जैव विविधता संरक्षण कानून को प्रभावशाली बनाने की मांग, जानिए कब बना था ये लाॅ

पर्यावरणीय संरक्षण के लिए जैव विविधता को संरक्षित करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है, जिसको ध्यान में रखते हुए वर्ष 2002 में जैव विविधता संरक्षण कानून का निर्माण किया गया था।

Update: 2020-06-04 18:29 GMT

झाँसी: पर्यावरणीय संरक्षण के लिए जैव विविधता को संरक्षित करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है, जिसको ध्यान में रखते हुए वर्ष 2002 में जैव विविधता संरक्षण कानून का निर्माण किया गया था। इस कानून के निर्माण की मंशा थी कि भारत में गांव स्तर पर जैव विविधता संरक्षण के लिए समीतियों का निर्माण हो एवं गांव में उपलब्ध वनस्पतियों का दस्तावेजीकरण किया जाए।

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बुन्देलखण्ड जैसे इलाकों में यह कानून बहुत अधिक समसामायिक है। दुर्भाग्य से इस कानून के निर्माण के बाद बुन्देलखण्ड जैसे इलाके में कोई प्रभावी कार्य नहीं हुआ बल्कि महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों में बेहतर कार्य किया गया। पर्यावरणविद संरक्षक माता प्रसाद तिवारी बताते है कि उन्होंने अपने गांव में दो सैकडे से ज्यादा प्रजातियों को चिन्हिंत किया तथा उनका दस्तावेजीकरण किया है और आगे भी वह दिशा में कार्य कर रहे है। बुन्देलखण्ड में जैव विविधता के बेहतर उदाहरण मिलते है, तीन दशक पहले तक बुन्देलखण्ड में बरसात के बाद कितनी तरह की प्रजातियां स्वयं उगती थी, जिनका लोग उपयोग अपने भोजन में भी करते थे।

स्वच्छ हवा को बनाये रखने में पौधों का विशेष योगदान

पर्यावरणविद गोपाल जी बताते है कि बादल की गरज के साथ बुन्देलखण्ड में कुकुरमुत्ता की एक प्रजाति पायी जाती है जिसको लोग भोजन में उपयोग करते है, आज भी बुन्देलखण्ड के कई जंगलों में बरसात के बाद आडु जैसी कई प्रजातियां पाई जाती है जिसको लोग निकालकर बढे चाव से खाते है। आधुनिक विकास और लालचीय मानवीय स्वभाव के कारण आज इस इलाके में जैव विविधता का क्षरण होता दिख रहा है। हम सब जानते है कि पौधे इस संसार का सबसे महत्वपूर्ण अंग है और पृथ्वी पर पाये जाने वाले सभी जीवों के लिए अहम भूमिका रखते है, कार्बन डाई ऑक्साइड लेते है ऑक्सीजन छोडते है, जिससे हमारी श्वसन क्रिया चलती है। जीवन जीने के लिए जितनी ज्यादा आवश्यकता पानी की है उससे ज्यादा हवा की है और स्वच्छ हवा को बनाये रखने में पौधों का विशेष योगदान है।

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परम्परागत खेती के प्रति लोगों का लगाव

आज पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर परमार्थ समाज संस्था द्वारा आयोजित बेविनार को सम्बोधित करते हुए जल पुरूष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि 50 करोड से ज्यादा पादक जातियां, सूक्ष्म जातियां विश्व में पायी थी जो निरन्तर घट रही है जिसके कारण कोरोना जैसी बीमारी बढ रही है। इससे निपटने के लिए हमें गांव स्तर पर जैव विविधता संरक्षण के लिए कार्ययोजना बनाकर कार्य करना होगा। बुन्देलखण्ड जैसे इलाके में इसको प्रभावी ढंग से किया जाए। पूर्व वन संरक्षक वीके मिश्रा ने कहा कि बुन्देलखण्ड में आज भी जैव विविधता संरक्षण के लिए प्रभावी पहल होनी चाहिए, क्योंकि इस इलाके में अभी भी रसायनिक खाद्यों की जगह जैविक खाद्य का उपयोग लोग करते है। परम्परागत खेती के प्रति लोगों का लगाव है।

सामुदायिक पोषण वाटिका को बढ़ावा दिया जाए

इस अवसर पर जल जन जोडो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह ने कहा कि जैव विविधता के सही रहने से हमारा पर्यावरणीय संतुलन ठीक रहेगा, हमें बाढ सूखा जैसी आपदाऐं कम प्रभावित करेगी। मानवीय जीवन खुशहाल रहेगा, इसके लिए हम सबको सकल्पिंत होकर आगे बढने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि परमार्थ ने इस दिशा में सामुदायिक पोषण वाटिका का प्रकल्प शुरू किया है जिसमें जैव विविधता संरक्षण के आयामों का विशेष ध्यान रखा गया है। गांव-गांव में सामुदायिक पोषण वाटिका को बढावा देने की आवश्कता है, जिससे लोगों की जरूरत की सब्जियां फल आदि प्राप्त होगे और पर्यावरणीय संतुलन ठीक होगा।

रिपोर्ट: बी.के. कुशवाहा

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