भीमा कोरेगांव मामला: SC ने रद्द किया दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला, ये है पूरा मामल

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि नवलखा की जमानत याचिका पर सुनवाई करना दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। 

Update: 2020-07-06 11:09 GMT

नई दिल्ली: भीमा कोरेगांव मामले में उच्चतम न्यायालय ने कार्यकर्ता गौतम नवलखा के दिल्ली से मुंबई स्थानांतरण पर एनआईए को रिकॉर्ड पेश करने को लेकर दिए गए दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि नवलखा की जमानत याचिका पर सुनवाई करना दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।

सुनवाई का अधिकार सिर्फ मुंबई की अदालतों को है

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस मामले पर सुनवाई का अधिकार सिर्फ मुंबई की अदालतों को है। उच्चतम न्यायालय ने नवलखा की जमानत याचिका पर सुनवाई करने के दौरान एनआईए के खिलाफ की गई दिल्ली उच्च न्यायालय की प्रतिकूल टिप्पणियों को उसके आदेश से हटा दिया है।

ये है मामला

यह मामला 1 जनवरी, 2018 को पुणे के पास भीमा कोरेगांव में हुई हिंसात्मक घटनाओं से संबंधित है, जो कोरेगांव लड़ाई की विजय की 200 वीं वर्षगांठ पर दलित संगठनों की याद में आयोजित किया गया था। पुणे पुलिस ने आरोप लगाया कि पुणे में हुई एल्गार परिषद की बैठक में हिंसा भड़की थी। यह आरोप लगाया गया कि बैठक का आयोजन प्रतिबंधित माओवादी संगठनों के साथ सांठगांठ करके किया गया था।

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पुलिस द्वारा गिरफ्तारी का सिलसिला जून 2018 में शुरू हुआ था। जाति विरोधी कार्यकर्ता सुधीर धवले, मानवाधिकार वकील सुरेंद्र गडलिंग, वन अधिकार अधिनियम कार्यकर्ता महेश राउत, सेवानिवृत्त अंग्रेजी प्रोफेसर शोमा सेन और मानवाधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन को गिरफ्तार किया गया।

छह लोगों के खिलाफ मामले में पहली चार्जशीट दायर हुई

बाद में, एक्टिविस्ट-वकील सुधा भारद्वाज, तेलुगु कवि वरवर राव, एक्टिविस्ट अरुण फरेरा और वरनन गोंजाल्विस को गिरफ्तार किया गया। नवंबर 2018 में, पुलिस ने जून 2018 में गिरफ्तार छह लोगों के खिलाफ मामले में पहली चार्जशीट दायर की। फरवरी 2019 में, सुधा भारद्वाज, वरवर राव, अरुण फरेरा और गोंजाल्विस के खिलाफ पूरक आरोप पत्र दायर किया गया था।

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