चंद्रयान-2 से भारत को होंगे ये तीन सबसे बड़े फायदे, मिलेगा ये सब

भारतीय अंतरिक्ष संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-2 को सफलता पर्वक लॉन्च करने के साथ ही नया इतिहास रच दिया है। लॉन्च के बाद अब इसे चांद की सतह पर उतारने के सबसे बड़े मिशन की भी शुरुआत हो गई है।

Update:2019-07-22 17:39 IST

नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-2 को सफलता पर्वक लॉन्च करने के साथ ही नया इतिहास रच दिया है। लॉन्च के बाद अब इसे चांद की सतह पर उतारने के सबसे बड़े मिशन की भी शुरुआत हो गई है। चंद्रयान-2 श्रीहरिकोटा के प्रक्षेपण स्थल से चांद तक के 3 लाख 84 हजार किलोमीटर के सफर पर निकल चुका है। चंद्रयान सिर्फ 16 मिनट बाद पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो गया।

इसरो ने बताया है कि 'चंद्रयान-2' चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव(साउथ पोल) क्षेत्र में उतरेगा, जहां अब तक कोई देश नहीं पहुंचा है। इसरो प्रमुख के सिवन के मुताबिक मिशन के दौरान जल के संकेत तलाशने के अलावा 'शुरुआती सौर मंडल के फॉसिल रिकॉर्ड' भी तलाश किए जाएंगे।

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पानी के साथ मनुष्य के रहने की संभावना की तलाश

'चंद्रयान-2' के लॉन्च के साथ ही भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश बन गया है जिसने चंद्रमा पर खोजी यान उतारा। इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन ने ऐसा किया है। 'चंद्रयान-2' में मौजूद लैंडर 'विक्रम' अपने साथ जा रहे रोवर 'प्रज्ञान' को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर दो क्रेटरों के बीच ऊंची सतह पर उतारेगा। इसके बाद, 'प्रज्ञान' चांद की मिट्टी का रासायनिक विश्लेषण करेगा। साथ ही 'विक्रम' चंद्रमा की झीलों को मापेगा और अन्य चीजों के अलावा लूनर क्रस्ट में खुदाई भी करेगा। भारत ने वर्ष 2009 में चंद्रयान-1 के जरिये चंद्रमा की सतह पर पानी के अणुओं की मौजूदगी का पता लगाया था। इसके बाद से ही भारत ने वहां पानी की खोज जारी रखी है, क्योंकि चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी से ही भविष्य में यहां मनुष्य के रहने की संभावना बन सकती है।

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कैसे हुआ उपग्रहों का गठन

इसरो प्रमुख ने बताया कि मिशन के दौरान जल के संकेत की खोज के अलावा 'शुरुआती सौर मंडल के फॉसिल रिकॉर्ड' तलाशे जाएंगे, जिसके जरिये यह जानने में भी मदद मिल सकेगी कि हमारे सौरमंडल, उसके ग्रहों और उनके उपग्रहों का गठन किस प्रकार हुआ था।

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कमर्शियल उपग्रहों और ऑरबिटिंग की डील हासिल कर पाएगा भारत

इसके अलावा इस मिशन के बाद भारत कमर्शियल उपग्रहों और ऑरबिटिंग की डील हालिस कर सकता है। इसका मतलब है कि भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपनी क्षमता साबित कर पाएगा, जिससे भारत अन्य देशों के उपग्रहों के अंतरिक्ष में भेजने के करार हो पाएंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मिशन से मिलने वाला जियो-स्ट्रैटेजिक फायदा भले ही ज़्यादा नहीं है, लेकिन भारत का कम खर्च वाला यह मॉडल दूसरे देशों को आकर्षित जरूर करेगा।

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