Virbhadra Singh Dies: हिमाचल के कद्दावर नेता थे वीरभद्र, पंडित नेहरू के कहने पर उतरे सियासी अखाड़े में
Virbhadra Singh Dies: वीरभद्र सिंह करीब दो महीने से अस्पताल में भर्ती थे और सोमवार से उन्हें सांस लेने में भी तकलीफ महसूस हो रही थी। इसके बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। आखिरकार उन्होंने गुरुवार को तड़के दुनिया से विदा ले ली।
Virbhadra Singh Dies: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह (Former CM Virbhadra Singh Dies) का लंबी बीमारी के बाद गुरुवार को निधन हो गया। हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह के सियासी कद को इसी बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने छह बार मुख्यमंत्री के रूप में राज्य की कमान संभाली। वे केंद्र सरकार में भी कई बार मंत्री बने। 87 वर्षीय वीरभद्र सिंह कांग्रेस के उन बुजुर्ग नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने इंदिरा गांधी की कैबिनेट में भी काम किया था। गुरुवार को तड़के शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ही उनका निधन हुआ।
हिमाचल प्रदेश से पांच बार लोकसभा का चुनाव जीतने वाले वीरभद्र सिंह पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) के कहने पर सियासी मैदान में उतरे थे। पंडित जी के जीवनकाल में ही उन्होंने लोकसभा का पहला चुनाव 1962 में जीता था। अपने राजनीतिक जीवन में वे हमेशा हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का बड़ा चेहरा बने रहे और यही कारण है कि उनके निधन को राज्य में कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
लंबे समय से बीमार थे वीरभद्र
वीरभद्र सिंह करीब दो महीने से अस्पताल में भर्ती थे और सोमवार से उन्हें सांस लेने में भी तकलीफ महसूस हो रही थी। इसके बाद उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया था। आखिरकार उन्होंने गुरुवार को तड़के दुनिया से विदा ले ली। वे दो बार कोरोना से भी संक्रमित हुए थे। 12 अप्रैल को पहली बार कोरोना पॉजिटिव होने के बाद वे ठीक हो गए थे मगर 11 जून को दोबारा उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी।
डॉक्टरों के मुताबिक कई अंगों के काम बंद कर देने के कारण उनका निधन हुआ। उनके निधन की खबर पाकर और कांग्रेस में शोक की लहर दौड़ गई। कई वरिष्ठ कांग्रेस नेता निधन की खबर पाकर अस्पताल पहुंच गए। उनके निधन पर कई वरिष्ठ नेताओं ने शोक जताया है।
पंडित नेहरू के कहने पर लड़े पहली बार चुनाव
वीरभद्र सिंह सार्वजनिक मंचों पर इस बात को बार-बार दोहराया करते थे कि वे पंडित नेहरू के कहने पर ही राजनीति के मैदान में आए थे। वे कहा करते थे कि मैं पंडित नेहरू के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित था और उनके कहने पर ही मैंने कांग्रेस से जुड़कर अपनी सियासी यात्रा शुरू की। पंडित जी की वजह से ही मुझे 1962 में पहली बार कांग्रेस का टिकट मिला और मैं चुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहा।
वीरभद्र सिंह राज परिवार से जुड़े हुए थे और उनका जन्म 30 जून 1934 को बुशहर रियासत के राजा पद्म सिंह के घर हुआ था। 1962 में सियासी मैदान में उतरने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और सियासी मैदान में हमेशा बुलंदी की सीढ़ियां चढ़ते रहे।
इंदिरा सरकार में भी किया था काम
हिमाचल प्रदेश के इस कद्दावर नेता ने पांच बार लोकसभा का चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की। 1962 में पहली बार चुनाव जीतने के बाद उन्होंने 1967,1971, 1980 और 2009 में भी लोकसभा चुनाव जीता। उन्हें केंद्र सरकार में भी कई बार काम करने का मौका मिला। इंदिरा गांधी की सरकार में उन्होंने 1976 से 1977 तक केंद्रीय पर्यटन व नागर विमानन राज्यमंत्री के रूप में काम किया। इसके बाद वे इंदिरा सरकार में 1982 से 83 तक केंद्रीय उद्योग राज्य मंत्री भी रहे। यूपीए सरकार में भी उन्होंने काम किया था। यूपीए सरकार में उन्होंने केंद्रीय इस्पात मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली थी।
छह बार संभाली हिमाचल प्रदेश की कमान
उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में छह बार हिमाचल प्रदेश की कमान संभाली। पहले वे विधानसभा चुनाव रोहड़ू सीट से लड़ा करते थे मगर बाद में इस सीट के आरक्षित हो जाने पर उन्होंने 2012 का विधानसभा चुनाव शिमला ग्रामीण सीट से जीता था। बाद में 2017 के चुनाव में उन्होंने यह सीट अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह के लिए छोड़ दी थी और खुद अर्की सीट से किस्मत आजमाई थी। इस सीट पर भी वे चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे।
वीरभद्र सिंह पहली बार 1983 में हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे और उन्होंने 1985 तक राज्य की कमान संभाली थी। बाद में उन्होंने 1985 से 1990 तक दूसरी बार और 1993 से 1998 तक तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में काम किया। वे 1998 में कुछ दिन के लिए चौथी बार मुख्यमंत्री बने।
बाद में उन्होंने 2003 से 2007 तक पांचवी बार और फिर 2012 से 2017 तक छठी बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभाला। उनकी गिनती कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में होती थी और उनके निधन को हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।