गुरुद्वारा श्री गोइंदवाल साहिब, यहां पड़े थे श्री गुरु अमरदास जी के चरण

देश का सरहदी सूबा पंजाब को गुरुओं की घरती कहा जाता है। यहां श्री गुरु नानक देव जी से लेकर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी तक के पांव पड़े हैं। इसी पंजाब के पावन नगरों में से एक है गोइंदवाल साहिब।

Update: 2020-04-10 10:18 GMT
गुरुद्वारा श्री गोइंदवाल साहिब, यहां पड़े थे श्री गुरु अमरदास जी के चरण

दुर्गेश पार्थसारथी

नई दिल्ली। देश का सरहदी सूबा पंजाब को गुरुओं की घरती कहा जाता है। यहां श्री गुरु नानक देव जी से लेकर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी तक के पांव पड़े हैं। इसी पंजाब के पावन नगरों में से एक है गोइंदवाल साहिब।

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श्री गुरु अमरदासजी ने बसाया था नगर

तरनतारन जिले में स्थित गोइंदवाइल साहिब के बारे में कहा जाता है कि इस नगर की स्‍थापना श्री गुरु अमरदास जी ने की थी। श्री गुरु अंगद देव जी के हुक्म से श्री गुरु अमरदास जी ने पवित्र ऐतिहासिक नगर श्री गोइंदवाल साहिब को सिक्ख धर्म के प्रचार- प्रसार के केंद्र के रूप में स्थापित किया।

इसी जगह पर श्री गुरु अमरदास जी ने संगत को आत्मिक एवं सांसारिक तृप्ति, तन- मन की पवित्रता, ऊंच- नींच, जात पात के भेद को दूर करने के लिए एक बाउली साहिब का निर्माण करवाया।

कहा जाता है कि यह बाउली चौरासी सिद्धियों वाली है। इसमें स्‍नान ध्‍यान कर गुरु का सिमरन करने से मन को आध्‍यात्मिक एवं आत्मिक शांति प्राप्‍त होती है।

प्राकृतिक छंटा से परिपूर्ण है स्‍थल

यह ऐतिहासिक स्थान प्राकृतिक के सुंदर नजारों से परिपूर्ण है। अति सुंदर और रमणीक होने के साथ-साथ प्रबंध के नजरिये से भी आदर्श स्थान है। सिख धर्म में गोइंदवाल के ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस पवित्र स्‍थल को सिक्खी का धुरा कहा जाता है।

इसी स्‍थान पर शुरू हुआ था वाणी का संग्रह

मान्‍यता है कि गाइंदवाल सहित में जिस स्‍थान पर आज गुरुद्वारा साहिब प्रतिष्ठित है। उसी जगह पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पावन स्वरूप वाणी का संग्रह बाबा मोहन जी वाली पोथियों से प्रारंभ हुआ था। सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी का जन्म भी इस पावन स्थान पर हुआ था।

अकबर ने भी गुरु जी के आगे झुकाया था शीश

श्री गुरु अमरदास जी सन् 1552 में इसी स्थान पर गुरु गद्दी पर विराजमान हुए थे। कहा जाता है कि बादशाह अकबर भी गुरु अमरदास जी के दर्शन के लिए तथा आत्मिक शांति के लिए उनके दरबार में शीश झुकाया था। पंजाब का प्रसिद्ध त्यौहार वैशाखी को मनाने की शुरुआत भी जोड़ मेले के रूप में गोइंदवाल साहिब से हुई थी।

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