3 करोड़ राशन कार्ड रद्दः SC ने माना गंभीर मामला, भुखमरी पर केंद्र को देना होगा जवाब

देश की सर्वोच्च अदालत ने तीन करोड़ राशन कार्ड रद्द किए जाने और झारखंड में भूखमरी से मौत को एक अत्यंत गंभीर मामला बताते हुए केंद्र सरकार में जवाब मांगा है।

Update:2021-03-17 22:37 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

नई दिल्ली- तीन करोड़ राशन कार्ड रद्द (Ration Cards Cancelled) किया जाना और झारखंड में भूख से मौत से जोड़कर इसको देखते हुए देश की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) ने इसे एक अत्यंत गंभीर मामला बताया है और याचिका को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार और सभी राज्यों से चार हफ्ते में जवाब मांगा है। यह याचिका याचिकाकर्ता कोयली देवी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजाल्विस ने दाखिल की और कहा कि याचिका एक बड़े मामले को उठाती है।

आखिर कौन हैं कोयली देवी ?

कोयली देवी की बेटी की मौत झारखंड में भूख से हुई थी। यह याचिका देवी ने दायर की है, जिसकी झारखंड में 11 साल की बेटी संतोषी की भूखे रहने के कारण 28 सितंबर, 2018 को मौत हो गई थी। संतोषी की बहन गुड़िया देवी मामले में संयुक्त याचिकाकर्ता है।

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याचिका में कहा गया है कि स्थानीय प्राधिकारियों ने उनका राशन कार्ड रद्द आधार कार्ड से जुड़े नहीं होने के कारण कर दिया था, जिसके कारण उनके परिवार को मार्च 2007 से राशन मिलना बंद हो गया था और पूरा परिवार को भूखे रहने पर मजबूर होना था और उनकी बेटी संतोषी की भोजन नहीं मिल पाने के कारण मौत हो गई।

3 करोड़ राशन कार्ड रद्द होना गंभीर मामला क्यों?

सवाल भूख से एक मौत का नहीं है। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में प्रतिदिन 24 हजार लोग किसी बीमारी से नहीं, बल्कि भूख से मरते हैं। इस संख्या में एक तिहाई यानी आठ हजार लोगों की मौत की भागीदारी भारत की है। दुनिया में भूख से मरने वाले इन 24 हजार लोगों में से 18 हजार बच्चे हैं और 18 हजार का एक तिहाई यानी 6 हजार बच्चे भारतीय हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की चिंता वाजिब है।

अब तक कुल 4.39 करोड़ अयोग्य या फर्जी राशन कार्ड निरस्त

पिछले वर्ष नवंबर 2020 में केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा था कि पीडीएस के आधुनिकीकरण के लिए प्रौद्योगिकी-संचालित सुधारों के बीच, वर्ष 2013 से वर्ष 2020 तक की अवधि के दौरान देश में राज्य सरकारों द्वारा अब तक कुल 4.39 करोड़ अयोग्य या फर्जी राशन कार्डों को निरस्त किया गया है।

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खाद्य मंत्रालय ने यह भी कहा था कि राशन कार्ड को आधार से जोड़ने, फर्जी राशन कार्डों की पहचान करने, डिजिटाइज्ड किये गए डाटा के दोहराव को रोकने तथा लाभार्थियों के अन्यत्र चले जाने/मौत हो जाने के मामलों की पहचान करने के बाद राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों की सरकारों ने 2013 से 2020 के दौरान देश में करीब 4.39 करोड़ अपात्र/फर्जी राशन कार्डों को रद्द किया है।

81.35 करोड़ लोगों को बेहद कम कीमत में मिलता है खाद्यान्न

देश में कुल 81.35 करोड़ लोगों को अत्यंत कम कीमत में खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है, जो कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुरूप देश की जनसंख्या का दो तिहाई है।

केन्द्र सरकार द्वारा जारी काफी रियायती दरों- तीन रुपये, दो रुपये और एक रुपये प्रति किलोग्राम की दर से हर महीने एनएफएसए के तहत खाद्यान्न (चावल, गेहूं और अन्य मोटे अनाज) उपलब्ध कराये जा रहे हैं।

एक तरफ सरकार अन्न की चोरी रोकने के लिए राशन कार्डों को निरस्त कर रही है दूसरी ओर वैश्विक भूख की स्थिति में भारत लगातार नीचे पहुंचता जा रहा है।

भूख पर वैश्विक सूचकांक में भारत का स्कोर 27.2

2020 में भूख पर वैश्विक सूचकांक में भारत का स्कोर 27.2 था। जो कि स्थिति की गंभीरता की ओर इशारा कर रहा था। यह स्तर गंभीर माना जाता है। दुनिया के 107 देशों में हुए इस सर्वेक्षण में भारत 94वें नंबर पर था जबकि चीन सबसे संपन्न देशों के साथ पहले नंबर पर था। भारत जो कि सूडान के साथ 94 वें नंबर पर था उससे नीचे गिनती के अफगानिस्तान, नाइजीरियां और रवांडा जैसे देश हैं।

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सबसे बड़ी बात यह है कि पाकिस्तान जिसकी हालत अत्यंत खराब है वह भी भारत से ऊपर था। इसके अलावा नेपाल, बांग्लादेश और इंडोनेशिया भी भारत से बेहतर स्थिति में थे।

वर्ल्ड हंगर इंडेक्स की 117 देशों की सूची में भारत 102 नंबर पर

इसके अलावा 2019 की वर्ल्ड हंगर इंडेक्स की 117 देशों वाले सूचकांक में भारत का 102वां स्थान था। भारत को 30.3 के स्कोर के साथ, गंभीर श्रेणी में रखा गया था। उस समय भी भारत के पड़ोसी देशों में पाकिस्तान 94वें पायदान पर, नेपाल 73 पर और बांग्लादेश 88 पर था। भारत का स्थान कुछ अफ्रीकी देशों से भी नीचे था। सिर्फ कुछ अत्यंत पिछड़े देश ही भारत से नीचे थे। जबकि पिछले सूचकांकों को देखें तो 2010 में 24.1 के स्कोर के साथ भारत 67वें पायदान पर था। ऐसा लगता है कि पिछले एक दशक में देश 27 पायदान नीचे खिसक गया है।

विश्लेषकों का कहना है कि सूचकांक हर साल अलग अलग आधार पर बनते हैं। वह एक बात मानते हैं 2000 से ले कर 2019 तक भारत में भूख का स्तर तो घटा है, लेकिन हालात चिंताजनक हैं।

सूचकांक चार मानकों पर आधारित

सूचकांक चार मानकों पर आधारित होते हैं - देश की पूरी जनसंख्या में अल्पपोषित (जिनका कैलोरी ग्रहण पर्याप्त नहीं है) लोगों का अनुपात, 5 साल से कम उम्र के बच्चों में 'वेस्टिंग' (लम्बाई के हिसाब से वजन का कम होना, जो अत्यधिक अल्पपोषण को दिखाता है) का प्रसार, उनमें 'स्टंटिंग' (उम्र के हिसाब से लम्बाई का कम होना, जो दीर्घकालिक अल्पपोषण को दर्शाता है) का प्रसार और उनकी मृत्यु दर।

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कोरोना संक्रमण काल में एक बड़ी आबादी जब सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर आश्रित थी तब केंद्र सरकार की पात्रता सूची पर कैंची चल रही थी। इसके अलावा गौर पूर्व जस्टिस डीपी वाधवा की अध्यक्षता में बनी कमेटी की रिपोर्ट पर भी गौर करना चाहिए जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली की पूरी पोल हमारे सामने खोलकर रख देती है। वाधवा कमेटी के मुताबिक़, जन वितरण प्रणाली का 53 फीसदी चावल और 39 फीसदी गेहूं ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंच ही नहीं पाता। ज़रूरतमंदों को आवंटित अनाज कालाबाज़ारी के ज़रिए बाज़ार में बेच दिया जाता है।

CJI बोले-राशन कार्ड रद्द होना गंभीर मामला

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति ए सी बोपन्ना एवं न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने कहा है कि इसे विरोधात्मक मामले के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि यह बहुत गंभीर मामला है। पीठ ने कहा कि वह किसी अन्य दिन मामले की सुनवाई करेगी, क्योंकि गोंसाल्वेस ने कहा है कि केंद्र सरकार ने राशन कार्ड रद्द कर दिए हैं।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने कहा कि गोंसाल्वेस ने यह गलत बयान दिया कि केंद्र ने राशन कार्ड रद्द कर दिए हैं। पीठ ने कहा, ‘‘हम आपसे (केंद्र से) आधार कार्ड मामले के कारण जवाब मांग रहे हैं। यह विरोधात्मक मुकदमा नहीं है। हम अंतत: इस पर सुनवाई करेंगे। नोटिस जारी किए जाए, जिन पर चार सप्ताह में जवाब दिया जाए।’’

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