह सकता है।
कुछ डाक्टरों का कहना है कि कोरोना से ग्रसित लोगों में से 10 से 14 फीसदी को बीमारी के बाद भी लक्षण आते रहेंगे। लेकिन ये संख्या लक्षणों की तीव्रता पर निर्भर करती है और काफी ज्यादा भी हो सकती है।
वायरस का शरीर पर असर
कोरोना वायरस का श्वसन तंत्र पर प्रभाव –
कोरोना से ठीक हो चुके कुछ मरीजों ने लगातार थकान, सांस लेने में कठिनाई और गहरी सांस लेने में तकलीफ की शिकायत की है। उन्होंने बताया कि इसकी वजह से मामूली काम करने की क्षमताओं में बाधा पहुंची है। चार सीढ़ियां चढ़ने में सांस फूल जा रही है। ऐसा फेफड़ों और हवा की थैली में निशान पड़ने (थ्रोम्बोसिस) की वजह से हो सकता है। इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी और सांस लेने की समस्या पैदा होती है और अगर लंबे समय तक बरकरार रहा, तो इन समस्याओं का प्रभाव लंबे समय तक देखा जा सकता है।
लीवर पर प्रभाव -
कोरोना वायरस नकल बनाने और हेपटिक टिश्यू को नुकसान पहुंचाने के तौर पर भी जाना जाता है। इसके नतीजे में लीवर का कामकाज असमान्य हो जाता है। डॉक्टरों ने कहा है कि कोरोना के ज्यादातर मरीजों में नुकसान बीमारी से ठीक होने के बाद भी रहा है और इसकी वजह साइटोकिन स्टाॉर्म, दवाइयों के साइड इफेक्ट्स या निमोनिया के कारण शरीर में ऑक्सीजन का कम लेवल हो सकता है।
किडनी पर प्रभाव –
कोरोना से ठीक हुए ज्यादातर मरीजों में ये देखा गया कि उनकी किडनी पूरी तरह काम नहीं कर रही है। जिनको पहले किडनी की कोई समस्या नहीं थी उनमें भी ये लक्षण देखे गए। किडनी के नुकसान को वायरस के सीधे हमले, संक्रमण के चलते कम ऑक्सीजन लेवल, साइटोकिन स्टार्म और ब्लड क्लॉट्स से बड़े पैमाने पर जोड़ा गया है। किडनी के नुकसान से डायलिसिस की जरूरत पड़ सकती है।
दिमाग पर प्रभाव -
वायरस की वजह से होनेवाली दिमाग में मामूली से गंभीर सूजन की वजह बनती है। इसके चलते ब्रेन फौग, एकाग्रता में कमी, चक्कर आना, भ्रम की स्थिति और दौरा तक हो सकता है। कुछ शोधकर्ताओं के मुताबिक, कोरोना अस्थायी रूप से लकवे की भी वजह बन सकता है। कुछ ठीक हो चुके मरीजों में अल्जाइमर और पार्किंसन भी देखा गया है। कोरोना के संक्रमण के प्रारंभिक लक्षणों में भी दिमाग सम्बन्धी समस्याएं शामिल हैं।
दिल और रक्त वाहिकाओं पर प्रभाव –
कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों को स्ट्रोक या हार्ट फेल्योर होने का खतरा बढ़ जाता है। अगर पहले से किसी को दिल की बीमारी है, तो उन लोगों के लिए ये खास तौर से गंभीर हो जाता है। देखा गया है कि कोरोना से ठीक हो चुके ज्यादातर मरीजों ने छाती दर्द, थकान, दिल धड़कने की असमान्य गति होने की शिकायत की। हालांकि, कोरोना की जांच में उनकी रिपोर्ट निगेटिव आ चुकी थी। कोरोना के बाद होनेवाले प्रभावों में ब्लड क्लॉट्स बनना भी शामिल है और उसकी वजह से हार्ट अटैक या स्ट्रोक और लीवर, किडनी के नुकसान का खतरा हो सकता है।
पाचन तंत्र पर प्रभाव –
कोरोना संभावित तौर पर मेटाबोलिज्म को बाधित कर सकता है। जिससे शरीर का जरूरी पोषक तत्वों और इलेक्ट्रोलाइट्स को अवशोषित करना ज्यादा मुश्किल हो जाता है। कोरोना से ठीक होने के बावजूद ज्यादातर मरीजों ने अक्सर मतली, भूख की कमी, डायरिया और पेट की परेशानी की शिकायत की है। जिससे उनका नियमित डाइट खाना मुश्किल हो गया. हालांकि, ये लक्षण ज्यादातर अस्थायी होता है।