AIMPLB on UCC: यूसीसी का मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने किया विरोध, कहा-भारत में इसकी कोई जरूरत नहीं

Muslim Personal Law Board on UCC: मौलाना खालिद रशीद ने कहा कि पांच साल पहले भी इस पर चर्चा हुई थी। एआईएमपीएलबी ने भी एक लेटर जारी किया है, जिसमें समान नागरिक संहिता को लेकर लोगों से राय मांगी गई है।

Update: 2023-07-05 10:21 GMT
AIMPLB on UCC (Image: Social Media)

Muslim Personal Law Board on UCC: समान नागरिक संहिता को लेकर देश में बहस छिड़ गए है। कोई विरोध में तो कोई समर्थन में खड़ा दिख रहा है। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लाॅ बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद ने भी यूसीसी का विरोध किया है। मौलाना खालिद रशीद ने यहां एक बयान में कहा कि आज यहां यूसीसी को लेकर हुई बैठक में चर्चा की गई, जिसमें आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्यों ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि यूसीसी की देश में कोई जरूरत नहीं है।

मौलाना खालिद रशीद ने कहा कि पांच साल पहले भी इस पर चर्चा हुई थी। एआईएमपीएलबी ने भी एक लेटर जारी किया है, जिसमें समान नागरिक संहिता को लेकर लोगों से राय मांगी गई है। यह पहला मौका नहीं है कि यूसीसी का विरोध किया गया। इससे पहले भी यूसीसी को लेकर विरोध जताया जा चुका है। पिछले दिनों भोपाल में एक सभा के दौरान पीएम मोदी ने यूसीसी पर मजबूती से अपनी बात रखते हुए इसी देश के लोगों के लिए हितकर बताया था। उसी के बाद से यूसीसी को लेकर पूरे देश में बहस छिड़ गई है। कई पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं तो वहीं कई इसके समर्थन में खड़ी हैं।

आखिर यूनिफॉर्म सिविल कोड है क्या जिसका हो रहा है विरोध-

यूनिफाॅर्म सिविल कोड को लेकर इस समय पूरे देश में विरोध और समर्थन का दौर चल रहा है। आखिर ये यूनिफाॅर्म सिविल कोड है क्या जिसका इतना विरोध हो रहा है। आइए जानते हैं कि क्या है यूसीसी-
अगर देखा जाए तो किसी भी देश में आमतौर पर दो तरह के कानून होते हैं। पहला क्रिमिनल और दूसरा सिविल कानून। क्रिमिनल में चोरी, लूट, मार-पीट, हत्या, डकैती जैसे आपराधिक मामलों की सुनवाई होती है। इसमें अपराधी चाहे किसी भी धर्म या समुदाय का हो सबके लिए एक ही तरह की कोर्ट होती है, प्रोसेस और सजा का प्रावधान होता है।
मतलब साफ है कि हत्या चाहे हिंदू ने किया हो या मुसलमान ने या अपराध में जान गंवाने वाला हिंदू था या मुसलमान। कोर्ट में सुनवाई और फैसला सुनाने में इसमें कोई और किसी प्रकार का अंतर नहीं होता।
वहीं सिविल कानून में सजा दिलवाने की बजाय सेटलमेंट या मुआवजे पर जोर दिया जाता है। जैसे मान लीजिए दो लोगों के बीच प्रॉपर्टी को लेकर विवाद हो, किसी ने आपकी मानहानि की हो या पति-पत्नी के बीच कोई मसला हो या किसी पब्लिक प्लेस का प्रॉपर्टी विवाद हो। ऐसे मामलों में कोर्ट सेटलमेंट कराती है, पीड़ित पक्ष को मुआवजा दिलवाती है। सिविल कानूनों में परंपरा, रीति-रिवाज और संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

ये मामले जो आते हैं सिविल कानून में-

सिविल कानून के अंदर शादी-ब्याह और संपत्ति से जुड़े मामले आते हैं। भारत में अलग-अलग धर्मों में शादी, परिवार और संपत्ति से जुड़े मामलों में रीति-रिवाज, संस्कृति और परंपराओं का खास महत्व है। इन्हीं के आधार पर धर्म या समुदाय विशेष के लिए अलग-अलग कानून भी हैं और यही कारण है कि इस तरह के कानूनों को हम पसर्नल लॉ भी कहते हैं।
जैसे-मुस्लिमों में शादी और संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के जरिए तो वहीं, हिंदुओं की शादी हिंदू मैरिज एक्ट के जरिए होती है। इसी तरह ईसाई और सिखों के लिए भी अलग पर्सनल लॉ हैं।

और अब ये हो रही है मांग-

अब यूनिफॉर्म सिविल कोड के जरिए पर्सनल लॉ को समाप्त करके सभी के लिए एक जैसा कानून बनाए जाने की मांग की जा रही है। इसका मतलब है कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए निजी मामलों में भी एक समान कानून हो, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का ही क्यों न हो।
जैसे-पर्सनल लॉ के तहत मुस्लिमों में पुरुष 4 शादी कर सकते हैं, लेकिन वहीं हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करना अपराध है।

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