70 किसानों की आत्महत्याः हर महीने मातम, राजग कार्यकाल में लगातार बढ़ी खुदकुशी

आबादी के अनुपात में उत्तर प्रदेश में किसानों की आत्महत्या का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम जरूर रहा है फिर भी वहाँ भी काफी तादाद में किसान आत्महत्या कर चुके हैं।

Update:2021-02-07 22:06 IST

रामकृष्ण वाजपेयी

अन्नदाता लगातार अपनी जान क्यों दे रहा है। ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार किसानों को विश्वास दिलाने में असफल रही है। वह किसानों को अच्छे दिनों या आय दोगुनी करने का भरोसा नहीं दिला पा रही है। 2020 में किसान आंदोलन की शुरुआत से लेकर अब तक तमाम किसान खुदकुशी कर चुके हैं। आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों की संख्या अपुष्ट सूत्रों के अनुसार सौ से अधिक बताई जा रही। 2019 में करीब 43000 और दिहाड़ी मजदूरों ने आत्महत्या की है। सन् 2018 में देश भर में दस हजार से अधिक किसानों ने आत्महत्या की। NCRB के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत में कृषि में शामिल 10,655 लोगों ने आत्महत्या की है।

उत्तर प्रदेश में किसानों की आत्महत्या का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम

आबादी के अनुपात में उत्तर प्रदेश में किसानों की आत्महत्या का प्रतिशत अपेक्षाकृत कम जरूर रहा है फिर भी वहाँ भी काफी तादाद में किसान आत्महत्या कर चुके हैं। एक खबर के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 2013 में किसानों की आत्महत्या के 750 मामले सामने आये थे। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में वर्ष 2014 में यह आंकड़ा महज 145 का था, लेकिन 2015 में 324 पर पहुँच गया था। सरकार की तमाम कोशिशों और दावों के बावजूद कर्ज के बोझ तले दबे किसानों की आत्महत्या का सिलसिला नहीं रूक रहा। देश में हर महीने 70 से अधिक किसान आत्महत्या कर रहे हैं। प्रतिदिन आत्महत्याओं में यह आंकड़ा 17 किसान प्रतिदिन का है।

देश में हर महीने 70 से अधिक किसान आत्महत्या कर रहे

कहा जाता है कि किसान कर्ज में जन्म लेता है और कर्ज में ही मरता है। आत्महत्या के पीछे भी कृषकों द्वारा कृषि संबंधी कार्यों हेतु बैंकों और महाजनों से ऋण लिया जाना बताया जाता है। समझा जाता है कि प्राकृतिक आपदाओं या मानवजनित आपदाओं के कारण जब उनके फसल की पैदावार अनुमान के अनुरूप नहीं होती है तो वे ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं और इसी दबाव में आत्महत्या कर लेते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2015 में 3000 किसानों ने कर्ज से तंग आकर आत्महत्या की थी।

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आत्महत्या करने वाले किसानों में 72 प्रतिशत छोटे एवं सीमांत किसान हैं। इसका कारण भू-जोत का आकार का दिन-प्रतिदिन छोटा होता जाना कहा जा रहा है जिस से कृषकों की आय में लगातार कमी हो रही है|

किसानों आत्महत्याओं की पारिवारिक समस्याएँ

किसानों की आत्महत्याओं के संबंध में पारिवारिक समस्याएँ जैसे- ज़मीनी विवाद, आपसी लड़ाइयाँ आदि भी गिनाये जाते हैं। लेकिन मूल कारण किसान का संकटग्रस्त होना है।

इसके अलावा फसल की पैदावार अनुमान के अनुरूप न होने से भी किसानों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है जिससे कुछ किसान इस बोझ को नहीं संभाल पाते और आत्महत्या का रास्ता चुनते हैं। लेकिन एक बात सभी मान रहे हैं कृषकों की आय अत्यंत कम होती जा रही है। बीमारियों का इलाज़ कराना अत्यधिक महँगा होता जा रहा है। ऐसे में बीमारियों से ग्रस्त किसान इलाज के स्थान पर किसान आत्महत्या करना ज़्यादा सही मानते हैं।

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इन सब के पीछे मूल कारण है दोषपूर्ण आर्थिक नीतियां होना। ये आंदोलनकारी किसान नेता भी मान रहे हैं जिस के कारण कृषि धीरे-धीरे घाटे का सौदा बनती जा रही है। आंदोलनकारी किसान नेता शिव कुमार कक्का का आरोप है कि मोदी सरकार अपने कार्यकाल में 18 क़ानून किसान विरोधी और 40 क़ानून मज़दूर विरोधी ले कर आई है। ये बड़ी बात है जिस पर केंद्र सरकार को अपना पक्ष स्पष्ट करना ही चाहिए। गौरतलब है कि 2014 के बाद जिस तरह से किसानों की आत्महत्याएं बढ़ी हैं वह वर्तमान सरकार के दामन पर काला दाग है।

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