Pippali ke fayde: गठिया, तापेदिक और हृदय रोगों जैसी कई बीमारियों में संजीवनी साबित होती है पिप्परी
Pippali ke fayde: सर्दी के मौसम में इस तरह फायदेमंद साबित होता है गर्म तासीर का ये मसाला, जाने इसकी खूबियां और उपयोग विधि।
Pippali ke fayde: भारतीय रसोईयों में बतौर गरम मसाले की तरह इस्तेमाल की जाने वाली पिप्पली (Piper longum) कई विशेष व्यंजनों में खासतौर से इस्तेमाल की जाती है । यह मसाला खाने का स्वाद बढ़ाने तक ही शामिल नहीं, बल्कि सौंदर्य वृद्धि के साथ एक नहीं बल्कि अनेक औषधीय फायदे हैं। आमतौर पर देखा जाता है कि एक खास वर्ग ही इस मसाले का इस्तेमाल प्रमुखता से करता है, जबकि अब नई पीढ़ी में ज्यादातर लोग इससे अंजान हैं। गुणों से भरपूर इस मसाले में प्रोटीन,एंटी-इंफ्लेमेटरी, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन्स, अमीनो एसिड के अलावा मिनरल्स जैसे शरीर को स्वस्थ रखने वाले जरूरी तत्व मौजूद होते हैं। इस मसाले की तासीर गर्म होती है, तो बहुत ज्यादा मात्रा में सेवन फायदे की जगह नुकसान भी हो सकता है। आइए जानते हैं स्वाद, स्वास्थ और सौंदर्य वृद्धि में पिप्पली का इस्तेमाल किन-किन तरीकों से कर सकते हैं।
पिप्पली का इस्तेमाल कई तरह के भारतीय व्यंजनों में किया जाता है (Piper longum used in many types of Indian dishes)
•मसालेदार दाल, सूप, रसम, निहारी, कोरमा, मटन स्टू जैसे तीखे भोजन के लिए।
•मिर्च मछली में काली मिर्च की जगह पिप्पली का इस्तेमाल किया जा सकता है।
•मीट के लिए मैरिनेड में पिप्पली का इस्तेमाल किया जा सकता है।
•कद्दू और नारियल की करी में पिप्पली का इस्तेमाल किया जा सकता है।
•पिप्पली चाय बनाने के लिए, आधा चम्मच पिप्पली पाउडर को गर्म पानी में भिगोकर छान लें और चाहें तो शहद डालकर मीठा करें।
•लॉन्ग पेपर चिकन बनाने के लिए, चिकन को दही, पिप्पली पाउडर और मसालों के साथ मैरीनेट करें।
•कंदथिप्पिली रसम बनाने के लिए, इमली के पानी को टमाटर, मसालों और आधा चम्मच पिप्पली पाउडर के साथ उबालें ।
•सूप में पिप्पली पाउडर डालने से स्वाद और फ़ायदा दोनों बढ़ जाते हैं।
स्वास्थ्य लाभ में पिप्पली का उपयोग (Use of Piper longum for health benefits )
1. सिर दर्द में राहत (beneficial in headache)
पिप्पली को पानी में पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है। पिप्पली और वच चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर 3 ग्राम की मात्रा में नियमित रूप से दो बार दूध या गर्म पानी के साथ सेवन करने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
2. कब्ज की समस्या में लाभकारी (Beneficial in constipation )
कब्ज की समस्या में भी पिप्पली काफी लाभकारी सिद्ध होती है। यह औषधि डाइजेस्टिव एजेंट की तरह काम कर सकती है, जिससे भोजन को सही से पचाने में मदद मिल सकती है। साथ ही यह मल निकासी में सहयोग कर कब्ज में आराम दिला सकती है।
3. खांसी के लिए अचूक उपाय (Perfect remedy for cough)
पीपली की तासीर गर्म होती है, तो अगर आपको खांसी, जुकाम की समस्या है, तो इसके लिए पीपली के पाउडर का सेवन करें। चुटकी भर पाउडर को शहद के साथ खाने भर से ही लाभ मिल जाएगा।
4. अपच में मददगार (helpful in indigestion)
अपच, गैस, एसिडिटी, ब्लोटिंग की समस्या ०से अकसर ही परेशान रहते हैं, तो इसके लिए पीपली के काढ़े का दिन में एक बार सेवन शुरू कर दें। इसमें मौजूद पोषक तत्व और मिनरल्स अपच की समस्या से छुटकारा दिलाने में काफी हद तक मददगार हैं।
5. नींद न आने की समस्या में मददगार (Helpful in insomnia)
नींद न आने की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए भी इसका सेवन काफी लाभदायक है। रात को सोने से पहले चुटकी भर पीपली के पाउडर को शहद के साथ खा लें।
6. वेट लॉस में मददगार (Helpful in weight loss)
पीपली को छोटा पीपल भी कहा जाता है। ये मोटापा कम करने का भी कारगर इलाज है। बस इसके लिए पीपली के पाउडर की लगभग आधे ग्राम की मात्रा का रोजाना सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करें।
7. हृदय रोगों में लाभकारी (Beneficial in heart diseases)
पिप्पली चूर्ण में शहद मिलाकर प्रातः सेवन करने से, कोलेस्ट्रोल की मात्रा नियमित होती है और हृदय रोगों में लाभ होता है। पिप्पली और छोटी हरड़ के बराबर मिलाकर,पीसकर एक चम्मच की मात्रा में सुबह- शाम गुनगुने पानी से सेवन करने पर पेट दर्द, मरोड़ और दुर्गन्धयुक्त अतिसार ठीक हो जाता है।
8. तपेदिक से बचाव में लाभ (Benefits in prevention of tuberculosis )
पिप्पली में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के गुण होते हैं, जिनके कारण टी.बी. (तपेदिक) और अन्य संक्रामक रोगों की चिकित्सा में इसका उपयोग लाभदायक होता है। पिप्पली फेफड़ों की शक्ति में सुधार करने के लिए बहुत उपयोगी है, क्योंकि यह भूख को बेहतर बनाती है, यह तपेदिक और उसके उपचार के दौरान वजन कम होने के नुकसान से बचने के लिए मदद करती है। यह तपेदिक उपचार में इस्तेमाल दवाओं के असर से होने वाली जिगर की क्षति से भी बचाती है। पिप्पली अनेक आयुर्वेदिक और आधुनिक दवाओं की कार्यक्षमता को बढ़ा देती है।
9. गठिया में लाभदायक (beneficial in arthritis)
इस जड़ी बूटी की रूट के काढ़े को पतला गरुदी कहा जाता है।अर्थराइटिस के उपचार में पिप्पली की जड़ का उपयोग किया जाता है।
10. सर दर्द में लाभकारी (Beneficial in headache)
पिप्पली को पानी में पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द ठीक होता है। पिप्पली और वच चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर 3 ग्राम की मात्रा में नियमित रूप से दो बार दूध या गर्म पानी के साथ सेवन करने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
11. यकृत प्लीहा के सुधार में लाभकारी (Beneficial in improving liver spleen)
यकृत और प्लीहा विकारों में पिप्पली रसायन उपचार के साथ प्रयोग की जाती है। यह एक विशेष उपचार प्रक्रिया है, जिसमें पिप्पली पाउडर को धीरे धीरे बढ़ाया दिया जाता है और ग्यारह या इक्कीस दिन तक पुनः दूध के साथ इसकी खुराक को घटाया जाता है। लीवर बढ़ा हुआ हो या लिवर में सूजन हों तो 5 ग्राम पिपली के साथ एक ग्राम पीपलामूल मिलाकर खाएं।
पिप्पली के अन्य फायदे इस प्रकार हैं (Other benefits of Piper longum)
*5-6 पुरानी पिप्पली के पौधे की जड़ सुखाकर कुटकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण की 1-3 ग्राम की मात्रा को गर्म पानी या गर्म दूध के साथ पिला देने से शरीर के किसी भी भाग का दर्द 1-2 घंटे में दूर हो जाता है।
* वृद्धा अवस्था में शरीर के दर्द में यह अधिक लाभदायक होता है।
तीन पिप्पली पीसकर शहद में मिलाकर चाटने से श्वास, खांसी के साथ ज्वर, मलेरिया ठीक होता है।
* फ्लू में दो पिप्पली या एक चौथाई चम्मच सौंठ दूध में उबाल कर पिलाएं।
* पिप्पली वृक्ष के पत्ते दस्त को बन्द करते हैं।इसके पत्ते चबाएं या पानी में उबालकर इसका उबला हुआ पानी पीयें।
* बच्चों का दांत निकलते समय पिपली घिसकर शहद के साथ चाटने से दांत आराम से निकल आते हैं।
* स्त्रियों को यदि मासिक धर्म कम होते है तो पिपली और पिप्पली की जड़ डेढ़- डेढ़ ग्राम मिलाकर उसका काढ़ा बनाकर पीने से दर्द भी कम होता है और माहवारी भी नियमित हो जाती है।
यहां पाया जाता है पिप्पली का पौधा (Piper longum plant is found here)
पिप्पली की कोमल तनों वाली लताऐं 1-2 मीटर तक जमीन पर फैली होती है। इसके गहरे रंग के चिकने पत्ते 2-3 इंच लंबे और 1-3 इंच चौड़े, हृदय के आकार के होते हैं। इसके पुष्पदंड 1-3 इंच और फल 1 इंच से थोड़े से कम या अधिक लंबे शहतूत के आकार के होते हैं। कच्चे फलों का रंग हल्का पीलापन लिए और पकने पर गहरा हरा रंग और उसके बाद काला हो जाता है। इसके फलों को ही छोटी पिप्पली या लोंग पेपर कहा जाता है।
भारत के गर्म क्षेत्रों, केंद्रीय हिमालय से असम, पश्चिम बंगाल की पहाड़ियों, पश्चिमी घाट के सदाहरित जंगलों तक यह पायी जाती है। पिप्पली की नार्थ-ईस्ट और दक्षिण भारत में खेती भी की जाती है। आयुर्वेद में पिप्पली के कच्चे फलों को औषधीय रूप में प्रयोग करते हैं। यह सूर्य और चंद्रमा की किरणों के नीचे सूखाकर उपयोग किया जाता है। इसकी रूट सबसे अधिक उपयोग की जाती है।पिप्पली जितनी फायदेमंद है उतनी ही नुकसान दायक भी हो सकती है अगर इसे सही मात्रा में न लिया जाए तो।
पिप्पली के कुछ नुकसान (disadvantages of Piper longum)
ज़्यादा मात्रा में या लंबे समय तक पिप्पली का सेवन करने से काफ़ बढ़ सकता है।
पिप्पली की अंदरूनी गर्मी से पित्त दोष बढ़ सकता है।
पिप्पली की कम चिकनाई की वजह से यह वात असंतुलन का कारण बन सकती है।
पिप्पली की तासीर बहुत गर्म होती है, इसलिए गर्मियों में इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
सर्दियों में भी ज़्यादा मात्रा में पिप्पली खाने से एलर्जी और खुजली हो सकती है।
शिशुओं को पिप्पली देने से बचना चाहिए।
गर्भवती महिलाओं को पिप्पली लेने से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भी कम मात्रा में पिप्पली लेनी चाहिए। पीपली को गाय के घी में तलें और फिर उसे चीनी, शहद या गाय के दूध में पीसकर मिलाएं, भोजन से 10 मिनट पहले या बाद में सेवन करने से इंफरटिलिटी की समस्या दूर होती है।
अगर आपको हाइपरएसिडिटी या गैस्ट्राइटिस की समस्या है, तो पिप्पली लेने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
पीपल और पिप्पली में क्या अंतर है? ( What is the difference between Peepal and Pippali?)
आयुर्वेद औषधियों में छोटी पीपल को ही आम तौर पर पिप्पली के नाम से भी जाना जाता है। छोटी पीपल के औषधीय गुणों के अनुसार इसके बहुत सारे फायदे हैं। यही नहीं इसका इस्तेमाल कई बार मसाले के रूप में भी किया जाता रहा है।
पीपली कितने प्रकार की होती है? (How many types of Piper longum are there?)
वैसे निघण्टु में चार जातियां बताई जाती हैं- (1) पिप्पली (2) गज पिप्पली (3) सैंहली और (4) वन पिप्पली।
विशिष्ट त्वचा संबंधी समस्याओं के लिए पिप्पली (Piper longum for specific skin problems)
आयुर्वेदिक चिकित्सा में इसके महत्व, त्वचा के लिए इसके वैज्ञानिक रूप से सिद्ध लाभों और इस चमत्कारी मसाले को अपनी त्वचा की देखभाल की दिनचर्या में शामिल करने के तरीके के बारे में जानेंगे। चाहे आप मुंहासों, महीन रेखाओं या बेजान त्वचा की समस्या से निजात पाने में पिप्पली बेहद मददगार हो सकती है।
मुहांसे (Acne)
पिप्पली के जीवाणुरोधी और सूजनरोधी गुण इसे मुहांसे दूर करने का एक कारगर उपाय बनाते हैं। पिप्पली पाउडर को शहद और दही के साथ मिलाकर पिप्पली युक्त फेस मास्क बनाएं। इसे लगाएं, 15-20 मिनट तक लगा रहने दें और गर्म पानी से धो लें।
एंटी-एजिंग (Anti-Aging)
पिप्पली रक्त परिसंचरण को उत्तेजित करती है, त्वचा की लोच में सुधार करती है और महीन रेखाओं और झुर्रियों को कम करती है। कायाकल्प करने वाले चेहरे की मालिश के लिए पिप्पली तेल (नारियल या बादाम के तेल जैसे वाहक तेल में मिलाया हुआ) का उपयोग करें।
स्किन डिटॉक्स (Skin Detox)
पिप्पली के डिटॉक्सिफाइंग गुण इसे स्टीम फेशियल के लिए एकदम सही बनाते हैं। पिप्पली पाउडर को गर्म पानी में डालें, कटोरे पर तौलिया रखकर झुकें और भाप को अपना जादू चलाने दें।
पिप्पली को अपनी त्वचा देखभाल दिनचर्या में शामिल करें
पिप्पली को अपनी स्किनकेयर रूटीन में शामिल करना आसान और बहुमुखी है।
इन तरीकों को आज़माएँ (Try these methods)
पिप्पली पाउडर को अपने पसंदीदा फेस मास्क या मॉइस्चराइज़र के साथ मिलाएं
चेहरे की मालिश के लिए पिप्पली तेल का उपयोग करें
अपने नहाने के पानी में पिप्पली डालकर आराम महसूस करें।
चमकदर त्वचा के लिए पिप्पली युक्त टोनर या सीरम बनाएं।
गमले में ऐसे लगाएं पिप्पली का पौधा (Plant Piper longum plant in a pot like this )
पिप्पली को छोटे गमले या क्यारी में लगाया जा सकता है। गमले में पौधा लगाने का तरीकाः
गमले को अंदर और बाहर से अच्छी तरह धो लें।
गमले के नीचे के छिद्र में मिट्टी के ठीकरे या टूटे टुकड़े बिछा दें।
गमले को तैयार खाद से आधा भरें।
पौधे को बीच में रखें और बाकी मिट्टी चारों ओर भर दें।
पिप्पली की नर्सरी बनाने का सबसे अच्छा समय फ़रवरी-मार्च का होता है। इस समय, पुराने पौधों की 8 से 10 सेंटीमीटर लंबी शाखाओं को काटकर पॉलीथीन की थैलियों में रोपित किया जाता है। इन थैलियों को मिट्टी, रेत, और गोबर की खाद से तैयार करना चाहिए। रोपाई से पहले, इन कलमों को गौमूत्र से ट्रीट कर लेना चाहिए। इन थैलियों को छायादार जगह पर रखना चाहिए और रोज़ हल्की सिंचाई करनी चाहिए। लगभग डेढ़ से दो महीने में ये कलमें खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाती हैं।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)