हिमाचल में एक ऐसी देवी, जिसकी शक्ति देख अकबर हुआ था नतमस्तक

आज हम आपको बताएंगे कि कैसे मुगल सम्राट का ज्वालाजी मंदिर में टुटा था अभिमान। माता की शक्ति का एहसास होते ही नंगे पांव सोने का छत्र लेकर ज्वालाजी मंदिर में पहुंचा था मुगल सम्राट अकबर।

Newstrack :  Network
Published By :  Deepak Kumar
Update: 2021-10-11 14:25 GMT

मां ज्वालाजी मंदिर। (Social Media)

Himachal Pradesh ke Prasidh Mandir: देश के 51 शक्तिपीठों में शामिल है। इन शक्तिपीठों में हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आते है। इन शक्तिपीठों में से एक मां ज्वाला जी शक्तिपीठ भी शामिल है। ये शक्तिपीठ भी अन्य शक्तिपीठों की तरह अपने आप में अनोखा और विचित्र है। प्रदेश के इस शक्तिपीठ की मान्यता सभी शक्तिपीठों में सर्वोपरि मानी गई है। इस शक्तिपीठ को जोतां वाली का मंदिर (Himachal Pradesh ke Prasidh Mandir) और नगरकोट भी कहा जाता है। मान्यता है कि राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री देवी सती की जीभ यहां गिरी थी।

आपको बता दें कि यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा इसलिए है, क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है, बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही 9 ज्वालाओं की पूजा होती है। यहां पर धरती से 9 अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकल रहीं है, जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है. इन नौ ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है।


ज्वाला जी शक्तिपीठ पहुंचने का मार्ग

ये शक्तिपीठ हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले से 30 किलोमीटर दूर ज्वाला देवी के नाम से प्रसिद्ध है। पृथ्वी के गर्भ से निकल रही 9 ज्वालाओं की पूजा की जाती है। इन्हें जलाने में किसी भी तरह के तेल या बाती का इस्तेमाल नहीं किया गया है।

वायु मार्ग 

ज्वालाजी मंदिर जाने के लिए नजदीकी हवाई अड्डा गगल में है जो कि ज्वालाजी से 46 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहां से मंदिर तक जाने के लिए कार व बस सुविधा उपलब्ध है।

रेल मार्ग

रेल मार्ग से जाने वाले यात्री पठानकोट से चलने वाली स्पेशल ट्रेन की सहायता से मारंडा होते हुए पालमपुर आ सकते हैं। पालमपुर से मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है।

सड़क मार्ग

पठानकोट, दिल्ली, शिमला आदि प्रमुख शहरों से ज्वालामुखी मंदिर तक जाने के लिए बस व कार सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा यात्री अपने निजी वाहनों व हिमाचल प्रदेश टूरिज्म विभाग की बस के द्वारा भी वहां तक पहुंच सकते हैं।


ज्वाला जी मां मंदिर को लेकर कथा प्रचलित

मां के इस मंदिर को लेकर एक कथा काफी प्रचिलत है। कहा जाता है कि सम्राट अकबर जब इस जगह पर आए तो उन्हें यहां पर ध्यानू नाम का व्यक्ति मिला। ध्यानू देवी का परम भक्त था। ध्यानू ने अकबर को ज्योतियों की महिमा के बारे में बताया, लेकिन अकबर उसकी बात न मान कर उस पर हंसने लगा। अहंकार में आकर अकबर ने अपने सैनिकों को यहां जल रही 9 ज्योतियों पर पानी डालकर उन्हें बुझाने को कहा। पानी डालने पर भी ज्योतियों पर कोई असर नहीं हुआ। यह देखकर ध्यानू ने अकबर से कहा कि देवी मां तो मृत मनुष्य को भी जीवित कर देती हैं।

ऐसा कहते हुए ध्यानू ने अपना सिर काट कर देवी मां को भेंट कर दिया, तभी अचानक वहां मौजूद ज्वालाओं का प्रकाश बढ़ा और ध्यानू का कटा हुआ सिर अपने आप जुड़ गया और वह फिर से जीवित हो गया। यह देखकर अकबर भी देवी की शक्तियों को पहचान गया और उसने देवी को सोने का छत्र भी चढ़ाया। कहा जाता है कि मां ने अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र स्वीकार नहीं किया था। अकबर के चढ़ाने पर वह छत्र गिर गया और वह सोने का न रह कर किसी अज्ञात धातु में बदल गया था। वह छत्र आज भी मंदिर में सुरक्षित रखा हुआ है।


छत्र किस धातु का अभी तक नहीं लगा पता

बादशाह अकबर की ओर से चढ़ाया गया छत्र आखिर किस धातु में बदल गया। इसकी जांच के लिए 60 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पहल पर यहां वैज्ञानिकों का एक दल पहुंचा। इसके बाद छत्र के एक हिस्से का वैज्ञानिक परीक्षण किया गया। वैज्ञानिक परीक्षण के आधार पर इसे किसी भी धातु की श्रेणी में नहीं माना गया है।

दोबारा परीक्षण नहीं कराएगा मंदिर प्रशासन

मान्यता है कि अकबर के घमंड को तोड़ने के लिए ही देवी ने अपनी शक्ति से सोने के छत्र को अज्ञात धातु में बदल दिया था. बहरहाल आज भी यह छत्र यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए रहस्य का विषय बना हुआ है. जो भी श्रद्धालु देवी मां के इस शक्तिपीठ में आता है वो अकबर के छत्र देखे बगैर अपनी यात्रा को अधूरा ही मानता है. आज भी छत्र मंदिर परिसर के साथ लगते मोदी भवन में रखा हुआ है.

51 शक्तिपीठ में से एक इस मंदिर में नवरात्रि में इस मंदिर पर भक्तों का तांता लगा रहता है। बादशाह अकबर ने इस ज्वाला को बुझााने की कोशिश की थी, लेकिन वो नाकाम रहे थे। वैज्ञानिक भी इस ज्वाला के लगातार जलने का कारण नहीं जान पाए हैं।

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