किसानों का फायदा या नुकसान, अन्नदाता कृषि कानूनों के खिलाफ क्यों...

गौर करें तो गांव में किसान मजदूर बटाई पर खेत लेते हैं जिसमें आधा खेत के मालिक का और आधा बटाई पर लेने वाले जोतदार का होता है। जब कारपोरेट घराने जाकर खेत लेंगे तो देश के 14 करोड़ से अधिक ये किसान मजदूर क्या करेंगे।

Update:2021-02-06 22:36 IST
किसानों की मानें तो देओल परिवार का विरोध करने की वजह सामान्य है। उनके परिवार के तीन सदस्य भारतीय जनता पार्टी के करीब हैं।

रामकृष्ण वाजपेयी

किसानों का सबसे अधिक नुकसान यदि किसी कानून से है तो वह है कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार एक्ट। सवाल ये उठता है कि अगर ये पूरे देश के किसानों के लिए घातक है तो सिर्फ पंजाब और हरियाणा से विरोध की शुरुआत कैसे हुई।

कारपोरेट घराने खेत लेंगे तो देश के 14 करोड़ किसान क्या करेंगे

दरअसल पंजाब और हरियाणा के ज्यादा बड़े क्षेत्र में खेती होती है। वहां की पैदावार भी ज्यादा है। इसलिए वहां पर कृषि कार्यों से किसानों का बड़ा वर्ग जुड़ा हुआ है। खेती के प्रचलित तरीकों पर अगर गौर करें तो गांव में किसान मजदूर बटाई पर खेत लेते हैं जिसमें आधा खेत के मालिक का और आधा बटाई पर लेने वाले जोतदार का होता है। जब कारपोरेट घराने जाकर खेत लेंगे तो देश के 14 करोड़ से अधिक ये किसान मजदूर क्या करेंगे। क्योंकि कारपोरेट घरानों के मुकाबले यह उतर ही नहीं सकते और बड़ी कंपनियां मानव श्रम की जगह मुनाफा कमाने के लिए मशीनों को तरजीह देंगी। ऐसे में इनके समक्ष आजीविका का संकट खड़ा हो जाएगा।

बुवाई से पहले किसान मूल्य का आश्वासन

इस एक्ट के मुख्य प्रावधानों में कृषकों को व्यापारियों, कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों, निर्यातकों से सीधे जोड़ना। कृषि करार के माध्यम से बुवाई से पूर्व ही किसान को उसकी उपज के दाम निर्धारित करना। बुवाई से पूर्व किसान को मूल्य का आश्वासन। दाम बढ़ने पर न्यूनतम मूल्य के साथ अतिरिक्त लाभ शामिल है।

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इस विधेयक की मदद से बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों से हटकर प्रायोजकों पर चला जाएगा। मूल्य पूर्व में ही तय हो जाने से बाजार में कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव का प्रतिकूल प्रभाव किसान पर नहीं पड़ेगा।

कृषि कानूनों से किसानों की आय में बढ़ोतरी

इससे किसानों की पहुँच अत्याधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी, कृषि उपकरण एवं उन्नत खाद बीज तक होगी।

इससे विपणन की लागत कम होगी और किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित होगी।

किसी भी विवाद की स्थिति में उसका निपटारा 30 दिवस में स्थानीय स्तर पर करने की व्यवस्था की गई है। कृषि क्षेत्र में शोध एवं नई तकनीकी को बढ़ावा देना।

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किसानों को इस कानून में खतरे दिखाई दे रहे हैं क्योंकि उनका मानना है अनुबंधित कृषि समझौते में किसानों का पक्ष कमजोर होगा और वे कीमतों का निर्धारण नहीं कर पाएंगे। छोटे किसान संविदा खेती (कांट्रेक्ट फार्मिंग) कैसे कर पाएंगे? क्योंकि प्रायोजक उनसे परहेज कर सकते हैं। नई व्यवस्था किसानों के लिए परेशानी का कारण होगी। विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियों को लाभ होगा।

किसान को अनुंबध में पूर्ण स्वतंत्रता

सरकार या तो किसानों का पक्ष समझना नहीं चाहती या समझ कर भी नासमझ बन रही है। सरकार का कहना है कि किसान को अनुंबध में पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी कि वह अपनी इच्छा के अनुरूप दाम तय कर उपज बेच सकेगा। उन्हें अधिक से अधिक 3 दिन के भीतर भुगतान प्राप्त होगा।

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देश में 10 हजार कृषक उत्पादक समूह निर्मित किए जा रहे हैं। यह समूह (एफपीओ) छोटे किसानों को जोड़कर उनकी फसल को बाजार में उचित लाभ दिलाने की दिशा में कार्य करेंगे।

अनुबंध के बाद किसान को व्यापारियों के चक्कर काटने की आवश्यकता नहीं होगी। खरीदार उपभोक्ता उसके खेत से ही उपज लेकर जा सकेगा।

विवाद की स्थिति में कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने की आवश्यकता नहीं होगी। स्थानीय स्तर पर ही विवाद के निपटाने की व्यवस्था रहेगी।

सरकार के तर्कों से सहमत नहीं किसान

किसान सरकार के किसी भी तर्क से सहमत नहीं हैं। इसी लिए वह इन कानूनों को वापस लिए जाने पर अड़े हैं। क्योंकि किसान ये समझ रहे हैं कि इस चंगुल में एक बार फंसे तो खेती किसानी के छिनने का खतरा ज्यादा है। इस कानून से खतरा ये भी है कि कारपोरेट और कंपनियां अपनी जरूरत के हिसाब से उपज को नियंत्रित करने लगेंगी जिससे देश में खाद्यान्न का संकट पैदा हो जाएगा। अंत में किसान के पास खेती किसानी से किनारा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।

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