Kargil Diwas 2019:...तो इसलिए कारगिल युद्ध में फेल हो गई थीं खुफिया एजेंसियां

कारगिल युद्ध मई 1999 के पहले सप्ताह से शुरू होकर 26 जुलाई तक चला। 26 जुलाई को हर साल कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। 74 दिन तक चले इस युद्ध में भारत को पाकिस्तान से जीत मिली थी और तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मानाने की घोषणा की थी।

Update: 2019-07-23 15:03 GMT

नई दिल्ली: कारगिल युद्ध मई 1999 के पहले सप्ताह से शुरू होकर 26 जुलाई तक चला। 26 जुलाई को हर साल कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। 74 दिन तक चले इस युद्ध में भारत को पाकिस्तान से जीत मिली थी और तात्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मानाने की घोषणा की थी।

लेकिन कारगिल युद्ध के दौरान सबसे बड़ी बात यह रही कि देश की टॉप इंटेलीजेंस एजेंसियां फेल हो गई थीं। आंतरिक सुरक्षा पर नजर रखने वाली आईबी, बाहरी मामलों को ट्रैक कर रही रॉ और आर्मी की अपनी थ्री इन्फेंटरी की इंटेलीजेंस यूनिट को पाकिस्तानी सेना के इस ऑपरेशन की भनक तक नहीं लग पाई थी।

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जून 1998 से लेकर अप्रैल 1999 तक इन सभी एजेंसियों ने एक जैसी रिपोर्ट दी कि पाकिस्तान की ओर से विभिन्न सीमाओं पर आतंकियों की घुसपैठ कराई जा सकती है। पाकिस्तानी सेना की तैयारियों और युद्ध जैसी स्थिति पर किसी भी एजेंसी ने कोई इनपुट नहीं दिया।

इसकी बड़ी वजह यह रही कि उस वक्त किसी भी एजेंसी का सीमा पार कोई मजबूत नेटवर्क नहीं था। साथ ही एलओसी के आसपास बसे गांवों में भी स्थानीय लोगों और वर्दी (सेना, पुलिस व इंटेलीजेंस यूनिट) के बीच तनावपूर्ण संबंध थे।

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जन. वीपी मलिक (सेवानिवृत) कारगिल युद्ध के दौरान सेना प्रमुख थे। उन्होंने अपनी किताब 'फ्रॉम सरप्राइज टू विक्टरी' के चेप्टर 'दा डार्क विंटर' में उक्त तथ्यों का जिक्र किया है। जन. मलिक ने लिखा है कि उस समय पाकिस्तानी सेना को ट्रैक करने की जिम्मेदारी रॉ को दी गई थी। करीब एक साल तक पाकिस्तान के फोर्स कमांडर नॉर्दन एरिया (एफसीएनए) से जुड़ी कोई सूचना नहीं मिल पाई। पाकिस्तान ने किस तरह धीरे-धीरे दो अतिरिक्त बटालियन और हैवी ऑर्टिलरी गिलगिट क्षेत्र की ओर बढ़ाई, यह जानकारी भारतीय इंटेलीजेंस एजेंसियों के पास नहीं थी। आईबी से रिपोर्ट मांगी गई तो वहां से भी आतंकी गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने का अलर्ट आता रहा।

जून-1998 में आईबी की एक रिपोर्ट में बताया गया कि पाक अधिकृत कश्मीर में चल रहे आतंकियों के कैंप से 50-150 किलोमीटर उत्तर की ओर यानी द्रास कारगिल के सामने वाले क्षेत्र में जेहादियों की हलचल हो सकती है। रणनीतिक तौर पर इस रिपोर्ट का यह लगाया गया कि आतंकी संगठन कश्मीर घाटी या द्रास कारगिल की ओर घुसपैठ कर सकते हैं।

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इस रिपोर्ट में सेना के ऑपरेशन का जिक्र नहीं था। अत्याधित ऊंचाई पर स्थित भारतीय चौकियों के आसपास क्या कुछ चल रहा है, इस बाबत कोई स्टीक सूचना नहीं दी गई। आईबी की यह सूचना राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और डीजीएमओ (डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन), रक्षा मंत्रालय व गृह मंत्रालय को भेजी गई थी। इन सब सूचनाओं से यही संकेत निकाला गया कि जेहादी एलओसी के पार किसी भूभाग पर कब्जा करने की मंशा से नहीं आते, बल्कि वे हिट एंड रन की नीति फॉलो करते हैं।

जन. मलिक के मुताबिक, जुलाई 1998 में ज्वाइंट इंटेलीजेंस सेंटर (जेआईसी) ने एक खुफिया रिपोर्ट दी। इसमें पाकिस्तानी आर्मी का जिक्र था। एलओसी के आसपास छोटे हथियारों के पहुंचने का भी अलर्ट मिला। फायरिंग की बात भी कही गई। अंतिम तौर से जब इस सूचना का निष्कर्ष निकाला गया तो उसमें पाकिस्तानी सेना का ऑपरेशन, यह शब्द कहीं गायब हो गया। केवल यह बात कही गई कि पाक की ओर से हो रही फायरिंग का मकसद आतंक फैलाकर श्रीनगर-कारगिल-लेह हाइवे को बाधित कराना है।

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जम्मू क्षेत्र के लिए इस रिपोर्ट में यह कह दिया गया कि फायरिंग का लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा पर चल रहे फेसिंग कार्य में बाधा पहुंचाना है। जुलाई 1998 में ही यूएस और पाक के बीच हुई वार्ता में जब पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने कहा, भारत के साथ खराब संबंधों की जड़ कश्मीर समस्या है। उन्होंने इस समस्या को कोर इश्यू बताया था।

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