Himachal Pradesh Election Result 2022: सेब किसानों की अडानी से नाराजगी बीजेपी को पड़ गई भारी
Himachal Pradesh Election Result 2022: हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के खराब प्रदर्शन को सेब किसानों की नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा है। अब तक के रूझानों के मुताबिक, कांग्रेस 3 सीटों पर जीत हासिल कर 36 पर आगे चल रही है।
Himachal Pradesh Election Result 2022: हिमाचल प्रदेश में शुरूआती रूझानों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली थी। लेकिन जैसे – जैसे काउंटिंग आगे बढ़ी, कांग्रेस मजबूत होती गई और बहुमत के पार पहुंच गई। हिमाचल की जनता ने पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के विपरीत पुराने रिवाज को जारी रखते हुए इस बार विपक्ष में बैठी कांग्रेस को मौका दिया है। अब तक के रूझानों के मुताबिक, कांग्रेस 3 सीटों पर जीत हासिल कर 36 पर आगे चल रही है।
वहीं, बीजेपी सात सीटों पर जीत दर्ज कर, 19 पर आगे चल रही है। वहीं, निर्दलीय उम्मीदवार तीन सीटों पर आगे हैं। कांग्रेस ने पांच साल बाद सत्ता में वापसी करते हुए सरकार बनाने की कवायद शुरू कर दी है। जानकारी के मुताबिक, पार्टी ने नवनिर्वाचित विधायकों को चंडीगढ़ बुलाया। वहीं, सत्तारूढ़ बीजेपी पूरी कोशिश करने के बाद भी उत्तराखंड जैसा करिश्मा यहां दिखा नहीं पाई और पार्टी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
सेब किसानों की नाराजगी पड़ी भारी
हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के खराब प्रदर्शन को सेब किसानों की नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा है। अगस्त में सेब के किसानों ने राज्य में बड़ा आंदोलन भी किया था। बागवानों ने जीएसटी की दरों और पैकेजिंग मेटेरियल में बढ़ोतरी को लेकर सरकार के खिलाफ सचिवालय का घेराव किया था। दरअसल, सेब के उत्पादक बढती लागत के मुकाबले कम कीमत मिलने को लेकर परेशान हैं। राज्य के सेब उत्पादक किसानों की लंबे समय से मांग रही है कि पड़ोसी राज्य जम्मू कश्मीर की तरह यहां भी सेब का एक न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी हो। किसानों का कहना है कि जब जम्मू में सेब का समर्थन मूल्य हो सकता है, तो हिमाचल में क्यों नहीं।
अडानी ग्रुप के फैसले पर भड़का था गुस्सा
अडानी ग्रुप की कंपनी अडानी एग्रोफेश हिमाचल प्रदेश में सेब की सबसे अधिक खरीद करने वाली कंपनियों में से एक है। बागवानों के जेल भरो आंदोलन के बाद भाजपा सरकार ने सेबों की कीमत तय करने के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया था। लेकिन अडानी की कंपनी ने कमेटी की बैठक के दिन ही सेब के दाम जारी कर दिए।
इससे सेब उत्पादक किसान भड़क गए और उन्होंने कंपनी पर मनमानी का आरोप लगाया। अडानी ग्रुप की कंपनी की ओर से जारी की गई सेब की नई कीमत पिछले साल के मुकाबले 12 फीसदी कम थी। जबकि इस साल सेब उत्पादन की लागत 30 प्रतिशत से अधिक बढ़ गई थी। आंदोलन कर रहे किसानों का आरोप था कि सेब खरीदने वाली कंपनियों सरकार के दिशा निर्देशों का खुलेआम उल्लंघन कर रही हैं और कमेटी की बैठक में भाग भी नहीं लेती। किसानों का मानना था कि कंपनियां का ये रूख सरकार का उनके प्रति नरम रवैया अपनाने के कारण था। जिसका खामियाजा चुनाव में बीजेपी को भुगतना पड़ा है।
हिमाचल की राजनीति में सेब किसानों का दखल
हिमाचल प्रदेश के लगभग 50 फीसदी इलाके में सेब की खेती होती है। राज्य की जीडीपी में सेब का योगदान 13 फीसदी से भी अधिक है। सरकार को हर साल सेब की खेती से 5 से 6 हजार का राजस्व मिलता है। हिमाचल के दो लाख परिवार सेब की खेती से जुड़े हुए हैं। इस छोटे से राज्य में ये आंकड़ा काफी मायने रखता है। करीब 20 से 25 विधानसभा सीटों को सेब की खेती करने वाले किसान प्रभावित करते हैं। यही वजह है कि इसबार भी बीजेपी और कांग्रेस ने उन्हें अपनी ओर रिझाने में पूरी ताकत झोंक दी थी।
हिमाचल प्रदेश में इससे पहले भी सेब किसानों की नाराजगी के कारण बीजेपी सत्ता गंवा चुकी हैं। जुलाई 1990 में आंदोलन कर रहे सेब किसानों पर पुलिस ने गोली चला दी थी, जिसमें तीन किसानों की मौत हो गई थी। इसका खामियाजा 1993 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को उठाना पड़ा था। खुद मुख्यमंत्री शांता कुमार दो सीटों से चुनाव हार गए थे। कांग्रेस ने उस दौरान 68 में से 60 सीटों पर जीत हासिल की थी और सत्ता में आते ही सबसे पहले सेब किसानों की मांगों को पूरा किया था।