कोविड-19: वेंटिलेटर को कोरोना का इलाज मत समझिए
दुनिया भर में कोरोना वायरस के प्रकोप के शुरुआती दिनों से ही सरकारों और अस्पतालों में वेंटिलेटर हासिल करने की आपाधापी मच गई। समझा गया कि पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर होने से लोगों की जान बच जाएगी। न्यूयॉर्क, मिलान, तेहरान, लोम्बार्दी, मैड्रिड आदि शहरों में वेंटिलेटर की भारी कमी बताई जा रही थी
नई दिल्ली दुनिया भर में कोरोना वायरस के प्रकोप के शुरुआती दिनों से ही सरकारों और अस्पतालों में वेंटिलेटर हासिल करने की आपाधापी मच गई। समझा गया कि पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर होने से लोगों की जान बच जाएगी। न्यूयॉर्क, मिलान, तेहरान, लोम्बार्दी, मैड्रिड आदि शहरों में वेंटिलेटर की भारी कमी बताई जा रही थी लेकिन वेंटिलेटरों की संख्या बढ्ने की बावजूद जैसे-जैसे मौत का सिलसिला बढ़ता रहा है उससे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि जब बीमारी घातक रूप ले लेती है तो ये उपकरण अक्सर किसी को वायरस से मरने से बचा नहीं सकते हैं।
न्यूयॉर्क के गवर्नर एंड्रू कुओमो मार्च में वेंटिलेटर की कमी का रोना रो रहे थे लेकिन अब उन्होने स्वीकार किया है कि, आप जितने लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रहेंगे, वेंटिलेटर हटने की संभावना उतनी ही कम होती जाएगी। कुछ ही लोगों को वेंटिलेटर की जरूरत कोरोना वायरस से संक्रमित कुछ ही लोगों को वेंटिलेटर की आवश्यकता होती है। जो लोग वेंटिलेटर पर जाते हैं उनके लिए ये निश्चित रूप से जीवन रक्षक हो सकते हैं। बहुत से मरीजों को सफलतापूर्वक वेंटिलेटर से हटाया गया है। लेकिन अगर वेंटिलेटर हों ही नहीं तो परिणाम और भी बदतर होंगे। लेकिन ये समझ लीजिये कि वेंटिलेटर अपने आप में कोई इलाज नहीं हैं।
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अनोखा नया वायरस
इस वायरस को एक खास कारण से ‘नॉवेल’ कोरोना वायरस कहा जाता है। नॉवेल के मायने हैं – नया। मानवता को ये वायरस कुछ महीनों पहले ही पता चला है यानी ये अभी हमारे लिए ‘नया’ है। ऐसे में ये समझना बहुत बड़ी मूर्खता होगी कि हम इस वायरस से उत्पन्न बीमारी का सबसे अच्छा इलाज जानते हैं। आज वेंटिलेटर इलाज की धुंधली तस्वीर का केवल एक हिस्सा हैं, और डॉक्टर अभी ये सीख रहे हैं कि वे अन्य उपचारों के संग इन उपकरणों का सबसे अच्छा उपयोग कैसे करें।
फेफड़े कैसे काम करते हैं
जब आप सांस लेते हैं, तो हवा आपके विंडपाइप और आगे फेफड़ों में दो ‘ब्रोंकी’ के जरिये जाती है जो बाएं और दाएं फेफड़े में विभाजित हो जाती है। ब्रोंकी छोटी और छोटी शाखाओं में विभाजित होती है और वायु थैली के छोटे समूहों में जा कर समाप्त होती हैं। इनकी दीवारें टिशू पेपर की से भी पतली होती हैं। हवा की थैलियां छोटी छोटी कोशिकाओं में लिपटी रहती हैं। ये कोशिकाएं रक्त को ले जाती हैं और रक्त को ऑक्सीजन चाहिए होता है। जब हवा की थैलियाँ सांस लेने के साथ फूलती हैं तो वे कोशिकाओं पर दबाव बनाती हैं और इससे रक्त में ऑक्सीजन चला जाता है।
निमोनिया की स्थिति
जब एक डॉक्टर कहता है कि एक मरीज को निमोनिया है तो इसका मतलब है कि फेफड़े संक्रमित हैं और उनमें सूजन है। इस हालत में हवा की थैली में मवाद या तरल पदार्थ भरना शुरू हो जाता है। ऐसी हालत में वे अब कोशिकाओं को ऑक्सीजन ट्रान्सफर नहीं कर सकती हैं। फेफड़ों में जितना कम जगह होगी उतना ही शरीर में कम ऑक्सीजन होगा।
एक और अधिक गंभीर स्थिति जो कोविड-19 रोगियों में सबसे अधिक देखी जा रही है, उसे एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम कहा जाता है। यह स्थिति तब भी हो सकती है जब किसी के फेफड़े बुरी तरह से घायल हो गए हों। ऐसा हानिकारक रसायनों, पानी में डूबने और गंभीर निमोनिया के कारण हो सकता है। जब मरीज में ये सिंड्रोम विकसित होता है वायु थैली में तरल द्रव भर जाता है और ऑक्सीजन के स्तर में गिरावट हो जाती है। एक स्वस्थ फेफड़े की वायु थैली में एक चिकनी परत होती है। जो थैली को आसानी से फुलाने और दबने में मदद करता है। एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम में ये चिकनी परत टूट जाती है, जिससे फेफड़े सख्त हो जाते हैं। सूजन के कारण हवा की थैलियों और उनके चारों ओर कोशिकाओं के जाल के बीच की खाई और बढ़ जाती है जिससे हालात और भी बदतर बन जाते हैं। इससे रक्त को ऑक्सीजन नहीं मिला पाती। डॉक्टरों के पास कई तरह के उपकरण एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम में डाक्टर कई तरह के उपकरण इस्तेमाल में लाते हैं। सबसे आसान उपकरण एक ट्यूब जैसी चीज होती है जिसमें दो सिरे होते हैं जो मरीज के नथुने पर रखे जाते हैं। इससे मरीज को काफी बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन दी जाती है। लेकिन इस स्थिति में भी मरीज को खुद सांस खींचनी पड़ती है।
यदि किसी मरीज को और अधिक सहायता की आवश्यकता होती है, तो डॉक्टर उसे एक मास्क देते हैं जिससे 100 फीसदी ऑक्सीजन दी जाती है। लेकिन इस मास्क में भी मरीज को खुद सांस लेने में सक्षम होना चाहिए। कभी-कभी हवा की थैलियों में जाने वाली फेफड़ों की छोटी शाखाएं अपने आसपास बन रहे तरल पदार्थ के भार से गिर सकती हैं। इस स्थिति में मरीज को ऑक्सीजन की उच्चतम सांद्रता भी नहीं मिल सकती। अब मरीज की सांस द्वारा जा रही हवा का दबाव बढ़ाने का उपाय किया जाता है। उच्च दबाव वाली हवा फेफड़ों के इन छोटे वायुमार्गों को करने में मदद करती है।
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कोरोना महामारी से पहले डॉक्टर अक्सर ‘बाईपैप’ नामक उपकरण की मदद लेते थे। ये उपकरण मरीज को मास्क के जरिये दबाव वाली हवा पहुंचाता है। कोरोना वायरस महामारी के दौरान समस्या ये है कि ‘बाईपैप’ मास्क एयरटाइट नहीं होता इसलिए वायरस बाहर निकाल कर स्वास्थ्य कर्मियों को संक्रमण के खतरे में डाल सकते हैं। इसलिए जब किसी मरीज के ऑक्सीजन का स्तर गिरता रहता है, तो चिकित्सक वेंटिलेटर की ओर रुख करते हैं।
वेंटिलेटर कैसे काम करते हैं
वेंटिलेटर की श्वास ट्यूब गले में डालने से पहले मरीजों को सिडेटिव और दर्द निवारक दवाओं के जरिये सुला दिया जाता है। ट्यूब डालने के बाद भी मरीज को लगातार सुलाये रखा जाता है इसलिए रोगियों को कोई असुविधा महसूस नहीं होती है। एक बार ट्यूब लगने के बाद, विंडपाइप के अंदर, इसके चारों ओर एक छोटा सा वाशर लगा दिया जाता है जिससे वायरल कण बाहर निकल नहीं पाते। फिर, वेंटिलेटर मशीन को चालू किया जाता है और रोगी के फेफड़ों के अंदर और बाहर ट्यूब के जरिये हवा को धक्का कर पहुंचाना शुरू हो जाता है। वेंटिलेटर लाग्ने के बाद डाक्टरों को ये विकल्प मिल जाता है कि वे मरीज में ऑक्सीजन का स्तर और दबाव घटा-बढ़ा सकें। गहरी हांफती सांसों के बजाय छोटी सांसें लेने से क्षतिग्रस्त फेफड़ों की रक्षा करने में मदद मिलती है।
कोविड-19 के रोगियों की अलग है स्थिति
एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम कोविड-19 रोगियों में अलग स्थिति दिखाता है। एक डॉक्टर के अनुसार सिंड्रोम का मरीज सांस की हल्की तकलीफ से वेंटिलेटर की नौबत तक मात्र 12 घंटे में पहुँच सकता है। लेकिन कोविड-19 के मरीज में ये स्थिति धीरे-धीरे आती है। कोविड-19 के मरीज दो हफ्ते से ज्यादा समय तक वेंटिलेटर पर हो सकते हैं। डाक्टरों का कहना है कि सामान्य स्थिति में जब हम ट्यूब निकालते हैं, तो 10 में से एक मरीज में ट्यूब को वापस रखना पड़ता है। लेकिन कोविड-19 की स्थिति में एक तिहाई मरीजों में एक-दो दिन के भीतर ट्यूब वापस डालनी पड़ती है।
सबसे बढ़िया इलाज पर सहमति नहीं
कई अस्पताल अब रोगियों को उनके पेट के बल लेटने की सलाह दे रहे हैं, क्योंकि फेफड़ों के पीछे की ओर ज्यादा एरिया होता है इसलिए जब रोगी के सामने की ओर तरल द्रव ट्रान्सफर हो जाता है, तो इससे ऑक्सीजन तक पहुंचने के लिए सतह क्षेत्र में वृद्धि हो सकती है। वेंटिलेटर का सबसे अच्छा उपयोग कैसे करें, इसके बारे में भी चर्चा जारी है। कुछ डॉक्टरों का मानना है कि वेंटिलेटर का उपयोग अधिक किया जा रहा है, जबकि अन्य का सुझाव है कि वेंटिलेटर की सेटिंग बादल दी जानी चाहिए। लैंसेट रेस्पिरेटरी मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन ने चीन के वुहान में एक अस्पताल में 52 गंभीर रूप से बीमार रोगियों को ट्रैक किया। इनमें 37 को मैकेनिकल वेंटिलेशन की जरूरत थी। 28 दिनों के बाद उन 37 रोगियों में से 30 की मृत्यु हो गई थी, और तीन वेंटिलेटर पर रहे।
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जेएएमए पत्रिका में प्रकाशित एक अन्य बड़े अध्ययन ने इटली के लोम्बार्डी क्षेत्र में आईसीयू में भर्ती गंभीर रूप से बीमार 1591 रोगियों को ट्रैक किया। 1,300 मरीजों में से 88 फीसदी को मेकेनिकल वेंटीलेशन और 11 फीसदी को नॉनइनवेजिव वेंटिलेशन पर रखा गया। इनमें से 26 फीसदी की मृत्यु हो गई थी, 16 फीसदी को छुट्टी दे दी गई थी और 58 फीसदी अभी भी आईसीयू में थे।