सीमा पर तनाव: चीन के साथ आज फिर बातचीत, इन अहम मुद्दों पर होगी चर्चा
भारत-चीन के कमांडर पूर्वी लद्दाख के चुशूल में बातचीत करेंगे। बैठक का फोकस मिलिट्री तनाव कम करना, सीमा विवाद का समाधान और सीमान्त इलाकों में शांति बनाये रखने पर होगा। इससे पहले सातवें दौर की सैन्य वार्ता 12 अक्तूबर को हुई थी।
नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच सीमा तनाव को कम करने के लिए दोनों देशों की सेनाओं में वार्ताओं का दौर जारी है। इसी क्रम में दोनों देशों की सेनाओं के कोर कमांडर लेवल की बातचीत का आठवां दौर आज लद्दाख के चुशूल सेक्टर में आयोजित होगा। इस बैठक में भारत के प्रतिनिधि मंडल की अगुवाई लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन करेंगे। मेनन को हाल ही में भारतीय सेना की लेह स्थित 14वीं कोर का कमांडर नियुक्त किया गया है।
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भारत-चीन के कमांडर पूर्वी लद्दाख के चुशूल में बातचीत करेंगे। बैठक का फोकस मिलिट्री तनाव कम करना, सीमा विवाद का समाधान और सीमान्त इलाकों में शांति बनाये रखने पर होगा। इससे पहले सातवें दौर की सैन्य वार्ता 12 अक्तूबर को हुई थी। सातों बैठकों का कोई ठोस नतीजा भी तक नहीं निकला है। पिछली बैठक के बाद बताया गया था कि दोनों देश संवाद कायम रखने पर सहमत हुए हैं।
ख़ास है चुशूल
लद्दाख के पैंगोंग त्सो के दक्षिणी भाग में चुशूल रीजन स्थित है और इसमें ब्लैक टॉप, हेलमेट टॉप, मैगर हिल, गुरुंग हिल, रेजांग ला, रैकिन ला, स्पैंग्गुर गैर और चुशिव घाटी जैसी पहाड़ियां शामिल हैं। इसके अलावा इलाके में रेजांग ला, रेचिन ला, स्पांगुर गैप और चुशूल घाटी जैसे पास भी मौजूद हैं। चुशूल के दूसरी तरफ चीन का मोल्डो सेक्टर है। चुशूल घाटी वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब 13,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ एक बेहद महत्वपूर्ण हवाई पट्टी भी है जिसका प्रयोग भारतीय सेना ने 1962 के युद्ध में किया था।
रणनीतिक महत्व
चुशूल ऐसे क्षेत्र में जहां इसकी रणनीतिक और सामरिक क्षमता बहुत महत्त्व रखती है। मिसाल के तौर पर इस क्षेत्र में कुछ बहुत चौड़े और विशाल मैदान हैं। ऐसे में यहां आर्टिलेरी और टैंकों की तैनाती काफी प्रभावी ढंग से की जा सकती है। इसकी हवाई पट्टी और सड़क मार्ग लेह तक के रास्ते को आसाना बनाती है। फिलहाल चुशूल रीजन में भारतीय सेना का वर्चस्व है।
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चीन के लिए भी चुशूल बेहद अहम है। इसे गेटवे टू लेह (लेह जाने का दरवाजा) भी कहते हैं। अगर चीनी सेना ने चुशूल पर कब्जा कर लिया तो लेह पर संकट आ जाएगा। 1962 के युद्ध में भी चीन ने चुशूल पर कब्जे की कोशिश की था ताकि लेह तक उसकी सीधी पहुंच बन सके। तब चीन गुरूंग हिल और रेजांग ला पर कब्जा करने में कामयाब रहा था, जिसके बाद सीजफायर घोषित कर दिया गया था।
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