नई दिल्ली: लंबे समय बाद ही सही सच सामने आ गया। निर्वाचन आयोग ने ऐसे राजनीतिक दलों की पहचान कर ली है जो रजिस्टर्ड तो हैं लेकिन कभी चुनाव नहीं लड़ते। उनका वजूद सिर्फ कागजों पर ही है।
निर्वाचन आयोग को विश्वास है कि रजिस्टर्ड होने के बाद भी चुनाव नहीं लड़ने वाले दल 'मनी लॉन्ड्रिंग' के धंधे में लगे हैं और कालेधन को सफेद कर रहे हैं। देशभर में ऐसे दलों की संख्या 255 है। हालांकि मीडिया में कुछ दिन पहले ऐसे दलों की संख्या 200 बताई गई थी।
'कागजी' दल सबसे ज्यादा दिल्ली में
दिलचस्प है कि ऐसे दलों की संख्या देश की राजधानी दिल्ली में ज्यादा है। दिल्ली में कॉरपोरेट ऑफिस की संख्या ज्यादा है। ज्यादा का तो मुख्यालय भी वहीं है। राष्ट्रीय राजधानी में ऐसे दलों की संख्या 52 है, जो आश्चर्यजनक है। दिल्ली में रजिस्टर्ड इन दलों ने कभी चुनाव लड़ा ही नहीं है। दूसरा नंबर उत्तर प्रदेश का आता है जहां ऐसे 41 दल हैं, जबकि तमिलनाडु में इनकी संख्या 40 है।
छोटे राज्य भी पीछे नहीं
हरियाणा जैसे छोटे राज्य में भी 12 राजनीतिक दल ऐसे हैं जिन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। जबकि बिहार में इनकी संख्या 8 है। महाराष्ट्र में 27 राजनीतिक दलों ने कभी चुनाव नहीं लड़ा है। नागालैंड में सिर्फ एक राजनीतिक दल है, जो कभी चुनाव मैदान में उतरा ही नहीं।
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मौजूदा कानून का उठा रहे फायदा
मजेदार ये है कि चुनाव नहीं लड़ने वाले दल भी व्यक्तिगत या कॉरपोरेट घरानों से चंदा लेते हैं। आयकर कानून के अनुसार राजनीतिक दलों पर व्यक्तिगत या कॉरपोरेट घरानों से 20 हजार रुपए से कम चंदा लेने पर कोई पूछताछ नहीं की जाती है। और न देने वाले का नाम उजागर करने को कहा जाता है। ऐसे चंदे पर कोई टैक्स भी नहीं लगता। संभवत: यही कारण है कि कुकुरमुत्ते की तरह राजनीतिक दल उग आए हैं और इनकी संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है।
चुनाव आयोग 'दंतहीन'
देश में कुल 1700 रजिस्टर्ड राजनीतिक दल हैं जिसमें सात राष्ट्रीय पार्टी है। अन्य क्षेत्रीय दल हैं या ऐसी राजनीतिक पार्टियां जो कागजों पर हैं। दुखद ये है कि निर्वाचन आयोग ऐसे राजनीतिक दलों का रजिस्ट्रेशन रद्द नहीं कर सकता। क्योंकि ऐसी शक्तियां उसे प्राप्त नहीं हैं। हां, ऐसे दलों को अमान्य करार दिया जा सकता है।
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गेंद अब केंद्र के पाले में
इसके अलावा चुनाव लड़ने वाले दल भी यदि खास प्रतिशत वोट यदि नहीं लाते तो उन्हें भी अमान्य करार सिया जा सकता है। रजिस्ट्रेशन रद्द करने के लिए केंद्र सरकार को जनप्रतिनिधि कानून में संशोधन करना होगा।हालांकि, निर्वाचन आयोग ने इसकी पूरी जानकारी केंद्र सरकार को देकर गेंद उसके पाले में डाल दी है।
चंदा पाने में बीजेपी अव्वल
इस बीच पिछले वित्तीय साल में राजनीतिक दलों के मिले चंद की जांच की गई। केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी को सबसे ज्यादा 76 करोड़ रुपए चंदे के रूप में मिले।