कोरेगांव : 200 साल पहले अंग्रेजों ने जीता था युद्ध....आज जल रहा महाराष्ट्र
मुंबई : महाराष्ट्र के पुणे से आरंभ हुआ जातीय हिंसा का तांडव अब मुंबई सहित राज्य के अन्य शहरों तक पहुंच चुका है। पथराव-आगजनी का दौर चल निकला है। पत्थरबाजों ने चेंबूर और कुर्ला में एंबुलेंस को भी नहीं बक्शा। राज्य के सीएम देवेन्द्र फडणवीस ने मामले की न्यायिक जांच और मृतक के परिजन को दस लाख रुपये मुआवजा देने की घोषणा कर दी है। वहीं विपक्षी इसमें अपनी रोटियां सेंकने में लग गए हैं। लेकिन हममें से बहुत ऐसे हैं जिन्हें ये नहीं पता कि आखिर ये बवाल हुआ क्यों ....तो हम आपको बताते हैं असली कहानी।
एक जनवरी 1818 में कोरेगांव में भीमा नदी के घाट पर पेशवाओं और अंग्रेजों के बीच घमासान युद्ध हुआ था। जिसमें अंग्रेजों ने पेशवाओं को मात दी थी और इस युद्ध में अंग्रेजों की ओर से लडे थे महार। भारतीय इतिहास की ये इकलौती घटना है जिसमें अंगेजों की जीत का जश्न जोर शोर से मनाया जाता है। महार को दलित वर्ग के तौर पर जाना जाता है इसी युद्ध का दलित हर एक जनवरी को जश्न मनाते हैं।
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लोक कथाओं के मुताबिक सिर्फ 800 महारों ने पेशवाओं की मजबूत सेना को सिर्फ 12 घंटे में धूल चटा दी थी। इस टुकड़ी का नेतृत्व फ्रांसिस स्टौण्टन ने किया था जबकि पेशवाओं की ओर से सिंधिया, होल्कर, गायकवाड़ और भोसले लड़ रहे थे।
कहा जाता है कि पेशवाओं की लगभग 28000 की सेना में 20 हजार घुड़सवार और 8 हजार पैदल सैनिक थे। इस युद्ध में पेशवा के 5 या 6 सौ सैनिक मारे गए और बाकी मैदान छोड़ भाग गए थे। इस जीत का जश्न आज भी दलित मनाते हैं वो इसे अत्याचार के खिलाफ जीती लड़ाई मानते हैं और कोरेगांव में शौर्य दिवस का जश्न मनाते हैं।