आयुर्वेद से ऐलोपथी का टकराव, आईएमए ने दी हड़ताल की धमकी

हुआ ये है कि 19 नवम्बर को सरकार ने एक अधिसूचना जारी की जिसमें आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों के लिए सर्जरी सीखने के अनिवार्य बिंदु बताये गए हैं।

Update: 2020-12-06 09:18 GMT
आयुर्वेद से ऐलोपथी का टकराव, आईएमए ने दी हड़ताल की धमकी (PC: social media)

लखनऊ: सरकार ने आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों के लिए सर्जरी की पढ़ाई अनिवार्य कर दी है। लेकिन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को सरकार का फैसला पसंद नहीं आ रहा है। ऐलोपथी डाक्टरों के संगठन आईएमए को चिंता है कि देश की चिकित्सा प्रणाली में ऐलोपथी का वर्चस्व कहीं ढीला न पड़ जाये और दूसरी प्रणालियां कहीं ऐलोपथी को टक्कर न देने लगें।

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हुआ ये है कि 19 नवम्बर को सरकार ने एक अधिसूचना जारी की जिसमें आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों के लिए सर्जरी सीखने के अनिवार्य बिंदु बताये गए हैं। अधिसूचना में कहा गया है कि आयुर्वे डके पीजी छात्र को सर्जरी का जानकार होने के अलावा स्वयं सर्जरी करने के लिए प्रैक्टिकल रूप से प्रशिक्षित होना ही चाहिए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने तत्काल इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और सर्जरी करने में आयुर्वेद के चिकित्सकों की योग्यता पर सवाल उठा दिए। आईएमए ने सरकार की अधिसूचना को ‘मिक्सोपैथी’ का अप्रयास करार दिया। विरोध में आईएमए ने 11 दिसंबर को काम बंदी की धमकी दी है।

आयुर्वेद और सर्जरी

ऐसा नहीं है कि आयुर्वेद के चिकित्सक सर्जरी में प्रशिक्षित नहीं होते या वे सर्जरी नहीं करते हैं। असलियत तो ये है कि आयुर्वेद चिकित्सक इस बात पैट गर्व करते हैं कि उनके तरीके और कार्यशैली की जड़ें सुश्रुत से जुड़ी हैं जो एक प्राचीन साधू और चिकित्सक थे। सुश्रुत के चिकित्सकीय गरंथ को सुश्रुत संहिता कहा जाता हाई जिसमें बीमारियों के वर्णन, लक्षण और इलाज के अलावा सर्जरी के तरीके और उपकरणों का विस्तृत वर्णन दिया हुआ है। जयपुर के राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के एक चिकिस्तक के अनुसार इस संस्थान में हर साल एक हजार बड़े ऑपरेशन किये जाते हैं।

आयुर्वेद में सर्जरी की दो शाखाएं हैं- शल्य तंत्र जिसका तात्पर्य सामान्य सर्जरी से है और शल्य शल्क्य तंत्र जिसमें आँख, नाक, कान, गले और दांतों की सर्जरी से सम्बंधित चीजें हैं।आयुर्वेद के सभी पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों को ये कोर्स पढ़ना पड़ता है और कई छात्र इनमें विशेषज्ञता हासिल करके सर्जन बन जाते हैं। मॉडर्न मेडिसिन (एलोपथी) और आयुर्वेद की सर्जरी में काफी समानता होती है। बहुत सी आयुर्वेद सर्जरी तो हूबहू मॉडर्न मेडिसिन की तरह की जाती हैं। फर्क सिर्फ ऑपरेशन के बाद के देखभाल में होता है। हैं, ये जरूर है कि आयुर्वेद में न्यूरो जैसी सुपर स्पेशलिटी सर्जरी नहीं की जाती है।

पढ़ाई आयुर्वेद की

आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों की पढ़ाई इंडियन मेडिकल सेन्ट्रल कौंसिल (पोस्ट ग्रेजुएट एजुकेशन) के नियमों से नियंत्रिन होती है।ये नियम समय समय पर बनाये जाते रहते हैं। अभी जो नियम लागू हैं वे 2016 में बनाये गए थे। 19 नवम्बर 2020 की अधिसूचना 2016 के नियमों में एक संशोधन है। 2016 के नियमों में आयुर्वेद के पीजी छात्रों को शल्य तंत्र, शल्क्य तंत्र और प्रसूति एवं स्त्री रोग में विशेषज्ञता करने की अनुमति दी हुई है। इन तीनों ही क्षेत्रों में बड़ी सर्जरी शामिल होती है। इन क्षेत्रों के छात्रों को एमएस की डिग्री दी जाती है।

आयुर्वेद चिकित्सकों के अनुसार आयुर्वेद की पढ़ाई करने वालों को सबकी तरह नीट परीक्षा पास करनी होती है। आयुर्वेद में मेडिकल की पढ़ाई साढ़े चार साल की होती है और एक साल की इंटर्नशिप करनी होती है। इंटर्नशिप में 6 महीने आयुर्वेद अस्पताल में बिताने होते हैं और बाकी 6 महीने किसी जनरल अस्पताल या पीएचसी में काम करना होता है।

पोस्ट ग्रेजुएट के लिए तीन साल और पढ़ना होता है। उनको भी अस्पतालों में पोस्टिंग पर काम करना होता है। मेडिकल की सामान्य पढ़ाई की सब चीजें आयुर्वेद के छात्र भी सीखते हैं।

अब नया क्या है

आयुर्वेद के चिकित्सकों का कहना है कि नयी अधिसूचना में बस आयुर्वेद के चिकित्सकों की क्षमता को स्पष्ट किया गया है। जिन सर्जरी की बात की गयी है वो तो पहले से ही कोर्स में शामिल हैं। लेकिन इसके बारे में जागरूकता नहीं थी वो अब लाई गयी है।मरीज को अभी तक पता नहीं होता था कि आयुर्वेदिक चिकित्सक को ऑपरेशन करना आता है या नहीं। अब पता हो जाएगा कि आयुर्वेदिक चिकित्सक क्या कर सकता है। अधिसूचना से आयुर्वेद चिकित्सक की क्षमता पर लगा सवाल हट जाएगा। अधिसूचना में 58 तरह की सर्जरी का वर्णन है जिसके बारे में आयुर्वेद के पीजी छात्रों को अनिवार्य रूप से सीखना होगा। उनको इतना अपरंगत होना पड़ेगा कि स्वतंत्र रूप से सर्जरी कर सकें। इनमें जनरल सर्जरी, यूरोलोजी, गैस्ट्रो सर्जरी और आँख की सर्जरी शामिल हैं।

आईएमए की आपत्ति

इनिदना मेडिकल एसोसिएशन के डाक्टरों का कहना है कि उनको आयुर्वेद से कोई विरोध नहीं है। लेकिन विरोध इस बात से है कि नई अधिसूचना से ऐसा संकेत मिलता है कि जैसे आयुर्वेद और मॉडर्न मेडिसिन के डाक्टरों की सर्जरी करने की क्षमता सामान है। आईएमए का कहना है कि अधिसूचना से गलत सन्देश मिलता है और ये मॉडर्न मेडिसिन की क्षमता और अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण है। आईएमए जूनियर डाक्टर नेटवर्क के अध्यक्ष केएम अब्दुल हसन का अकहना है कि आयुर्वेद संस्थानों में छात्र मॉडर्न मेडिसिन की किताबें पढ़ते हैं या आयुर्वेद चिकित्सक मॉडर्न मेडिसिन के डाक्टरों को सर्जरी करने में मदद करते हैं इसका मतलब ये नहीं की वे मॉडर्न मेडिसिन के अधिकार क्षेत्र में दखल देने लगें।

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संगठन मॉडर्न मेडिसिन और उसके सर्जरी प्रोसीजर पर अतिक्रमण करने की निंदा करता है

आईएमए ने एक बयान में कहा गया है कि संगठन मॉडर्न मेडिसिन और उसके सर्जरी प्रोसीजर पर अतिक्रमण करने की निंदा करता है और ये ‘मिक्सोपैथी’ को कानूनी वैधता देने का एक अन्य कदम है। इसके अलावा आईएमए नीति आयोग के हाल के एक फैसले से भी नाराज है जिसमें चिकित्सा की विभिन्न प्रणालियों के एकीकरण पर विचार करने के लिए चार कमेटियां बनाए की बात की गयी है।

आईएमए की मांग है कि आयुर्वेद संबंधी अधिसूचना और नीति आयोग के फैसले को तत्काल वापस लिया जाए क्योंकि ये ‘एक देश एक सिस्टम’ की बात करता है। दरअसल, आईएमए ये नहीं चाहता कि चिकित्सा के क्षेत्र में मॉडर्न मेडिसिन यानी ऐलोपथी का वर्चस्व तनिक भी ढीला पड़े। जबकि सरकार चाहती है कि देश के जनता को हरसंभव चिकित्सा सुविधा गाँव गाँव में मिले और इसमें हर चिकित्सा प्रणाली का सहयोग लिया जाये और सभी प्रणालियों को समान अवसर और सम्मान मिले।

रिपोर्ट- नीलमणि लाल

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