डायबिटीज और हृदय रोग से ग्रसित रोगियों में डिमेंशिया होने का सर्वाधिक खतरा: रिसर्च

नए रिसर्च में बताया गया है कि जोखिम केवल तभी बढ़ता है जब किसी को कम से कम दो बीमारियां होती हैं। दूसरी बीमारी के विकास को रोककर डिमेंशिया को भी रोका जा सके।

Report :  Preeti Mishra
Update:2022-06-20 15:13 IST

डायबिटीज और हृदय रोग से ग्रसित रोगियों में डिमेंशिया होने का सर्वाधिक खतरा (Social media)

Health News: आजकल की लाइफस्टाइल और अनियमित जीवनशैली के कारण लोगों में टाइप 2 डायबिटीज और हृदय रोग या स्ट्रोक का खतरा बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। चिंता की बात यहाँ ख़तम नहीं होती क्योंकि एक नए रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि डायबिटीज और हृदय रोगों से ग्रसित लोगों में मनोभ्रंश यानि डिमेंशिया होने का खतरा औरों के मुकाबले दोगुना अधिक होता है। 

बता दें कि टाइप 2 मधुमेह, हृदय रोग (इस्केमिक हृदय रोग, हृदय की विफलता या आलिंद फिब्रिलेशन) और स्ट्रोक, तथाकथित कार्डियोमेटाबोलिक रोग, मनोभ्रंश (dementia) के कुछ मुख्य जोखिम कारक हैं।

अल्जाइमर एंड डिमेंशिया: द जर्नल ऑफ द अल्जाइमर एसोसिएशन में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि एक से अधिक कार्डियोमेटाबोलिक रोग की उपस्थिति ने संज्ञानात्मक गिरावट की गति को तेज करने के साथ संज्ञानात्मक हानि और मनोभ्रंश के जोखिम को दोगुना कर दिया, जिसके कारण उनके विकास बाईट दो सालों में बहुत अधिक तेजी आई और अधिक संख्या में बीमारियों के साथ जोखिम की भयावहता अत्यधिक बढ़ गई। इसलिए शोधकर्तों के सुझाव के अनुसार मधुमेह और हृदय रोग की बढ़ने की तीव्रता को कम करके हम डिमेंशिया के जोखिम को भी कम कर सकते हैं। 

संस्थान में एजिंग रिसर्च सेंटर में डॉक्टरेट के छात्र अबीगैल डोव के अनुसार "हमारे अध्ययन में, मधुमेह / हृदय रोग और मधुमेह / हृदय रोग / स्ट्रोक के संयोजन संज्ञानात्मक कार्य के लिए सबसे अधिक हानिकारक थे। हालांकि, जिन व्यक्तियों को सिर्फ एक कार्डियोमेटाबोलिक बीमारी थी, उनमें मनोभ्रंश का काफी अधिक जोखिम नहीं था।

नए रिसर्च में यह बताया गया है कि जोखिम केवल तभी बढ़ता है जब किसी को कम से कम दो बीमारियां होती हैं, इसलिए यह संभव है कि दूसरी बीमारी के विकास को रोककर डिमेंशिया को भी रोका जा सके।" जो की इस दिशा में एक अच्छी खबर है। उल्लेखनीय है कि डिमेंशिया दशकों में धीरे-धीरे विकसित होता है। यह पहले क्रमिक संज्ञानात्मक गिरावट के रूप में प्रकट होता है जो केवल संज्ञानात्मक परीक्षणों में दिखाई देता है। यह तब संज्ञानात्मक हानि में बदल जाता है जिसमें व्यक्ति अपनी असफल स्मृति को नोटिस करता है लेकिन फिर भी खुद की देखभाल कर सकता है, और अंत में पूर्ण विकसित डिमेंशिया के रूप में।

शोधकर्ताओं ने स्टॉकहोम में कुंगशोलमेन में रहने वाले 60 वर्ष से अधिक आयु के कुल 2,500 स्वस्थ, मनोभ्रंश मुक्त व्यक्तियों पर डेटा निकाला। संज्ञानात्मक क्षमता में परिवर्तन और मनोभ्रंश के विकास की निगरानी के लिए प्रतिभागियों को चिकित्सा परीक्षाओं और संज्ञानात्मक परीक्षणों के साथ 12 वर्षों तक पालन किया गया। गौरतलब है कि कार्डियोमेटाबोलिक रोगों और मनोभ्रंश के जोखिम के बीच संबंध उन प्रतिभागियों में अधिक मजबूत थे जो 78 वर्ष से कम उम्र के थे।

शोधकर्ताओं के अनुसार हमें पहले से ही मध्यम आयु में कार्डियोमेटाबोलिक रोग की रोकथाम पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि संज्ञानात्मक विफलता और मनोभ्रंश का जोखिम उन लोगों में अधिक दिखाई देता है जो जीवन में पहले कार्डियोमेटाबोलिक रोग विकसित करते हैं। 

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