Ram Mandir: प्रभु के चरणों में अर्पित किये गए हिमाचल से आये ट्यूलिप फूल, जानिए इनके बारे में सब कुछ

Ram Mandir: अभिषेक समारोह के लिए किए विशेष इंतजामों में ट्यूलिप के फूल भी शामिल थे जिन्हें खास तौर पर हिमाचल प्रदेश के पालमपुर से लाया गया था। ये फूल प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के दौरान भगवान राम को अर्पित किए गए थे।

Written By :  Neel Mani Lal
Update:2024-01-23 12:54 IST

Tulip flowers from Palampur (PHOTO: SOCIAL MEDIA )

Ram Mandir: ट्यूलिप के फूल अपनी सुंदरता के लिए दुनिया भर में मशहूर हैं। इन फूलों का संबंध कई संस्कृतियों से प्राचीन काल से बना हुआ है। इन्हीं खास ट्यूलिप फूलों को अयोध्या में श्री राम मंदिर अभिषेक समारोह में प्रभु के चरणों में स्थान पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। अभिषेक समारोह के लिए किए विशेष इंतजामों में ट्यूलिप के फूल भी शामिल थे जिन्हें खास तौर पर हिमाचल प्रदेश के पालमपुर से लाया गया था। ये फूल प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के दौरान भगवान राम को अर्पित किए गए थे।

दरअसल, पालमपुर में सीएसआईआर इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायो रिसोर्स टेक्नोलॉजी (सीएसआईआर-आईएचबीटी) स्थित है जहां सीएसआईआर-आईएचबीटी के ट्यूलिप गार्डन में कई प्रकार के ट्यूलिप लगाए जाते हैं। यह हिमाचल प्रदेश में पहला और भारत का दूसरा ट्यूलिप गार्डन है।

विशेष इंतजाम

सीएसआईआर-आईएचबीटी के फ्लोरीकल्चर मिशन के अनुसार, इस साल ट्यूलिप के फूलों को खुले मैदान के साथ-साथ हाइड्रोपोनिक सेटिंग में भी उगाया गया है। यहां से ये फूल अयोध्या में खास मौके का हिस्सा बनने के लिए भेजे गए हैं।

संस्थान के निदेशक सुदेश कुमार यादव ने कहा कि यह गर्व की बात है कि सीएसआईआर आईएचबीटी भी प्रतिष्ठा समारोह में शामिल हुआ है। उन्होंने कहा कि इस मौसम में ट्यूलिप में फूल नहीं आते। यह फूल केवल जम्मू-कश्मीर और कुछ अन्य उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ही उगता है और वह भी केवल वसंत ऋतु में। लेकिन संस्थान ने हाल ही में एक स्वदेशी तकनीक विकसित की है जिसके माध्यम से ट्यूलिप को उसके मौसम की प्रतीक्षा किए बिना, पूरे वर्ष उपलब्ध कराया जा सकता है।


लखनऊ में भी ट्यूलिप और नमो कमल

विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी मंत्री जितेंद्र सिंह ने भी पालमपुर संस्थान की तारीफ की है। उन्होंने साथ में ये भी बताया कि लखनऊ में राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) ने 'एनबीआरआई नमो 108' नाम से कमल की एक नई किस्म विकसित करके एक मील का पत्थर हासिल किया है। कमल की यह किस्म मार्च से दिसंबर तक खिलती है और न केवल देखने में आकर्षक है बल्कि पोषक तत्वों से भी भरपूर है। उन्होंने कहा कि इसे कमल की पहली किस्म होने का गौरव प्राप्त है जिसका जीनोम अपनी अनूठी विशेषताओं के लिए पूरी तरह से अनुक्रमित है।

लखनऊ स्थित एनबीआरआई ने भी अपने यहां ट्यूलिप उगाने में सफलता प्राप्त की है। इस साल एनबीआरआई के अनुसंधान केंद्र के बंथरा स्थित बगीचे में लगभग 60 लाल ट्यूलिप खिले हैं और वनस्पति विज्ञानियों का दावा है कि यह सर्दियों में दुनिया भर में खिलने वाला पहला ट्यूलिप हो सकता है। ट्यूलिप आमतौर पर मार्च और अप्रैल के वसंत महीनों में खिलते हैं, लेकिन इस साल लखनऊ में गर्म दिसंबर ने उनके खिलने को बढ़ा दिया है, जिससे अलग-अलग मिट्टी और जलवायु की अप्रत्याशित परिस्थितियों में एक ऑफ-सीजन चमत्कार हो गया है। एनबीआरआई के मुताबिक, लखनऊ में ट्यूलिप की सफल खेती एक वरदान साबित होगी। इससे भारतीय जलवायु के अनुकूल नई ट्यूलिप किस्मों के विकास को बढ़ावा मिल सकता है। यह क्षेत्र के किसानों के लिए नए आर्थिक अवसर भी पैदा कर सकता है, जो उन्हें कटे हुए फूलों या सजावटी पौधों के रूप में उगा सकते हैं और बेच सकते हैं।


खास बातें

- ट्यूलिप की लगभग पचहत्तर प्रजातियाँ हैं, और इन्हें चार उपजातियों में विभाजित किया गया है।

- ऐसा माना जाता है कि "ट्यूलिप" नाम पगड़ी के लिए फ़ारसी शब्द से लिया गया है। शायद इसकी खोज करने वालों ने इस फूल को पगड़ी के समान माना होगा।

- ट्यूलिप मूल रूप से दक्षिणी यूरोप से मध्य एशिया तक फैले एक समूह में पाए जाते थे, लेकिन सत्रहवीं शताब्दी के बाद से व्यापक रूप से प्राकृतिक रूप से विकसित और खेती की जाने लगी है।

- पूर्व और मध्य एशिया के अधिकतर हिस्सों में जंगली रूप से उगने वाले ट्यूलिप की खेती संभवतः 10वीं शताब्दी से फारस में की जाने लगी थी।

- 15वीं शताब्दी तक, ट्यूलिप सबसे बेशकीमती फूलों में से थे। सोलहवीं शताब्दी के बाद ये उत्तरी यूरोपीय लोगों के ध्यान में आए। इन्हें तेजी से उत्तरी यूरोप में लाया गया। ट्यूलिप को अक्सर डच गोल्डन एज पेंटिंग्स में चित्रित किया गया था, और तब से वे विश्व बाजारों के प्रमुख उत्पादक नीदरलैंड के साथ जुड़े हुए हैं।

- ट्यूलिप अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में सबसे अच्छे से उगते हैं।

- ट्यूलिप के विकास में तापमान सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शुरुआती चरण में, फूल को 15 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। दूसरे चरण में उसे 2 से 10 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है, और तीसरे और अंतिम चरण के लिए, तापमान 15-20 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए।


ट्यूलिप उत्सव

ट्यूलिप उत्सव दुनिया भर में आयोजित किए जाते हैं लेकिन नीदरलैंड्स और स्पाल्डिंग, इंग्लैंड के उत्सव बहुत मशहूर हैं। इसके अलावा स्विट्ज़रलैंड के मोर्गेस में भी एक लोकप्रिय त्योहार है। हर वसंत में उत्तरी अमेरिका में ट्यूलिप उत्सव होते हैं। ट्यूलिप ऑस्ट्रेलिया में भी लोकप्रिय हैं और दक्षिणी गोलार्ध के वसंत के दौरान सितंबर और अक्टूबर में कई त्यौहार आयोजित किए जाते हैं। भारत में कश्मीर में इंदिरा गांधी मेमोरियल ट्यूलिप गार्डन वार्षिक ट्यूलिप उत्सव का आयोजन करता है और इसमें लाखों लोग आते हैं।

Tags:    

Similar News