प्यास बुझाने के लिए कोहरे का सहारा

Update:2018-10-18 15:11 IST
Health : क्या होता है वॉटर रिटेंशन

नई दिल्ली। कोहरे को सिर्फ धुंध का गुबार समझना गलत है क्योंकि इस धुंध में पानी का बड़ा भंडार होता है, जिसे इकठ्ठïा करके पीने के पानी के रूप में उपयोग कर सकते हैं। पानी की किल्लत वाले इलाकों में लोगों को पीने का पानी मिल सके इसके लिए दुनिया भर में वैज्ञानिक कोहरे या ओस जैसे स्रोतों से पीने का पानी हासिल करने की तकनीक विकसित करने में जुटे हुए हैं। इसी क्रम में भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसा मैटेरियल विकसित किया है, जिसकी मदद से घने कोहरे में मौजूद नमी को पानी में परिवर्तित किया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश के मंडी में स्थित आईआईटी के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित किया गया यह एक पॉलिमर मैटेरियल है।

इस पॉलिमर मैटेरियल को ड्रैगन्स लिली हेड (ग्लैडियोलस डैलेनी) नामक पौधे की पत्तियों की सतह संरचना के आधार पर बनाया गया है। ड्रैगन्स लिली हेड की पत्तियों की सतह तथा उसके पैटर्न का अध्ययन माइक्रोमीटर और नैनोमीटर स्तर पर करने के बाद वैज्ञानिकों को उसके जल संचयन गुणों का पता चला है।

यह भी पढ़ें : सीएम योगी आदित्यनाथ ने किया नवकन्या पूजन, प्रदेशवासियों को दी विजयदशमी की बधाई

शुष्क और कम नमी वाले क्षेत्रों में कई ऐसे पौधे पाये जाते हैं, जिनकी पत्तियां अपनी खास बनावट के चलते कोहरे में मौजूद नमी अपने भीतर पानी के रूप में जमा कर लेती हैं। इसे 'बायोमिमिक्री' कहा जाता है।

इस अध्ययन से जुड़े आईआईटी, मंडी के वैज्ञानिक डॉ वेंकट कृष्णन ने इंडिया साइंस वायर को बताया, 'हमने ड्रैगन्स लिली हेड पौधे की संरचना और उसकी पत्तियों के पैटर्न का अध्ययन किया है जो हवा में मौजूद नमी को जल के रूप में जमा करने में मदद करती है। इस सजावटी पौधे की पत्तियों की तर्ज पर कोहरे से पानी इकट्ठा करने के लिए पॉलिमर जल संचयन सतहों का निर्माण किया गया है।' कोहरे से पानी इकट्ठा करने के लिए विकसित इस नये पैटर्न से 230 प्रतिशत अधिक पानी एकत्रित किया जा सकता है।

हवा से पानी जमा कर सकते हैं कई पौधे और जीव जंतु

कई जानवर और पौधे दिलचस्प तरीके से हवा से पानी एकत्रित करते हैं। अफ्रीका के नामीब रेगिस्तान में पाया जाने वाला डार्कलिंग बीटल (झींगुर) हवा में मौजूद पानी के कणों को अपने शरीर की सतह के जरिए ले लेता है। बीटल के शरीर पर टेफ्लॉन जैसी जल प्रतिरोधी कोटिंग की वजह से पानी सीधे उसके मुंह की ओर पहुंच जाता है।

नामीब रेगिस्तान में मौजूद घास, बरमूडा घास और कैक्टस जैसे पौधे कोहरे को ताजे पानी में बदल सकती हैं।

ड्रॉप्टेरिस मार्जिनटा नामक पौधे में कोहरे की बूंदों के संग्रह की क्षमता होती है। इसके अलावा इस पौधे में बहुस्तरीय प्रवाह की जटिल प्रणाली होती है, जिससे पानी तुरंत फैल जाता है और लक्ष्य तक पहुंच जाता है।

मिल्किंग फॉग

कोहरे को दुहकर उसमें से पानी निकालने को वैज्ञानिक 'मिल्किंग फॉग' कहते हैं। कोहरे वाले इलाकों में हवा में एक बड़ा जाल (फॉग कैचर) लटकाना कोहरे से पानी प्राप्त करने की एक प्रचलित तकनीक है। कोहरे की बूंदें इस जाल पर जमा हो जाती हैं और जाल के नीचे पानी के टैंक में संचित होती रहती हैं। इन टैंकों से पानी को पीने के लिए सप्लाई कर दिया जाता है।

फॉग कैचर आधारित इस तकनीक के लिए घना कोहरा और हवा का बहाव जरूरी है। इसलिए यह तकनीक हर जगह उपयोग नहीं की जा सकती। चिली के उत्तर में स्थित इकीक शहर में कोहरा इतना घना होता है कि दुनियाभर के वैज्ञानिक यहां अध्ययन के लिए आते हैं। इसके अलावा अफ्रीका, दक्षिणी यूरोप, पेरू, ग्वाटेमाला और इक्वाडोर के कुछेक इलाकों में भी कोहरे से पानी निकालने के लिए जाल आधारित तकनीक का उपयोग हो रहा है।

ओस की बूंदों से पानी प्राप्त करने के लिए धीरूभाई अंबानी इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन ऐंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने फ्रांस के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर इसी तरह की एक तकनीक पेश की थी। गुजरात के कच्छ क्षेत्र के एक गांव कोठारा में स्थापित इस तकनीक से प्रतिदिन 500 लीटर पीने का पानी प्राप्त किया जा सकता है। इस प्रणाली में खासतौर पर डिजाइन किये गए कंडेन्सर पैनल, जल भंडारण इकाई और प्यूरीफिकेशन इकाई लगायी गई है।

नीति आयोग के मुताबिक भारत में 70 प्रतिशत दूषित जल आपूर्ति होती है और हर साल देश में करीब दो लाख लोगों की मौत साफ पानी नहीं मिल पाने से होती है। अगर वक्त रहते सही कदम नहीं उठाए गए तो वर्ष 2030 तक पेयजल की मांग आपूर्ति के मुकाबले कई गुना बढ़ सकती है।

Tags:    

Similar News