ज्ञानी जैल सिंह पर लगे थे संगीन आरोप, पूर्व PM राजीव गांधी से तल्ख थे रिश्ते

ज्ञानी जैल सिंह पर देश की सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस के एक सांसद ने संगीन इल्जाम भी लगाए। उनके घर को आतंकवादियों का अड्डा करार दिया। इंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी से कटुता इस कदर बढ़ी कि महाभियोग की चर्चा भी होने लगी।

Update: 2020-12-25 05:41 GMT
इसके बाद उनका नाम जरनेल से जैल सिंह हो गया था। बाद में इसी नाम से उन्होंने अपनी पहचान बनाई।

नई दिल्ली : ज्ञानी जैल सिंह देश के सातवें राष्ट्रपति की आज पूण्यतिथि है। उनके लिए कई तरह की बातें भारतीय राजनीति में कही गई हैं। कोई उन्हें सबसे बेबस राष्ट्रपति कहता है तो कोई लिए गए फैसलों से उनकी मजबूत शख्सियत भी मानता है। आज देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की पूण्यतिथि पर जानते हैं उनके बारे में...

घर को आतंकवादियों का अड्डा

ज्ञानी जैल सिंह का जन्म 5 मई 1916 को पंजाब के फरीदकोट में हुआ था। उनके पिता का नाम किशन सिंह और मां का नाम इंद्रा कौर था। जैल सिंह की स्कूली शिक्षा पूरी नहीं हो पाई थी। उनका संगीत की तरफ काफी रुझान था। उर्दू के अलावा उन्होंने गुरुमुखी सीखी थी। बताते हैं कि पिता के कहने पर उन्होंने गुरुद्वारे में गुरुवाणी और शबद का पाठ करना शुरू कर दिया।

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ज्ञानी जैल सिंह देश के सबसे बेबस राष्ट्रपति जिनके कार्यकाल के दौरान सिखों के पवित्र स्थान स्वर्ण मंदिर में आर्मी का ऑपेरशन हुआ और फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों का कत्ल ए आम। इतना ही नहीं ज्ञानी जैल सिंह पर देश की सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस के एक सांसद ने संगीन इल्जाम भी लगाए। उनके घर को आतंकवादियों का अड्डा करार दियाइंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी से कटुता इस कदर बढ़ी कि महाभियोग की चर्चा भी होने लगी।

 

राजनीतिक सफर

क्रांतिकारी विचारधारा के व्यक्ति थे जैल सिंह । शुरुआत में वह पंडित जवाहरलाल नेहरु के संपर्क में आए और कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने पंजाब में कांग्रेस की मजबूती के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए थे। वह पार्टी का प्रमुख चेहरा बन गए। 1956 में वह राज्यसभा सांसद बने। 1969 में उनकी इंदिरा गांधी से राजनीतिक निकटता बढ़ी। 1972 से 1977 तक ज्ञानी जैल सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। 1980 में जब इंदिरा गांधी जब दोबारा सत्ता में आईं तो उन्होंने ज्ञानी जैल सिंह को देश का गृहमंत्री बनाया। वह 1982 से 1987 तक देश के सातवें राष्‍ट्रपति रहे।

साल 1982 में वो देश के राष्ट्रपति बने थे। उस समय इंदिरा गांधी की सरकार थी। कहा जाता है कि पहले जैल सिंह के इंदिरा गांधी से जितने अच्छे रिश्ते थे, बाद में उतने ही बिगड़ते चले गए। इसकी एक वजह आंध्र प्रदेश की राजनीति उठापटक भी थी। आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनटी रामाराव के मसले पर दोनों के बीच मतभेद साफतौर पर सामने आया था।

साल 1984 में इंदिरा गांधी के आदेश पर चलाए गए ऑपरेशन ब्‍लूस्‍टार ने तो यह बात साफ कर दी थी। सिख विरोधी दंगों के समय ज्ञानी जैल सिंह बेबस और असहाय महसूस कर रहे थे। उन्हें इन सब बात की जानकारी ही नहीं दी गई थी। कहा जाता है कि सिख विरोधी विरोधी दंगों के समय ज्ञानी जैल सिंह ने पीएम हाउस, पीएमओ और गृह मंत्रालय में कई फोन किए, मगर किसी ने भी उनके फोन का जवाब नहीं दिया।

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कार पर पथराव

इंदिरा गांधी की सिख बॉडीगार्ड द्वारा हत्‍या किए जाने की खबर तेजी से फैली थी। इस घटना के बाद तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति जैल सिंह एम्स अस्पताल में इंदिरा गांधी के शव को श्रद्धांजलि देकर अपनी कार से लौट रहे थे। इसी दौरान रास्ते में दंगाईयों की भीड़ ने राष्ट्रपति की कार पर पथराव कर दिया था। हालांकि उनके सुरक्षाकर्मी किसी तरह उन्हें दंगाईयों की भीड़ से सुरक्षित निकालने में कामयाब रहे थे।

पूर्व प्रधानमंत्री से रिश्तों में तल्खी भी चर्चा का विषय

इंदिरा गांधी ही नहीं बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भी जैल सिंह के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं थे। कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह ने अपनी किताब 'ए ग्रेन ऑफ सेंड इन द ऑवरग्लास ऑफ टाइम' में लिखा कि जैल सिंह और प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बीच नाराजगी इस कदर बढ़ गई थी कि वे राजीव गांधी की सरकार को बर्खास्त करने के लिए तैयार हो गए थे। ज्ञानी जैल सिंह की मृत्यु 25 दिसंबर 1994 को चंडीगढ़ में एक सड़क हादसे में घायल होने के बाद हुई थी।

 

 

जरनेल से बने जैल, ऐसे मिली ज्ञानी की उपाधि

संगीत की शिक्षा मिलने के बाद जैल सिंह गुरुद्वारे में गुरुवाणी और शबद का पाठ करते थे। उनकी इस कार्य में विशेष रुचि थी। बाद में वह ग्रंथी बने और यहीं से उन्हें ज्ञानी की उपाधि मिली। बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्हें हारमोनियम बजाना बहुत पसंद था। ज्ञानी जैल सिंह का असली नाम जरनेल सिंह था। लेकिन एक बार उन्‍हें अंग्रेजों द्वारा कृपाण पर रोक लगाने के विरोध में जब जेल जाना पड़ा तो उन्‍होंने यहां पर गुस्‍से में अपना नाम जैल सिंह बताया। इसके बाद उनका नाम जरनेल से जैल सिंह हो गया था। बाद में इसी नाम से उन्होंने अपनी पहचान बनाई।

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