क्या है नेहरू-लियाकत समझौता, जिसका श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने किया था विरोध
लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक को सही ठहराते हुए सोमवार को गृह मंत्री अमित शाह ने नेहरू-लियाकत समझौते की बात कही। उन्होंने नेहरू-लियाकत समझौते को 'कैब' की वजह बताते हुए कहा, यदि पाकिस्तान द्वारा संधि का पालन किया गया होता, तो इस विधेयक को लाने की कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
नई दिल्ली: लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक को सही ठहराते हुए सोमवार को गृह मंत्री अमित शाह ने नेहरू-लियाकत समझौते की बात कही। उन्होंने नेहरू-लियाकत समझौते को 'कैब' की वजह बताते हुए कहा, यदि पाकिस्तान द्वारा संधि का पालन किया गया होता, तो इस विधेयक को लाने की कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
1950 में दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसे नेहरू-लियाकत समझौता नाम दिया गया। तो आइए जानते हैं कि क्या है यह समझौता और यह क्यों किया गया था?
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विभाजन और दंगे
1947 में भारत का विभाजन इतिहास के सबसे दुखद और रक्तरंजित अध्यायों में से एक अध्याय है। दोनों तरफ बड़े पैमाने पर दंगे हुए जिसमें लाखों लोग मारे गए, हजारों महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ, नाबालिग लड़कियों का अपहरण किया गया और उनका जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया।
बड़े पैमाने पर कत्लेआम से दोनों देशों में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय असुरक्षित हो गए। दिसंबर 1949 में दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध भी बंद हो गए। अपनी जान बचाने के लिए दोनों देशों के अल्पसंख्यक अपना घर-बार सबकुछ छोड़कर चले गए।
पाकिस्तान से हिंदू और सिख भारत आए तो भारत से मुस्लिम पाकिस्तान चले गए। भारत आने और पाकिस्तान जाने वाले उन हिंदू मुसलमानों की संख्या करीब 10 लाख थी। जो लोग अपना देश छोड़कर कहीं नहीं गए, उनको संदेह की नजरों से देखा जाने लगा।
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आखिर क्यों किया गया था समझौता
दोनों देशों के बीच अल्पसंख्यक समुदायों के बड़े पैमाने पर प्रवासन की पृष्ठभूमि में समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। बड़ी चिंता पूर्वी पाकिस्तान (जो बाद में बांग्लादेश बना) से हिंदुओं और पश्चिम बंगाल से मुसलमानों का पलायन था।
जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की घुसपैठ के साथ दोनों देशों के बीच के रिश्ते पहले ही तनावपूर्ण हो चुके थे। पाकिस्तान से अल्पसंख्यक हिंदुओं, सिखों, जैन और बौद्धों के पलायन और भारत में मुसलमानों को गंभीर शरणार्थी संकट का सामना करना पड़ा। इसे रोकने के लिए दोनों देशों के बीच अप्रैल 1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ।
क्यों किया था श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने विरोध
दिल्ली पैक्ट के नाम से भी मशहूर इस समझौते का विरोध करते हुए नेहरू सरकार में उद्योगमंत्री रहे डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस्तीफा दे दिया था। मुखर्जी तब हिंदू महासभा के नेता थे। उन्होंने समझौते को मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाला बताया था।
अगस्त 1966 में, जनसंघ के नेता निरंजन वर्मा ने तत्कालीन विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह से तीन प्रश्न पूछे।
पहला सवाल: नेहरू-लियाकत समझौते की वर्तमान स्थिति क्या है?
दूसरा सवाल: क्या दोनों देश अभी भी समझौते की शतरें के अनुसार कार्य कर रहे हैं?
तीसरा सवाल: वह साल कौन सा है, जब से पाकिस्तान समझौते का उल्लघंन कर रहा है?
स्वर्ण सिंह ने अपने जवाब में कहा, 1950 का नेहरू-लियाकत समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच एक स्थायी समझौता है। दोनों देशों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि अल्पसंख्यकों को भी नागरिकता के समान अधिकार प्राप्त हों।
दूसरे सवाल पर, स्वर्ण सिंह ने जवाब दिया, हालांकि भारत में, अल्पसंख्यकों के अधिकारों और सुरक्षा को लगातार और प्रभावी रूप से संरक्षित किया गया है, पाकिस्तान ने अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों की लगातार उपेक्षा और उत्पीड़न करके समझौते का लगातार उल्लंघन किया है।
तीसरे प्रश्न का उत्तर नेहरू-लियाकत समझौते की विफलता के बारे में अमित शाह द्वारा किए गए दावे को परिलक्षित करता है। स्वर्ण सिंह ने कहा, इस तरह के उल्लंघनों के उदाहरण समझौते होने के तुरंत बाद ही सामने आने लगे थे।
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समझौते की यह थी मुख्य बातें
दोनों सरकारें अपने-अपने अल्पसंख्यकों के नागिरकता और जीवन की सुरक्षा एवं उनकी संपत्ति के समान अधिकार को सुनिश्चित करेंगी।
बुनियादी मानवाधिकारों की सुरक्षा को सुनिश्चित करेंगी। इन बुनियादी अधिकारों में कहीं आने-जाने की आजादी, विचार और अभिव्यक्ति की आजादी और धर्म की आजादी शामिल थी।
उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए एक अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया जाएगा। अगर अल्पसंख्यकों को कोई समस्या हुई तो दोनों सरकारों की जिम्मेदारी होगी कि देर किए बगैर उनकी समस्याओं का समाधान करे।