मेघालय के इस गांव को कहते हैं भगवान का बगीचा, जानें इसकी खासियत

Update: 2018-07-14 07:31 GMT

मेघालय: हम पर्यावरण दिवस मनाते है। हमें वातावरण को साफ-सुथरा प्रदूषण मुक्त रखने के लिए पहले अपने घर के आस-पास से ही शुरुआत करनी चाहिए तभी हम पूरे वर्ल्ड को साफ-सुधरा और प्रदूषण मुक्त रह पाएंगे। वैसे तो भारत में स्वच्छ भारत अभियान के तहत लोगों को सफाई के प्रति जागरूक किया जा रहा हैं,लेकिन आज भी सफाई के मामले में हमारे अधिकांश गांवो, कस्बों और शहरों की हालत बहुत खराब है। एशिया का सबसे साफ-सुथरा गांव भी हमारे देश में ही है। ये गांव है मेघालय का 'मावल्यान्नॉंग' गांव जिसे कि 'भगवान का अपना बगीचा' (God’s Own Garden) भी कहा जाता है।दुनिया का सबसे बदसूरत कुत्ता, एक लाख का मिला इनाम

 

हाल ही में यहां के कई लोगों को सम्मानित भी किया। सफाई के साथ-साथ ये गांव शिक्षा में भी अव्वल है। यहां की साक्षरता दर 100 फीसदी है। इतना ही नहीं, इस गांव में ज्यादातर लोग सिर्फ अंग्रेजी में ही बात करते हैं।

मावल्यान्नॉग गांव

खासी हिल्स डिस्ट्रिक्ट का ये गांव मेघालय के शिलांग और भारत-बांग्लादेश बॉर्डर से 90 किलोमीटर दूर है। साल 2014 की गणना के अनुसार यहां 95 परिवार रहते हैं। यहां सुपारी की खेती जीविका का मुख्य साधन है। यहां लोग घर से निकलने वाले कूड़े-कचरे को बांस से बने डस्टबिन में जमा करते हैं और उसे एक जगह इकट्ठा कर खेती के लिए खाद की तरह इस्तेमाल करते हैं।

भारत का सबसे साफ गांव

ये गांव 2003 में एशिया का सबसे साफ और 2005 भारत का सबसे साफ गांव बना। इस गांव की सबसे बड़ी खासियत यह है की यहां की सारी सफाई ग्रामवासी खुद करते है, में सफाई व्यवस्था के लिए वो किसी भी तरह से प्रशासन पर आश्रित नहीं है। इस पूरे गांव में जगह-जगह बांस के बने डस्टबिन लगे हैं।सफाई के प्रति जागरूकता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यदि सड़क पर चलते हुए किसी ग्रामवासी को कोई कचरा नजर आता है तो वो रूककर पहले उसे उठाकर डस्टबिन में डाले बिना आगे नहीं जाएगा।

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टूरिस्ट के लिए कई अमेंजिग स्पॉट

इस गांव के आस-पास टूरिस्ट्स के लिए कई अमेंजिग स्पॉट हैं, जैसे वाटरफॉल, लिविंग रूट ब्रिज (पेड़ों की जड़ों से बने ब्रिज) और बैलेंसिंग रॉक्स भी हैं। इसके अलावा जो एक और बहुत फेमस टूरिस्ट अट्रैक्शन है वो है 80 फीट ऊंची मचान पर बैठ कर शिलॉन्ग की प्राकृतिक खूबसूरती को निहारना।

पेड़ों की जड़ों से बने प्राकृतिक पुल

पेड़ों की जड़ों से बने प्राकृतिक पुल जो समय के साथ-साथ मज़बूत होते जाते हैं। इस तरह के ब्रिज पूरे विश्व में केवल मेघालय में ही मिलते हैं। कई जगह आने वाले पर्यटकों की जलपान सुविधा के लिए ठेठ ग्रामीण परिवेश की टी स्टाल बनी हुई है जहां आप चाय का आनंद ले सकते हैं इसके अलावा एक रेस्टोरेंट भी है जहां आप भोजन कर सकते है। मावल्यान्नॉंग गांव शिलांग से 90 किलोमीटर और चेरापूंजी से 92 किलोमीटर दूर स्थित है

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