लॉकडाउन का इफेक्ट – साफ पानी, निर्मल हवा
लॉकडाउन का एक इफेक्ट ये है कि नदियों का जल साफ होने लगा है, आसमान साफ और नीला दिखाई देता है। रात में टिमटिमाते तारे साफ दिखाई देते हैं। मानवीय गतिविधियां कम होने से पक्षियों की आवाजें उन शहरों में भी सुनाई देने लगी है,
नई दिल्ली। लॉकडाउन का एक इफेक्ट ये है कि नदियों का जल साफ होने लगा है, आसमान साफ और नीला दिखाई देता है। रात में टिमटिमाते तारे साफ दिखाई देते हैं। मानवीय गतिविधियां कम होने से पक्षियों की आवाजें उन शहरों में भी सुनाई देने लगी है, जहां बहुत मुश्किल से पक्षी दिखा करते थे। वायु प्रदूषण का नामोनिशान नहीं है और सबसे बड़ी बात कि गंगा के पानी में 40 से 50 फ़ीसदी का सुधार हुआ है।
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नहीं हो रही औद्योगिक कचरे की डंपिंग
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के कारण गंगा के पानी में प्रदूषण लगातार कम हो रहा है। औद्योगिक कचरे की डंपिंग में भी कमी आई है। रियल टाइम वाटर मॉनिटरिंग में गंगा का पानी 36 मॉनिटरिंग सेंटरों में से 27 में नहाने के लिए पूरी तरह उपयुक्त पाया गया है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत विभिन्न जगहों पर गंगा के पानी में काफी सुधार दिखा है।
पहले जब गंगा नदी के पानी की मॉनिटरिंग की गई थी तब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल की खाड़ी में जाने तक के पूरे रास्ते में नदी का पानी नहाने के लिए भी ठीक नहीं मिला था। यमुना का पानी भी पहले से काफी साफ हुआ है। हालांकि अभी भी घरेलू सीवरेज की गंदगी नदी में ही जा रही है। फिर भी औद्योगिक कचरा गिरना एकदम बंद हो जाने के कारण पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
शहरों की हवा भी हो गई काफी साफ
लॉकडाउन का एक असर यह भी पड़ा है कि देश भर के तमाम शहरों और कस्बों में हवा भी काफी साफ हो गई है। लॉकडाउन के कारण 29 मार्च को देश के 91 शहरों में वायु प्रदूषण न्यूनतम हो गया। लॉकडाउन के कारण ही अत्यधिक प्रदूषित शहर भी 9 से शून्य के मानक पर आ गए। पावर प्लांट्स, ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री, निर्माण संबंधी गतिविधियां, बायोमास का जलना, फैक्ट्रियों से निकलने वाला कचरा और सड़कों पर उड़ने वाली धूल को शहरों में प्रदूषण का सबसे प्रमुख कारक माना जाता है। मौजूदा समय में ये सारी गतिविधियां बंद होने के कारण शहरों की आबोहवा में काफी सुधार दर्ज किया गया है।
पेरिस संधि का लक्ष्य हो गया पूरा
प्रदूषण के कारण ओजोन परत में काफी नुकसान हो चुका है लेकिन अब लॉकडाउन के चलते ओज़ोन परत फिर से दुरुस्त हो रही है। पृथ्वी पर जीने के लिए सबसे जरूरी ओजोन परत भी अंटार्कटिका के ऊपर अपने आप हील होने लगी है। इसका मुख्य कारण ग्लोबल लॉकडाउन ही है, क्योंकि इससे जहरीली गैसों का उत्सर्जन न्यूनतम स्तर पर या इससे भी कम हो गया है। ऐसे में प्रयास करना होगा कि लॉकउन हटने के बाद ओजोन परत के छेद को बढ़ने न दिया जाए।
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पेरिस संधि का लक्ष्य हो गया पूरा
कोविड १९ की त्रासदी से सभी देशों की अर्थव्यवस्था का पहिया थम-सा गया है। सारी आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ गई हैं। इसके कारण कार्बन डाइऑक्साइड या ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी कमी आई है। सेंटर फॉर इंटरनेशनल क्लाइमेट रिसर्च अनुसार कोरोना वायरस महामारी के कारण विश्व कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 0.3 से लेकर 1.2 फीसदी की कमी आएगी।
यूरोप में कार्बन ड़ाइऑक्साइड़ का उत्सर्जन 24 फीसदी तक कम हो जाएगा इसकी वजह इटली, फ्रांस, स्पेन, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियां ठप हैं। यूरोप में बिजली की मांग में 10 फीसदी तक कमी होगी। चीन में महामारी फैलने के कारण कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में 25 फीसदी तक की कमी होगी और बिजली की मांग में भी ९ फीसदी की कमी आएगी। इस हिसाब से पेरिस समझौते का जो लक्ष्य तय किया गया है, उसे 2030 की जगह 2020 में ही हासिल किया जा रहा है।