अर्थशास्त्री जीन ड्रेज़ ने भारतीय ​अर्थव्यवस्था को लेकर कही ये बड़ी बात

यह ठीक वैसा है जैसे किसी साइकिल का एक पहिया पंक्चर हो जाए तो आप उम्मीद नहीं कर सकते हैं ​वो कितनी आगे तक जाएगी। आसान शब्दों में कहें तो अगर यह संकट कुछ और समय के लिए रहता है तो अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करेगा। इसमें बैंकिंग सेक्टर भी शामिल होगा।

Update: 2020-04-05 13:23 GMT

नई दिल्ली: जाने माने अर्थशास्त्री जीन ड्रेज़ ने रविवार को पूरे देश में लगे लॉक डाउन का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ने के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि भारत की मैक्रोइकोनॉमिक स्थिति बेहद धूमिल है और लोकल व देशव्यापी स्तर पर लॉकडाउन जारी रहता है तो आने वाले समय में यह और भी खराब हो सकती है। ड्रेज़ ने आगे यह भी कहा कि लॉकडाउन की वजह से देश के कई कोने में सामाजिक अस्थिरता बढ़ रही है।

भारतीय ​अर्थव्यवस्था बुरी तरह हो सकती है प्रभावित

एक बातचीत में ड्रेज़ ने कहा कि 'स्थित बेहद धूमिल है और आने वाले समय में यह और भी बुरी हो सकती है। अभी भी लगता है कि लोकल या राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन जारी रह सकता है। संभव है कि वैश्विक मंदी भारतीय ​अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित करे।'

मेडिकल केयर जैसे सेग्मेंट में ग्रोथ

भारतीय ​अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस आउटब्रेक के इम्पैक्ट पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि रोजगार पर इसका असर पड़ेगा। कुछ सेक्टर्स बुरी तरह प्रभावित होंगे। हालांकि, संकट की इस घड़ी में मेडिकल केयर जैसे सेग्मेंट में ग्रोथ देखने को मिल सकती है।

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यह स्थिति साइकिल का एक पहिया पंक्चर होने जैसा

उन्होंने कहा कि यह ठीक वैसा है जैसे किसी साइकिल का एक पहिया पंक्चर हो जाए तो आप उम्मीद नहीं कर सकते हैं ​वो कितनी आगे तक जाएगी। आसान शब्दों में कहें तो अगर यह संकट कुछ और समय के लिए रहता है तो अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करेगा। इसमें बैंकिंग सेक्टर भी शामिल होगा।'

घर पर रहकर काम करना भी होगा मुश्किल

ड्रेज़ का कहना है कि लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजूदर हैं तो अपने घरों तक चल पड़ेंगे। आने वाले कुछ समय के लिए वो शहरों की तरफ बढ़ने में हिचकेंगे। उन्होंने कहा कि 'अगर किसी के पास थोड़ी बहुत जमीन भी नहीं है तो उन्हें अपने घर पर रहकर काम करना भी मुश्किल होगा।' उन्होंने आगे कहा कि कई ऐसे सेक्टर्स हैं, जो प्रवासी मजूदर पर अधिक निर्भर हैं। ऐसे में इन सेक्टर्स में मजूदरों की कमी हो सकती है।

उत्तर भारत में गेहूं की फसलों की कटाई के लिए दिहाड़ी मजूदरी की कमी पर बोलते हुए उन्होंने कहा, 'यही इस स्थिति की विरोधाभास है। कमी और अधिकता एक साथ दिखाई दे रही है, क्योंकि सर्कुलेशन चैनल बुरी तरह से बाधित हुआ है।'

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यूनिवर्सल बेसिक इनकम लाने का सही समय

जब उनसे पूछा गया कि क्या यह यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) लाने के लिए मुफीद समय है, तो उन्होंने कहा कि इस चक्र को दोबारा लाने का यह समय नहीं है। इसीलिए मौजूदा योजनाओं की ही मदद लेनी जानी चाहिए। इसमें पब्लिक डिस्ट्रीब्युशन सिस्टम (PDS) और सोशल सिक्योरिटी पेंशन स्कीम्स शामिल हो सकता है।

UPA सरकार के दौर में राष्ट्रीय सलाहकार समिति (National Advisory Council) के सदस्य रहने वाले ड्रेज़ ने कहा, 'अन्य परिपेक्ष्य में देखें तो यूबीआई संभव है उचित लग सकता है, लेकिन आज के भारत में यह एक तरह का डिस्ट्रैक्शन होगा।'

GDP ग्रोथ 2 फीसदी के स्तर पर जा सकती है

उल्लेखनीय है कि कई अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रे​टिंग एजेंसियों ने COVID-19 की वजह आर्थिक ग्रोथ के अनुमान में कटौती की हैं।​ फिच रेटिंग्स के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 में GDP ग्रोथ 2 फीसदी के स्तर पर जा सकती है। पिछले 30 साल में ऐस पहली बार हो सकता है। चालू वित्त वर्ष के एशियन डेवलपमेंट बैंक भारतीय आर्थिक ग्रोथ की रफ्तार 4 फीसदी देखता है।

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पिछले सप्ताह ही S&P ग्लोबल रेटिंग्स ने जीडीपी ग्रोथ अनुमान को 5।2 फीसदी से घटाकर 3।5 फीसदी कर दिया है। मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने भी जीडीपी ग्रोथ के अनुमान में कटौती की है। कहा जा रहा है कोरोना वायरस महामारी की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था को गहरा झटका लगा है।

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