आंखों में आंसू ला देगी ये खबर: रिक्शा चलाकर 1000 KM. दूर घर लौट रहे मजदूर

कोरोना वायरस के चलते पूरे देश में 21 दिनों के लिए लॉकडाउन हो चुका है। लॉकडाउन ने करोड़ों लोगों को सड़क पर खड़ा कर दिया है और जो पहले से सड़क पर थे उन्हें उजाड़ दिया है।

Update:2020-03-26 11:58 IST

नई दिल्ली: कोरोना वायरस के चलते पूरे देश में 21 दिनों के लिए लॉकडाउन हो चुका है। लॉकडाउन ने करोड़ों लोगों को सड़क पर खड़ा कर दिया है और जो पहले से सड़क पर थे उन्हें उजाड़ दिया है।

रोजी-रोटी के लिए अपने-अपने घरों से सैकड़ों किलोमीटर दूर रहने वाले हजारों मजदूर जैसे तैसे वापसी के लिए रवाना हो चुके हैं। कोई पैदल जा रहा है, कोई साइकिल से तो कोई रिक्शे से ही चल पड़ा है।

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक रिक्शे पर हरेंद्र महतो पूरे कुनबे को लेकर दिल्ली से मोतिहारी के लिए चल पड़े है। पांच लोगों की जिंदगी की समूची गृहस्थी रिक्शे पर लेकर वे घर चल दी हैं। हरेंदर का कहना है कि 22 तारीख से काम नहीं मिला था।

कहां से खऱीदते 21 रोज का सामान और किसी तरह आ भी जाता तो रखते कहां। इसलिए ये तीन रिक्शों पर दिल्ली से मोतिहारी के लिए रवाना हो रहे हैं।

दिल्ली से इनके घर की दूरी 1018 किलोमीटर है। अगर रिक्शे से लगातार भी चलते रहे और किसी ने नहीं रोका तो भी पांच से सात दिन और पांच रात लगेंगे पहुंचने में और अगर रोक लिया तो और समय लग जाएगा या फिर रास्ते में ही रुकना पड़ जाएगा। रात लगेंगे पहुंचने में और अगर रोक लिया तो और समय लग जाएगा या फिर रास्ते में ही रुकना पड़ जाएगा।

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यहां 14 मजदूर एक साथ निकले

अकेले हरेंद्र महतो ही नहीं हैं. देशभर में ऐसी तमाम कहानियां सामने आ रही हैं जहां मजदूर लॉकडाउन से परेशान हैं। एक दूसरी कहानी चंडीगढ़ से है। फुटपाथों पर सोने वाले 14 मजदूर साइकिल रिक्शे से यूपी के बलरामपुर के लिए निकल पड़े हैं। इनमें से एक दिव्यांग भी हैं।

पांच दिन में 300 किलोमीटर चलकर मुरादाबाद तक पहुंचे हैं, अभी इन्हें 700 किलोमीटर और जाना है, इन मजदूरों की कहानी दिल दहला देने वाली हैं। जब से चले हैं तब से केवल एक बार खाना खाया है।

इन मजदूरों को तो सहारनपुर के पास कुछ लोगों ने पहुंचाने के नाम पर ठग भी लिया। लेकिन अब किसी भी सूरत में ये घर पहुंचना चाहते हैं। राजेंद्र शुक्ला और इनके साथी रिक्शा चलाते थे। चार से पांच हजार रुपए की आमदनी हो जाती थी। जैसे तैसे जिंदगी चल रही थी। लेकिन कोरोना से लॉकडाउन इनकी रोजी रोटी पर कहर की तरह टूटा है।

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अहमदाबाद में मजदूरों की कहानी:

अहमदाबाद से चले मजदूरों के एक जत्थे को देखकर दिल बैठ जाता है।गुजरात के अहमदाबाद से हजारों लोग राजस्थान के लिए पैदल रवाना हो चुके हैं। क्योंकि काम बंद हो चुका है. पैसे हैं नहीं और बसें रेलगाड़ियां चल नहीं रही हैं।

साबरकांठा जिले में हाईवे पर ये सैकड़ों मजदूर अपने बच्चों और सामान के साथ पैदल जा रहे थे। भयंकर गर्मी के बीच चलते हुए इन लोगों ने न तो खाना खाया था और न ही इनके पास पीने का पानी था। मालिकों ने किराये के नाम पर बस पांच-पांच सौ रुपए देकर रवाना कर दिया था।

हाइवे के ढाबे भी बंद:

लॉकडाउन के कारण हाइवे पर पड़ने ढाबे तक बंद हैं. ऐसे में एसपी को पता चला तो उन्होंने सबके खाने का बंदोबस्त किया। लेकिन ये इंतजाम बस एक वक्त का था। आगे का रास्ता फिर से पैदल है।

एसपी ने की थोड़ी मदद:

साबरकांठा जिले के एसपी ने बताया कि हमने उन्हें भोजन, बिस्किट और पानी उपलब्ध कराया है। इन मजदूरों ने गंभीर जोखिम लिया है, लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं है।

इन मजदूरों में किसी को सिरोही जाना है, किसी को डुंगरपुर तो किसी को उदयपुर। मतलब किसी भी सूरत में कम से कम 490 किलोमीटर। और वो भी पैदल. कई लोग अगर मजदूरों की मदद करना भी चाहें तो नहीं कर सकते क्योंकि वो नहीं जानते कि इसके लिए इजाजत लेनी होगी।

ये संकट करोड़ों लोगों के सामने खड़ा है। राजस्थान से लेकर पंजाब गुजरात, बंगाल. तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र तक बिहार यूपी के कम से कम 5 करोड़ लोग काम करते हैं।

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सैकड़ों ट्रक ड्राइवर भी फंसे:

लॉकडाउन के कारण राज्यों के बॉर्डर सील कर दिए गए हैं। सैकड़ों ट्रक हाइवे पर फंस गए हैं। पाबंदी लगाए जाने के वक्त ट्रक लंबी-लंबी यात्रा पर निकले हुए थे। लेकिन अब वो पूरे देश में फंसे हुए हैं। ड्राइवरों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। होटल बंद होने की वजह से उनके पास खाने और पानी की कमी है।

बता दें कि कोरोना वायरस का कहर दुनियाभर में बढ़ता जा रहा है। भारत में इससे निपटने के लिए 21 दिनों का लॉकडाउन लगाया गया है जिसका गुरुवार को दूसरा दिन है।

लॉकडाउन की वजह से आम लोगों को जरूरी समान की किल्लत हो रही है, हालांकि सरकारों की ओर से लगातार मदद पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। इस बीच देश में कोरोना केस की संख्या 649 के पार पहुंच गई है, जबकि 14 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं।

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