जयंती विशेष: अदभुत योगी थे परमहंस योगानंद, पूरी दुनिया में पहुंचाया योग
परमहंस योगानंद पहले भारतीय योग गुरु थे जिन्होंने पश्चिमी देशों में अपना स्थायी निवास बनाया। गोरखपुर में हुआ था जन्म योगानंद का नाम मुकुन्द लाल घोष था, और वे एक धनी बंगाली परिवार में गोरखपुर शहर में जन्मे थे।
नीलमणि लाल
लखनऊ: परमहंस योगानन्द बीसवीं सदी के महान आध्यात्मिक गुरू, योगी और संत थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को क्रिया योग उपदेश दिया तथा पूरे विश्व में उसका प्रचार तथा प्रसार किया।
पश्चिमी देशों में अपना स्थायी निवास बनाया
परमहंस योगानंद पहले भारतीय योग गुरु थे जिन्होंने पश्चिमी देशों में अपना स्थायी निवास बनाया। गोरखपुर में हुआ था जन्म योगानंद का नाम मुकुन्द लाल घोष था, और वे एक धनी बंगाली परिवार में गोरखपुर शहर में जन्मे थे। बचपन से उनका स्वभाव आध्यात्मिकता की ओर था। उनका मनपसंद मनोरंजन था संतों से मिलना। उनकी आध्यात्मिक तलाश उनको उनके गुरु, सेरामपुर (बंगाल) के स्वामी श्री युक्तेश्वर तक ले गयी। अपने गुरु के अंतर्गत प्रशिक्षण बदौलत वे केवल 6 महीनों में समाधी को प्राप्त कर लिया।
औपचारिक आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत
युक्तेश्वर ने मुकुन्द को 1914, में संन्यास में दीक्षा दी, उस दिन के बाद मुकुन्द स्वामी योगानंद बन गए। योगानंद के बाहरी विशेष कार्य की शुरुआत 1916 में रांची में ब्रह्मचार्य विद्यालय की स्थापना से हुई। विद्यालय के लिए आर्थिक व्यवस्था कासिम बाज़ार के महाराजा ने की थी।
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योगानंद के अनुसार, एक दिन विद्यालय में ध्यान करते हुए उन्हें दिव्य दृष्टि से बुलावा महसूस हुआ: उनको अपने गुरुओं द्वारा दी भविष्यवाणी को पूरा करना होगा: योग की पवित्र शिक्षाओं को भारत से पश्चिमी देशों में ले जाना होगा। फिर वे अमेरिका में बॉस्टन के लिए चल पड़े। तब से वे मुख्यतः अमरीका में रहे 1952 में अपनी महासमाधी तक ।
योग के शिक्षण का अमरीका में प्रचार
अमरीका में योगानंद ने व्यापक रूप से सफ़र किया, बड़े शहरों में भाषण दिए। वे पहले भारतीय थे जिन्हें वाइट हाउस से अमेरिका के राष्ट्रपति कैल्विन कूलिज ने बुलाया था।
योगानंद योग की शिक्षा का प्रचार लिखकर भी करते थे। उनके आत्मबोध के पाठ्यक्रम ने योग शिक्षा को स्पष्ट किया और उसे जीवन के हर पहलू में इस्तेमाल करना सिखाया। उन्होंने भगवद गीता, ईसाई बाइबल और उमर खय्याम की रुबाइयात पर लेखिक भाष्य दिए और किताबें लिखीं। उन्होंने भजन, प्रार्थना और स्वास्थ्य प्राप्त करने के विज्ञान और कला पर पुस्तकें लिखीं। वे दोहराते थे कि उनका मुख्य कार्य ग्रंथों का स्पष्टीकरण करना और लाहिड़ी महाशय द्वारा दी गयी ध्यान की तकनीक क्रिया योग का प्रचार करना था।
जीवन का अंत
अपने आखरी दिन में योगानंद ने करीब शिष्यों की निजी प्रशिक्षण पर फोकस किया जिससे वे उनका कार्य उनके जाने के बाद आगे बढ़ाएं। उनमे से एक शिष्य थे स्वामी क्रियानन्द, जिन्होंने 1969 में ‘आनन्द’ की स्थापना की।
योगानंद का सबसे प्रसिद्ध कार्य है उनकी ‘एक योगी की आत्मकथा।‘ इसे एक आध्यात्मिक प्रतिष्ठित कार्य माना जाता है। इस किताब नें कइयों को प्रेरणा दी और प्रेरणा निरंतर देती रहती है।
- उनके अनुसार क्रिया योग ईश्वर से साक्षात्कार की एक प्रभावी विधि है, जिसके पालन से अपने जीवन को संवारा और ईश्वर की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है।
- उन्होंने 1915 में स्कॉटिश चर्च कॉलेज से इंटर पास किया फिर सीरमपुर कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। उसके बाद वो अपने गुरु के पास आ गए और योग और मेडिटेशन की ट्रेनिंग ली।
- योगानंद 1920 में अमेरिका चले गए। वहां बोस्टन में धार्मिक बुद्धिजीवी की हैसियत से हिस्सा लिया। उन्होंने वहां एक संस्था शुरू की सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप के नाम से। इसमें योग और ट्रेडिशनल मेडिटेशन की कला को आगे बढ़ाया गया।
- पहले संत थे जिन्होंने भारतीय योग का झंडा पश्चिमी देशों में लहराया। 1920 से 1952 तक का लंबा वक्त उन्होने अमेरिका में बिताया।
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- 1935 में योगानंद भारत आये और अपने गुरु के काम को आगे बढ़ाया। वे महात्मा गांधी से मिले। गांधी ने उनके संदेश को लोगों तक पहुंचाया। यही वक्त था जब उनके गुरु ने उनको परमहंस की उपाधि दी। एक साल के बाद वे अमेरिका लौट गए।
उनको अपनी मौत का पूर्वाभास भी उनको होने लगा था
- बताया जाता है कि उनको अपनी मौत का पूर्वाभास भी उनको होने लगा था। 7 मार्च 1952 की शाम अमेरिका में भारत के राजदूत बिनय रंजन सपत्नीक लॉस एंजिल्स के होटल में खाने पर थे। जिसमें उनके साथ योगानंद भी थे। इसी कार्यक्रम में योगानंद ने संबोधन दिया और अंत में अपनी कविता की चंद लाइने कहीं जिसमें भारत की महिमा बताई गयी थी। इसके बाद वे फर्श पर गिर गए और उनका देहांत हो गया।
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