पाकिस्तान को शपथग्रहण में न्योता नहीं, जानिये क्या संदेश देना चाहते हैं मोदी

लोकसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत के बाद नरेंद्र मोदी दोबारा 30 मई को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं। इस मौके पर एक बार फिर राष्‍ट्रपति भवन विदेशी मेहमानों के स्‍वागत का गवाह बनने को तैयार है।

Update:2019-05-28 10:40 IST

नई दिल्‍ली: लोकसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत के बाद नरेंद्र मोदी दोबारा 30 मई को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं। इस मौके पर एक बार फिर राष्‍ट्रपति भवन विदेशी मेहमानों के स्‍वागत का गवाह बनने को तैयार है। इन मेहमानों की लिस्‍ट में जिस नाम की सबसे ज्‍यादा चर्चा है वो पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का नाम है।

हालांकि सरकार की तरफ से भी अभी तक ये साफ नहीं किया गया है कि इस शपथ ग्रहण समारोह में कितने विदेशी मेहमानों को न्‍योता भेजा गया है, या भेजा जाएगा। लेकिन सभी की दिलचस्‍पी इमरान खान के नाम को लेकर लगातार बनी हुई है।

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लोकसभा चुनाव के बाद आए परिणाम के बाद इमरान खान ने पीएम मोदी को फोन कर बधाई दी थी। इससे पहले उन्‍होंने कहा था कि दूसरे कार्यकाल में मोदी को इस क्षेत्र के विकास और इसकी स्थिरता पर काम करना चाहिए।

इमरान के बयानों पर यदि गौर करें, तो चुनाव के दौरान ही उन्‍होंने पीएम मोदी को लेकर एक बड़ा बयान दिया था। जिसकी वजह से उन्‍हें अपने सांसदों की आलोचना तक झेलनी पड़ी थी। दरअसल, उन्‍होंने कहा था कि कश्‍मीर समेत सभी विवादित मुद्दों को केवल मोदी ही सुलझा सकते हैं।

पीएम मोदी के शपथ ग्रहण में इमरान की शिरकत को लेकर बनी कश्‍मकश की एक वजह ये भी है कि वर्ष 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, तब पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को इस शपथ समारोह में शिरकत करने की दावत दी गई थी।

उन्‍होंने इस न्‍योते को स्‍वीकार किया और मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आए। इस दौरान दोनों नेताओं के बीच बातचीत भी हुई थी। इसके अलावा दिसंबर 2015 में पीएम मोदी काबुल से लौटते हुए अचानक नवाज के कहने पर लाहौर पहुंच गए थे।

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इस दौरे ने सभी को चौंका दिया था। लाहौर में पीएम मोदी शरीफ की नातिन की शादी में शरीक होने के बाद वापस स्‍वदेश लौट आए थे। हालांकि, इसके बाद दोनों 18 सितंबर 2016 को हुए उरी हमले से देशों के रिश्‍तों में खटास आ गई थी। इसकी वजह से नेपाल में सार्क सम्‍मेलन के दौरान दोनों नेताओं की शिष्‍टाचार मुलाकात तक नहीं हुई थी।

उरी हमले से जो तनाव भारत-पाकिस्‍तान के बीच बना वह आज भी बरकरार है। यह बात अलग है कि अब पाकिस्‍तान में सरकार बदल चुकी है। लेकिन इमरान के आने के बाद भी वहां कुछ नहीं बदला है। यहां पर ये भी बताना जरूरी है कि इमरान खान ने पद संभालते ही वैश्विक मंच पर यह प्रचार-प्रसार किया है कि वह भारत से दोस्‍ती के इच्‍छुक हैं और हर विवादित मुद्दे को बातचीत की मेज पर आकर सुलझाना चाहते हैं।

वहीं दूसरी तरफ पाकिस्‍तान की मीडिया में पीएम मोदी के दोबारा चुने जाने पर जो संपादकीय सामने आया वह कुछ और ही सुर लगा रहा है। इसके अलावा चुनाव में प्रचंड बहुमत से दोबारा सत्‍ता पर काबिज होने वाले पीएम मोदी ने इमरान खान से कहा है कि क्षेत्र की शांति-समृद्धि के लिए आतंकमुक्त माहौल जरूरी है। दोनों तरफ से आने वाले बयान यूं तो खास मायने रखते हैं।

असल बात ये हैं कि इमरान खान ने बार-बार भारत से बातचीत की पेशकश कर अपना पासा फेंक दिया है। उनका मानना है कि यह पासा वैश्विक मंच पर उनकी छवि बदलने में सहायक साबित हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ यदि भारत की बात करें तो शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए इमरान को न्‍योता दिया भी जा सकता है और नहीं भी।

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बहरहाल, ये तो उसी दिन ही पता चल सकेगा। लेकिन हां, इमरान यह बात कह चुके हैं कि वह पीएम मोदी से मिलकर विवाद सुलझाने को तैयार हैं। नवंबर 2015 में इमरान खान मोदी से मुलाकात कर चुके हैं। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों नेताओं की किसी भी मंच पर मुलाकात नहीं हुई है।

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