नयी दिल्ली : देश का बैंकिंग सेक्टर लगातार घाटे में चल रहा है। बैंकों के घाटे की वजह से सरकार पर लगातार वित्तीय दवाब बढ़ता जा रहा है। ऐसे में सरकार चार बड़े बैंकों के मेगा मर्जर के प्लान पर काम कर रही है। ये बैंक हैं आईडीबीआई, ओरिएंटल बैंक ऑफ कामर्स, सेंट्रल बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा। ये बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक बनेगा। नए बैंक की संपत्ति 16.58 लाख करोड़ रुपये होगी। 2018 में इन चारों बैंकों को कुल मिलाकर करीब 22 हजार करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। 31 मार्च 2018 को समाप्त वित्तीय वर्ष में आईडीबीआई बैंक को 8237.92 करोड़, ओबीसी को 5871.78 करोड़, सेंट्रल बैंक को 5104.91 करोड़ तथा बैंक ऑफ बड़ौदा को 2431.81 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है।
इस मेगा मर्जर से कई फायदे होंगे। इससे खस्ताहाल सरकारी बैंकों के हालात सुधारेंगे, कमजोर बैंक अपने एसेट बेच पाएंगे, घाटे वाली ब्रांच को बंद करना आसान होगा और कर्मचारियों की छंटनी आसान होगी। आईडीबीआई पर सरकार का खास जोर है। इसमें 51 फीसदी हिस्सेदारी बेचने की कोशिश है। ये हिस्सेदारी निजी कंपनी को बेचा जा सकता है।
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सरकार की इस बिक्री से 9000-10000 करोड़ रुपये जुटाने की योजना है। बैंकों के मर्जर से इन बैंकों को भी फायदा होगा, क्योंकि अभी चारों बैंकों को अलग-अलग घाटे से गुजपना पड़ा रहा है। अगर बैंकों का मर्जर होता है ति एक होने के बाद नए बैंक में सबसे कमजोर कड़ी अपनी संपत्ति आसानी से बेच सकेगी और उससे बैंक अपने घाटे की पूर्ती कर पाएंगे। इतना ही नहीं बल्कि मर्जर के बाद कमजोर बैंक अपने घाटे को कम करने के लिए उन ब्रांचों को भी बंद कर पाएंगे, जहां सबसे ज्यादा घाटा उठाना पड़ रहा है। वहीं बैंक उन क्षेत्रों में अपनी शाखाओं को जारी रखते हुए विस्तार कर सकेंगे, जहां बैंक फायदे में है। इसके अलावा मर्जर के बाद बैंक अपने कर्मचारियों की छंटनी को आसानी से कर पाएंगे। बैंकों की खस्ताहालत को सुधारने के लिए केंद्र सरकार बैंकों में हिस्सेदारी बेचने पर भी विचार कर रही है। जिन चारों बैंकों के मर्जर की तैयारी की जा रही है उनमें से सबसे बुरी हालत आईडीबीआई की है। मर्जर के बाद बैंकों के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर होने वाले खर्च में भी कटौती होगी।
इसके अलावा ये भी विचार चल रहा है कि कछि छोटे बैंकों का मर्जर कनारा बैंक और यूनियन बैंक के साथ कर दिया जाये। उधर निजी क्षेत्र के आईडीएफसी बैंक और कैपिटल फस्र्ट के मर्जर को रिजर्व बैंक ने मंजूरी दे दी है। आईडीएफसी बैंक 1.5 बिलियन डॉलर में कैपिटल फस्र्ट का अधिग्रहण कर रहा है।
असल में नरेंद्र मोदी सरकार कई बैंकों के एकीकरण की संभावना पर मंथन कर रही है, लेकिन यह योजना स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में सहयोगी बैंकों के विलय से आगे नहीं बढ़ सकी है। पहले, यूपीए और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने भी इन संभावनाओं पर चर्चा की थी, लेकिन बैंकों में इच्छा की कमी को देखते हुए इसे छोड़ दिया था। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कुछ साल पहले आईडीबीआई बैंक में हिस्सेदारी बेचने की घोषणा की थी, लेकिन वित्त मंत्रालय में एक शक्तिशाली वर्ग द्वारा अनिच्छा जाहिर किए जाने के बाद इस विचार को छोड़ दिया गया।
इसी तरह, बैंकों ने आरबीआई प्रोविजनिंग नॉम्र्स की वजह से बुरे कर्ज में वृद्धि की बात कही तो एकीकरण प्लान को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब संकट दूर होने की कुछ उम्मीदों और पब्लिक सेक्टर में रिफॉर्म की आवश्यकता की वजह से वित्त मंत्रालय ने एक बार फिर एकीकरण की फाइल खोल दी है। सरकार को यह भी अहसास है कि आम चुनाव में एक साल से कम का समय बचा है, बड़े स्तर के एकीकरण की स्थिति में नहीं होगी। सूत्रों ने कहा कि दो से अधिक बैंकों को शामिल करने से प्रक्रिया जटिल हो जाएगी और नई संस्था बोझिल हो जाएगी।